ये उन दिनों की बात है भाग 2

मेरा दिल बिल्कुल भी नहीं था कि मैं अपने घर जाऊँ.. लेकिन क्या करता.. जाना तो था ही।

जैसे-तैसे मैं अपने घर की ओर चल दिया लेकिन अभी भी मेरी आँखों से माया के गुलाबी चूचे और उस पर चैरी की तरह सुशोभित घुन्डियाँ.. हटने का नाम ही नहीं ले रहे थे।

खैर जैसे-तैसे मैं अपने घर पहुँचा.. घन्टी बजाई तो मेरे पापा ने गेट खोला और मुझे डाँटते हुए बोले- आ गए नवाब.. वक्त देखा.. 12:30 हो रहा है.. कहाँ रहे इतनी देर?

तो मैंने माँ की ओर देखते हुए उनसे बोला- क्या आपने बताया नहीं?

तो पापा बोले- ये बता कि इतनी देर कौन सा डिनर चलता है?

तो मैंने आंटी जी के ‘बर्थडे पार्टी’ वाली बात बता दी..
तब जा कर पापा शान्त और सामान्य हुए और मेरे भी जान में जान आई।

मैं सच बोलूँ तो मेरी मेरे पिता से बहुत फटती है।

फिर मैं अपने कमरे में गया और कपड़े बदलने लगा।

और जैसे ही मैंने अपने आप को वाल मिरर पर देखा.. तो मेरे सामने फिर से माया के चूचे याद आने लगे.. जिसके कारण पता ही नहीं लगा..
कब मेरा सुस्त लौड़ा फिर से ऊँचाइयों को छूने लगा और मेरा हाथ अपने आप ही मेरे खड़े लौड़े को सहलाने लगा.. कभी-कभार दबाने लगा।

जैसे आज माया ने किया था ठीक उसी अंदाज़ में मेरे हाथ भी लौड़े की मालिश करने लगे और देखते ही देखते मेरा सामान झड़ गया।
लेकिन यह क्या आज पहली बार इतना माल निकला था जो कि शायद आंटी की मालिश का कमाल था।

फिर मैंने साफ़-सफाई की और सो गया।

सुबह देर से उठा तो कॉलेज नहीं गया।

विनोद का फ़ोन आया.. तब शायद दिन का एक बजा था तो उसने मुझसे पूछा- आज कॉलेज क्यों नहीं आया बे?

तो मैंने उससे बोला- यार कल रात को काफी देर से सोया था.. तो नींद ही नहीं खुली।

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फिर वो खुद ही बताने लगा मेरे जाने के बाद उसकी माँ और बहन दोनों ने तेरी तारीफ की और मेरी माँ ने तेरा नम्बर भी ले लिया है.. ताकि कोई काम कभी पड़े तो वो तुमसे बात कर सकें।

फिर मैंने भी बोल दिया- ठीक किया.. इमरजेंसी कभी भी पड़ सकती है.. ये तो अच्छी बात है उन्होंने मुझ पराये पर इतना भरोसा किया।

तो वो बोला- साले दो दिन में तूने क्या कर दिया.. जो अब मेरे घर में सिर्फ तुम्हारी ही बातें होती हैं?

तो मैंने मन में बोला- अभी तो लोहा गर्म किया है.. समय पर पीटूँगा.. तब होगा कुछ..

फिर उससे मैंने बोला- बेटा जलने की महक आ रही है..

तो वो बोला- यार ऐसा नहीं है मेरे दोस्त.. यह तो मेरी खुशनसीबी है कि मुझे तुझ जैसा दोस्त मिला.. वर्ना आजकल ऐसे लोग कहाँ मिलते हैं।

फिर थोड़ी देर इधर-उधर की बात करने के बाद मैंने फ़ोन काटा।

मुझे उस समय उसकी बातों ने इतना झकझोर दिया कि मैं बहुत ही आत्मग्लानि महसूस करने लगा और सोचने लगा कि मैं अपने दोस्त के साथ गलत कर रहा हूँ जो कि गलत ही नहीं अनैतिक भी है।

फिर मैंने जान-बूझकर उसके घर जाना छोड़ दिया ताकि कुछ गलत न हो लेकिन ईश्वर को कुछ और ही मंज़ूर था।

विनोद और मैं अब अक्सर मल्टीप्लेक्स में मिलते या मेरे घर पर और वो अक्सर मुझसे बोलता रहता कि माँ ने बुलाया है घर चल.. पर मैं बहाना बना देता !

फिर एक दिन माया का भी फ़ोन आया और उसने मुझसे डाँटते हुए लहजे में बोला- क्या मैं तुम्हें इतनी बुरी लगी.. जो उस दिन के बाद नहीं आया?

तो मैंने बोला- आंटी ऐसा नहीं है।

वो बोली- फिर कैसा है?

तो मैंने उन्हें बोला- आंटी आप मेरे दोस्त की माँ है और वो उस दिन गलत हो गया।

इस पर वो गरजते हुए बोली- पहले तो तू मुझे माया बोल और रही उस दिन की बात.. तो यह तूने तब नहीं सोचा जब तुम मेरे चूचे चूस रहे थे या तब भी ख़याल नहीं आया.. जब अपना लौड़ा मेरे मुँह में देकर बोल रहे थे.. माया आज तो बहुत ही मज़ा आ रहा है.. क्यों बोल?

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मेरे पास इन सब बातों का कोई जवाब न था.. तो मैं क्या कहता।

हम दोनों लोग शांत थे.. फिर करीब एक मिनट बाद माया रोते हुए बोली- पहली बार मुझे कोई अच्छा लगा और उसने भी धोखा दे दिया..

मैं चुपचाप सुनता रहा।

वो जोर-जोर से रोते हुए कहने लगी- मैंने सोचा था तुम भी मुझे पसंद करते हो.. लेकिन ये सब मेरा वहम था।

और उसने न जाने क्या-क्या कहा।

मैंने मन में सोचा कि भूखी औरत सिर्फ ‘लण्ड-लण्ड’ चिल्लाती है..
जैसे माया चिल्ला रही है और अगर मैंने ये मौका खो दिया तो माया के साथ-साथ रूचि भी हाथ से निकल जाएगी।

यह सोचते-सोचते मैंने तुरंत माया से ‘सॉरी’ बोला और उससे कहा- मैं तो बस ये देख रहा था.. जो तड़प तुम्हारे लिए मेरे अन्दर है.. क्या वो तुम्हारे अन्दर भी है या मैं केवल तुम्हारी प्यास बुझाने का जरिया बन कर रह जाऊँगा।

इस पर उसने बिना देर किए ‘आई लव यू’ बोल दिया और बोली- आज से मेरा सब कुछ तुम्हारा ही है..

तो मैंने मज़ाक में बोला- बस एक अहसान करना.. दो बच्चों का बाप न बना देना।

तो वो भी हँसने लगी, फिर वो बोली- अब ये बोलो.. घर कब आओगे?

मैंने बोला- अब मैं तभी आऊँगा.. जब घर पर सिर्फ हम और तुम ही रहेंगे।

वो इस पर चहकती हुई आवाज़ में बोली- अकेले क्यों? जान लेने का इरादा है क्या?

तो मैंने बोला- नहीं.. तुम्हें प्यार से दबा-दबा कर मारने का इरादा है।

वो बोली- मुझे इस घड़ी का बेसब्री से इंतज़ार रहेगा।

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