कहानी का पिछले बाग़ विधवा शीला का पंडित जी के सात चक्कर 1
दोस्तो, हिंदी में इंडियन सेक्स स्टोरीज में आपने अब तक पढ़ा था कि पण्डित जी शीला की जवानी को भोगने के चक्कर में उसको पूजा करवाने के लिए फंसा चुके थे. वे दोनों पूजा करने के लिए चौकड़ी मार कर बैठे थे.
अब आगे..
पण्डित- पुत्री.. ये नारियल अपनी झोली में रख लो.. इसे तुम परसाद समझो.. तुम दोनों हाथ सिर के ऊपर से जोड़ कर शिव का ध्यान करो.
शीला सिर के ऊपर से हाथ जोड़ के बैठी थी.. पण्डित उसकी झोली में फ़ल डालता रहा.
शीला की इस पोजीशन में उसके चूचे और नंगा पेट पण्डित के लंड को सख्त कर रहे थे. शीला की नाभि भी पण्डित को साफ़ दिख रही थी.
पण्डित- शीला पुत्री.. ये मौलि (धागा) तुम्हें अपने पेट पर बांधनी है.. वेदों के अनुसार इसे पण्डित को बांधना चाहिए.. लेकिन यदि तुम्हें इसमें लज्जा की वजह से कोई आपत्ति हो तो तुम खुद बांध लो.. परन्तु विधि तो यही है कि इसे पण्डित बांधे.. क्योंकि पण्डित के हाथ शुद्ध होते हैं.. आगे जैसे तुम्हारी इच्छा.
शीला- पण्डित जी.. वेदों का पालन करना मेरा धर्म है.. जैसा वेदों में लिखा है आप वैसा ही कीजिये.
पण्डित- मौलि बांधने से पहले गंगाजल से वो जगह साफ़ करनी होती है.
पण्डित ने शीला के पेट पे गंगाजल छिड़का.. और उसका नंगा पेट गंगाजल से धोने लगा. शीला के पेट की स्किन अन्य औरतों के बनिस्बत बहुत कोमल थी. पण्डित उसके पेट को रगड़ रहा था. फिर उसने तौलिए से शीला का पेट पोंछ कर सुखाया.
शीला के हाथ सिर के ऊपर थे.. पण्डित शीला के सामने बैठ कर उसके पेट पे मौलि बांधने लगा.. पहली बार पण्डित ने शीला के नंगे पेट को छुआ.
गाँठ बांधते समय पण्डित ने अपनी उंगली शीला की नाभि पर रखी.
अब पण्डित ने उंगली पे लाल रंग की रोली लेकर शीला के पेट टीका जैसा लगाया.
पण्डित- शीला.. शिव को पार्वती की देह (बॉडी) पर चित्रकारी करने में आनन्द आता है.
ये कह कर पण्डित शीला के पेट पर गोल टीका बढ़ा करते हुए लगाने लगा. फिर उसने शीला के पेट पर त्रिशूल बनाया.
शीला की नाभि पर आ कर पण्डित रुक गया. अब पण्डित अपनी उंगली शीला की नाभि में घुमाने लगा. वो शीला की नाभि में टीका लगा रहा था. शीला के दोनों हाथ ऊपर थे. वह भोली थी.. और इन सब चीजों को धर्म समझ रही थी. लेकिन ये सब उसे भी कुछ कुछ अच्छा लग रहा था.
फिर पण्डित घूम कर शीला के पीछे आया.. उसने शीला की पीठ पर गंगाजल छिड़का और हाथ से उसकी पीठ पर गंगाजल लगाने लगा.
पण्डित- गंगाजल से तुम्हारी देह और शुद्ध हो जाएगी, क्योंकि गंगा शिव की जटाओं से निकल रही है इसलिए गंगाजल लगाने से शिव प्रसन्न होते हैं.
शीला के ब्लाउज के हुक्स नहीं थे.. पण्डित ने खुले हुए ब्लाउज को और साइड में कर दिया.. शीला की आलमोस्ट सारी पीठ नंगी हो गई. पण्डित उसकी नंगी पीठ पर गंगाजल डाल कर रगड़ रहा था. वो उसकी नंगी पीठ अपने हाथों से धो रहा था. शीला की नंगी पीठ को छूकर पण्डित का लंड एकदम टाईट हो गया था.
पण्डित- तुम्हारी राशी क्या है?
शीला- कुम्भ.
पण्डित- मैं टीके से तुम्हारी पीठ पर तुम्हारी राशी लिख रहा हूँ.. गंगाजल से शुद्ध हुई तुम्हारी पीठ पर तुम्हारी राशी लिखने से तुम्हारे ग्रहों की दशा लाभदायक हो जाएगी.
पण्डित ने शीला की नंगी पीठ पर टीके से कुम्भ की जगह लंड लिखा..
फिर पण्डित शीला के पैरों के पास आया.
पण्डित- अब अपने चरण सामने करो.
शीला ने पैर सामने कर दिये.. पण्डित ने उसका पेटीकोट थोड़ा ऊपर चढ़ाया.. उसकी टांगों पर गंगाजल छिड़का.. और उसकी टांगें अपने हाथों से रगड़ने लगा.
पण्डित- हमारे चरण बहुत सी अपवित्र जगहों पर पड़ते हैं.. गंगाजल से धोने के पश्चात अपवित्र जगहों का हम पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता.. तुम शिव का ध्यान करती रहो.
शीला- जी पण्डित जी..
पण्डित- शीला.. यदि तुम्हें ये सब करने में लज्जा आ रही हो तो ये तुम खुद कर लो.. परन्तु वेदों के अनुसार ये कार्य पण्डित को ही करना चाहिये.
शीला- नहीं पण्डित जी.. यदि हम वेदों के अनुसार नहीं चले तो शिव कभी प्रसन्न नहीं होंगे.. और भगवान के कार्य में लज्जा कैसी.
शीला अंधविश्वासी थी.
पण्डित ने शीला का पेटीकोट घुटनों के ऊपर चढ़ा दिया.. अब शीला की टांगें जांघों तक नंगी थीं.
पण्डित ने उसकी जांघों पर गंगाजल लगाया और उसकी जांघें हाथों से धोने लगा. शीला ने शर्म से अपनी टांगें जोड़ रखी थीं तो पण्डित ने कहा.
पण्डित- शीला.. अपनी टांगें खोलो.
शीला ने धीरे धीरे अपनी टांगें खोल दीं. अब शीला पण्डित के सामने टांगें खोल कर बैठी थी. उसकी ब्लैक कच्छी पण्डित को साफ़ दिख रही थी. पण्डित ने शीला की जांघों को अन्दर तक छुआ.. और उन्हें गंगाजल से रगड़ने लगा.
इस वक्त पण्डित के हाथ शीला की चूत के नज़दीक थे.. कुछ देर शीला की पूरी जांघों को धोने के बाद अब वो उस जगह तौलिए से रगड़ कर सुखाने लगा.
फिर उसने उंगली में टीका लगाने के लिए रोली ली और शीला की जांघों के अन्दर तक चुत के नजदीक पे लगाने लगा.
शीला शरमाते हुए बोली- पण्डित जी.. यहाँ भी टीका लगाना होता है?
वो जरा असहज महसूस कर रही थी.
पण्डित- हाँ.. यहाँ देवलिंग बनाना होता है.
शीला टांगें खोल कर बैठी थी और पण्डित उसकी अंदरूनी जाँघों पर उंगलियों से देवलिंग बना रहा था.
पण्डित- शीला.. लज्जा ना करना..
शीला- नहीं पण्डित जी..
जैसे उंगली से माथे (फ़ोरेहेड) पर टीका लगाते हैं, पण्डित कच्छी के ऊपर से ही शीला की चूत पे भी टीका लगाने लगा. शीला शर्म से लाल हो रही थी.. लेकिन गरम भी हो रही थी. पण्डित टीका लगाने के बहाने 5-6 सेकंड्स तक कच्छी के ऊपर से शीला की चूत रगड़ता रहा.
चूत से हाथ हटाने के बाद पण्डित बोला.
पण्डित- विधि के अनुसार मुझे भी गंगाजल लगाना होगा.. अब तुम इस गंगाजल को मेरी छाती पर लगाओ.
पण्डित लेट गया.
शीला- जी पण्डित जी.
पण्डित ने छाती शेव कर रखी थी.. और पेट भी.. उसकी छाती और पेट बिल्कुल सफाचट चिकने और कोमल थे.
शीला गंगाजल से पण्डित की छाती और पेट रगड़ने लगी. शीला को अन्दर ही अन्दर पण्डित का बदन आकर्षित कर रहा था.. उसकी चुत पर पंडित की उंगली की रगड़न का अहसास अभी तक हो रहा था. उसके मन में आया कि पण्डित का बदन कितना कोमल और चिकना है.
ऐसे ख्याल शीला के मन में पहले कभी नहीं आये थे.
पण्डित- अब तुम मेरी छाती पर टीके से गणेश बना दो.. गणेश इस प्रकार बनना चाहिये कि मेरे ये दोनों निप्पलों गणेश के ऊपर के दोनों आँखों के बिंदु हों.
निप्पलों का नाम सुन कर शीला शरमा गई.
शीला ने गणेश बनाया.. लेकिन उसने टीके से सिर्फ गणेश के नीचे के दो खानों की बिन्दुएँ ही बनाईं.
पण्डित- शीला.. गणेश में चार बिंदु डालते हैं.
शीला- पण्डित जी.. लेकिन ऊपर की दो बिंदु तो पहले से ही बनी हुई हैं?
पण्डित- परन्तु टीका उन पर भी लगेगा.
शीला पण्डित के निप्पलों पर टीका लगाने लगी.
पण्डित- मानव की नाभि उसकी ऊर्जा का स्त्रोत होती है.. अतः यहाँ नाभि पर भी टीका लगाओ.
शीला- जो आज्ञा पण्डित जी.