एक दम सेक्सी पड़ोस की लड़की की गांड चोदा

कविता अब तो पूरी तरह चुदासी हो गयी थी। मैंने अपने लण्ड को हाथ में ले लिया और उसके बूब्स की निपल्स को लण्ड से डंडी की तरह मारने लगा। मैं उसके मुँह को बुर समझकर जल्दी जल्दी अपनी 4 उँगलियों से चोदने लगा। मैंने उसके बाल रंडियों की तरह कस कर पकड़ रखे थे और अपने लण्ड और उसको झुका रखा था। वो मेरा लण्ड मुँह में लेने दौड़ी तो मैंने पीछे कर लिया। मैंने उसे इसी तरह कई बार तड़पाया। फिर आखिर उसने मेरा लण्ड मुँह में ले लिया और मस्त चूसने लगी। जब मैंने खूब जी भरके उससे चुस्वा लिया तो मैंने उसे खड़ा कर दिया। मैंने उसको पिछु घुमा दिया। मैंने उसके लाल लाल चूतड़ों पर कई चांटे जड़ दिए जिससे वो लाल हो गए। मैंने अपने लण्ड को उसकें चूतड़ों के बीच में डाल दिया और उसकी बुर का छेद ढूंढने लगा। जब बहुत ढूंढने पर भी मैं उसकी बुर का छेद नहीं ढूंढ पाया तो खुद कविता ने मेरे लण्ड हाथ में पकड़ लिया और अपनी बुर के छेद में डाल दिया।

मैं मस्ती से उसे चोदने लगा। तभी मेरा ध्यान उसकी गाण्ड की तरह गया। दोंस्तों, जब मैंने उसकी गाण्ड देखी तो मेरे होश उड़ गये। ये मोटा छेद था उसकी गाण्ड में। मैंने तो बस एक ऊँगली उसकी गाण्ड में डालनी चाही थी पर दोंस्तों मेरी 4 उँगलियाँ उसकी गाण्ड में चली गयी। मैं समझ गया कि रंडी बहुतों से चुद भीं चुकी है और गाण्ड भी मरवा चुकी है। अब तो मैं ढींचक ढींचक और भी जोश से उसको चोदने लगा। दोंस्तों उस समय धुप खिली थी। सूर्य देवता के सामने ही मैं चुदाई का मजा ले रहा था। वहां पर अनेक चिड़ियाँ भी चह चहा रही थी। खुले में चुदाई करने का मजा तो मुझे आज मिला था। बन्द कमरों में चुदाई करने में तो जरा भी मजा नहीं आता है।

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मैं और जोश से धांय धांय धक्के मारने लगा। कविता के दोनों चुच्चे रेलिंग ने बाहर झूलने लगे। एक बार तो हल्का दर भी लगा की कहीं मेरी कोई चुदाई की वीडियो ना बना ले, कहीं ये वायरल ना हो जाए। फिर मैंने सोचा की अगर इतना ही डरूंगा तो कभी कोई मजा नहीं ले पाऊँगा। अब मैं एक बार कविता की बुर में ही झड़ गया था। मैंने उसको रेलिंग पर खड़े खड़े ही चोदा था। अब मैंने अपना लण्ड कविता की बुर से निकाल लिया। और उसकी गाण्ड के बड़े से छेद में डाल दिया।
मुझे कस के चोदो परदेसी!! मुझे रंडी बना दो!! आज मुझे रंडी बनना है!! आज मेरी गाण्ड को मत छोड़ना!! आज मेरी खूब गाण्ड मारो परदेसी!! कविता जोर जोर से चिल्लाने लगी।

सच में वो बहुत चुदासी हो गयी थी। मैंने अपना लण्ड उसकी गाण्ड में डाल दिया। उसने अपने दोनों हाथों से अपने दोनों चुत्तरो को पकड़ लिया और फैला दिया। अब तो उसकी गाण्ड का छेद और भी ऊपर आ गया। मैं तो अब दुगुने जोश से कविता की गाण्ड चोदने लगा। चुदी चुदाई गाण्ड चोदने में एक खास सुख मिलता है दोंस्तों। और जब कविता जैसे रंडी मिल जाए तो कहना ही क्या। मैं खूब हचाहच उसकी गाण्ड चोदने लगा। मैं चट चट उसके चूतड़ों पर चांटे ज़माने लगा। और मस्ती ने उसको चोदने लगा। मुझे बहुत मजा आ रहा था दोंस्तों। मैं उसे घण्टों बाहर बालकनी में खड़े खड़े ही चोदा और उसकी गाण्ड मारी।

अब मैं वही लकड़ी की बालकनी में लेट गया। कविता मेरे ऊपर बैठ गयी। उसने मेरा लण्ड अपनी बुर में डाल लिया। वो मेरे ऊपर उछलने लगी और चुदवाने लगी। कविता बहुत ऐक्सपर्ट थी, वो बड़े हिसाब से उछल उछलकर चुदवा रही थी। दोस्ती उसने इसी तरह मेरे ऊपर बैठकर खुद मस्ती से चुदवाया।

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दोंस्तों, पहाड़ की वो चुदाई मैं कभी नहीं भूल पाउँगा। मेरे दिल में उस चुदाई की यादे हमेशा ताजा रहेंगी। मैं कई दिनों तक इसे तरह लड़कियाँ बदल बदल कर शिमला की वादियों में चुदाई करता रहा। फिर 2 हफ्तों बाद वापिस लखनऊ लौट आया।

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