पडोसी आंटी ने दी मेरे लुंड को प्यार

मेरा नाम प्रवीण (बदला हुआ) है. यहां पर मैं अपनी निजी जानकारी नहीं दे पाऊंगा लेकिन अपने जीवन के बारे में कुछ विचार और एक घटना साझा करना चाहूंगा. मैं अपने घर में सबसे छोटा हूं और इसी बात का फायदा मुझे आज भी मिल रहा है.

मैंने हमेशा देखा है कि घर में जो छोटा बच्चा होता है, उसे सब छोटा ही समझते हैं चाहे वो कितना भी बड़ा क्यों न हो जाये. इसी की आड़ लेकर मैंने अपनी ज़िंदगी में खूब मस्ती की है। जवानी में पहला कदम रखते ही मुझे सेक्स का चस्का लग गया था.

तब से लेकर आज तक मेरी जिन्दगी में कई जवान लड़की आई. जवान लड़की की चूत चुदाई से लेकर आंटियां चोदने तक मैंने हर तरह की चूत का स्वाद लिया है. हां, लेकिन मैंने जिस किसी की भी चूत मारी मैं उसको कभी नहीं भूल पाता हूं. हमेशा उससे संपर्क में रहने की कोशिश किया करता हूं.

अपने लंड और उसकी चोदन क्षमता पर मुझे गर्व भी है और घमंड भी. जवानी में ही मुझे हर चीज का ज्ञान मिल गया था. अश्वगंधा से लेकर शिलाजीत तक हर तरह की देसी दवाओं का सेवन किया है मैंने. उसी के बलबूते लंड आज भी फड़कता रहता है.

मेरे लंड से जब गर्म गर्म वीर्य की तेज पिचकारी किसी लड़की, औरत, सेक्सी भाभी या चुदक्कड़ आंटी की चूत की दीवारों से टकराती है तो वो अंदर तक आनंदित हो जाती है. मुझे कई बार इसके लिए प्रशंसा सुनने को मिलती है कि ऑर्गेज्म का मजा कैसा होता है वो तो कोई मुझसे से सीखे.

लौड़े का साइज 7 इंच के करीब है. शरीर भी काफी आकर्षक है जिसको देख कर किसी भी लड़की या महिला की चूत गीली होना शुरू हो जाये. मेरे लंड का सुपारा गुलाबी रंग का है और मैं अपने लंड की साफ सफाई का पूरा ध्यान रखता हूं.

इतनी चूतों की चुदाई के बाद भी लंड को देख कर कोई ये नहीं बता सकता कि इसने इतनी चूतों को खुश किया हुआ है. लंड एकदम से चमकता रहता है.

अपनी सेक्स यात्रा के दौरान ही मुझे हाल ही में एक आंटी मिली. उसी की कहानी मैं आपको संक्षेप में बताना चाहता हूं. वो आंटी दरअसल हमारे पास ही किराये के मकान में रहने के लिए आई थी.

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अभी तक मेरी उससे मुलाकात नहीं हुई थी. हां एक दो बार उसको बालकनी में कपड़े या तौलिया सुखाते हुए जरूर देखा था मैंने. फिर दिन गुजरते गये और मेरा ध्यान उसकी ओर जाने लगा. उसकी चूचियां काफी मोटी थीं. शक्ल से कुछ खास नहीं थी लेकिन फिगर एकदम कातिल था.

उसकी चूचियां मुझे उसकी ओर सबसे ज्यादा आकर्षित कर रही थीं. जब भी वो मेरे सामने होती थी मैं उसकी वक्षरेखा में झांकने की कोशिश किया करता था. वो भी तेज लग रही थी. मेरे इरादे भांप चुकी थी. लेकिन अपनी तरफ से वो पहल नहीं करना चाह रही थी शायद.

आप इसे मेरी एक खासियत समझ सकते हैं कि जिस भी लड़की, महिला या आंटी पर मेरा दिल आ जाता है मैं उसको चोद कर ही दम लेता हूं. मैं किसी भी महिला या लड़की को देख कर बता सकता हूं कि वो चुदक्कड़ है या नहीं. यहां तक कि इस बात का अंदाजा भी लगा लेता हूं कि सामने वाली चूत कितनी बार चुद चुकी होगी.

एक दिन आंटी ने मेरी ओर देखा था. उसी दिन मुझे पता लग गया था कि इसकी चूत में खुजली है. मैं तभी से उसको फांसने की तैयारी में लग गया लेकिन सीधे तौर पर मैं भी पहल नहीं करना चाहता था. मैं चाहता था कि वो खुद ही अपनी चूत चुदवाने के लिए तड़प उठे.

उन दिनों मौसम भी अच्छा और सुहावना था. मेरे दिमाग में एक आइडिया आया. मैं अपनी बालकनी में बिना शर्ट के घूमने लगा. कभी तो बनियान में होता था और कभी कभी बनियान भी नहीं डालता था. मैं देखना चाहता था कि आंटी की चूत की प्यास किस कदर बढ़ी हुई है.

एक दिन मैं अपनी बालकनी में बिना शर्ट और बिना बनियान के खड़ा हुआ था. मैंने जब पड़ोसी के घर की ओर नजर घुमायी तो आंटी चोर नजर से मेरी ओर ताक रही थी. वो तौलिया सुखा रही थी लेकिन खुल कर देखना भी नहीं चाहती थी. मैंने भी एक नजर देखकर मुंह फेर लिया.

फिर तो वो रोज ही बालकनी में सुबह दिखाई देने लगी. मैं भी जानबूझ कर बालकनी में निकल आता था. कभी एक्सरसाइज करने लग जाता था तो कभी धूप सेकने बैठ जाता था. आंटी की चूत में खुजली पैदा कर दी थी मैंने. अब बस उसकी चूत को लंड के लिये तड़पाने की बारी थी.

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अगले दिन मैं केवल अंडरवियर में बाहर निकला. मैंने वी-शेप की फ्रेंची डाली हुई थी. वो भी एकदम से कसी हुई थी. मेरा लंड अलग से ही शेप लिये दिखाई पड़ रहा था. मैं बालकनी के दूसरे छोर पर खड़ा हो गया. मेरे हाथ में चाय का कप था और मैंने हाथ में एक मैगजीन उठा ली थी.

मैगजीन का तो बहाना था, मैं तो आंटी को अपने लंड के दर्शन करवाना चाह रहा था. आंटी भी संभावित समय पर बाहर निकल आई. मुझे पता लग गया था कि आंटी आ चुकी है लेकिन मैंने उस तरफ ध्यान नहीं दिया. मैं चाय पीते हुए मैगजीन में देखता रहा.

मेरी फ्रेंची का मुंह आंटी की ओर ही था. हल्की सी उत्तेजना के कारण लंड की शेप भी उभर गयी थी.
मैंने नीची नजर से देखा कि आंटी मेरी फ्रेंची की ओर देख कर अपने होंठ दबा रही थी. तीर सही निशाने पर लगा था. बस अब तो आंटी की चूत में पानी आ ही गया होगा. मेरा काम हो गया था और मैं अंदर चला गया.

कुछ ही देर के बाद दरवाजे की बेल बजी. उस दिन घर में मैं अकेला ही था. देखा तो पड़ोस वाली आंटी दरवाजे पर खड़ी हुई थी.
मैंने दरवाजा खोला तो वो बोली- आपसे हेल्प चाहिए थी.
मैंने अन्जान बनते हुए कहा- जी कहिये.

उस वक्त मैंने कंधे पर तौलिया डाला हुआ था जो मेरी जांघों तक आ रहा था. अंडरवियर तौलिया के पीछे था. आंटी ने एक सरसरी नजर से नीचे देखा और फिर बोली- आपके पास मिक्सर ग्राइंडर है क्या, मुझे नाश्ता बनाना है. मेरे वाला खराब हो गया है.

मैंने कहा- हां है तो.
वो बोली- थोड़ी देर के लिए दे दोगे.
मैंने मन ही मन कहा- आप अंदर तो आओ, पूरा ही दे दूंगा.
फिर मैं बोला- जी ठीक है, ले जाइये. वैसे भी मैंने नाश्ता कर लिया है और घर पर भी कोई नहीं है.

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