संजय ने फिर मुझे चूमना शुरू कर दिया और चूमते चूमते मेरी चूत तक आ गया. और मैंने भी टांगें खोल ली.
संजय समझ गया कि मैं क्या चाहती हूँ।
तो संजय ने मेरी गीली चूत पर मुंह लगा दिया.
मैं सिहर गयी और आंन्नद के सागर में गोते लगाने लगी. संजय अपनी जीभ को चूत के अन्दर तक घुसा रहा था.
अब तक मैं भी अब पूरी मस्ती में आ गयी थी और संजय के सिर को टांगों के बीच दबाने लगी।
संजय ने मुंह हटा लिया तो मैं उसकी तरफ देखने लगी. संजय ने मेरी आंखो में देखा और फिर संजय मेरे ऊपर आ गया और उसका लंड मेरी चूत पर टक्कर मारने लगा.
मैंने उसके लंड को पकड़ा और संजय की आंखों में देखा और चूत पर लंड को रख दिया और नीचे से अपने चूतड़ उठा कर एक हल्का सा झटका मारा. ऐसा करते हुए मुझे अंदर ही अंदर थोड़ी शर्म भी आई कि मैं कैसे निर्लज्ज होकर पड़ोसी से चुदाने को उतावली हो रही हूँ.
मेरे झटके को देख उसने एक झटके में अपना पूरा लंड मेरी प्यासी चूत में थोक दिया और फिर मुझे चोदने लगा।
बस फिर तो जब समय मिलता … चुदाई शुरू।
मैं निष्ठा अपने दोस्त राज हुडा का धन्यवाद करती हूँ जिसने मुझे मेरे दिल की बात, मेरी जिन्दगी की एक सच्ची घटना जिसे मैं और किसी को नहीं बता सकती थी, यहाँ शेयर करने का हौसला दिया और मेरी कहानी लिख कर भेजी.
मेरी देसी चुदाई की देसी कहानी आपको कैसी लगी? प्लीज अपने विचार जरूर रखें.