एक दम सेक्सी पड़ोस की लड़की की गांड चोदा

नमस्कार दोंस्तों, मैं दीपू आपका स्वागत करता हूँ। मैं लखनऊ का रहने वाला हूँ। मैं मैदानी जिंदगी ने ऊब गया था। लखनऊ की भीड़ भाड़, ट्रैफिक से मैं कुछ दिनों के लिए दूर जाना चाहता था। बस मैंने बैग उठाया और आ गया शिमला। यहाँ पर एक रिसोर्ट में आकर रुक गया। आआहा यहाँ कितनी शांति थी। चारों तरह हरी हरी वादियाँ थी। मेरा मन खुश हो गया। बार बार यही दिल कह रहा था कि कास अगर चूत का इंतजाम हो जाता तो कितना अच्छा रहता। यहाँ ठंडी पड़ रही थी। लोग रम, व्हिस्की भी खूब पीते थे।

मैं अपने रिसोर्ट के बार में गया और रम का आर्डर दिया। एक मस्त पहाड़ी वेट्रेस मेरे लिए ड्रिंक लेकर आई।
क्या नाम है तुम्हारा?? मैंने हँसकर पूछा
कविता!! वो बोली
कोई लड़की वड़की नही मिलेगी?? मैंने भौहें उचकाकर पूछा। वो समझ गयी की मैं किस बारे में बात कर रहा हूँ।
500 लगेगा!! वो बोली
चल!! मैंने कहा।

दोंस्तों, यहाँ शिमला में लोग अपनी बालकनी में भी दिन में खुले में चुदाई करते थे। मैंने कमरे में तो बड़ी चुदाई की थी। मै तो पूरे मुड में था कि बाहर बालकनी में आज चुदाई करूँगा। उस समय 10 बजे थे। पहाड़ी पर धुप निकल आयी थी। बड़ा सुहावना मौसम था। मैं कविता को लेकर ऊपर आ गया। मैं उसे बालकनी में दूसरी तरह ले गया जहाँ कोई हमको देख ना पाए चुदाई करते हुए। वो काफी गोरी थी, बिलकुल अंग्रेज लगती थी। मैंने उसकी शर्ट के बटन खोल दिये। उसकी ब्रा भी निकाल दी। क्या मस्त बूब्स थे उसके।

वो भी अपने चुदाई अवतार में आ गयी। वो बार में वेट्रेस का काम भी करती थी और मैंने एक दो हाथ उसके बूब्स के निपल्स पर मारे। चाटे मारने से उसके बूब्स जाग गया। मैनें जोर जोर से उसके बूब्स और चाटे मारे। कविया रंडीबाजी भी करती थी। वहां से एक्स्ट्रा पैसे कमाती थी। ओहः क्या मस्त बूब्स थे उसके। अचानक से मेरा मन बदला। मैंने अपने पूरे कपड़े निकाल दिए। मैं नँगा हो गया। मैं एक कुर्सी पर बैठ गया। कविता मेरे सपने रेलिंग पर खड़ी हो गयी। मैंने अपना एक पैर उसके मुँह में ढूस दिया। वो चुदासी लड़की की तरह मेरे पैर और उसकी उँगलियाँ चूसने लगी। मेरे मेरे अंघुठे, मेरे उँगलियों को अपने मुँह में लेकर चूस रही थी। मुजें बड़ा मजा आ रहा था। उसके गुलाबी रसीले होंठ मेरे पैर की उँगलियों को कामुकता के साथ चूस रहे थे। मैं उसके बूब्स सहला रहा था।

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फिर मैंने दूसरा पैर भी उसके मुँह में दे दिया। वो उस पैर के भी अंगूठे और उँगलियों को चूसने लगी। मेरे लण्ड खड़ा होने लगा। मेरी गोलीयाँ अब कसने लगी। मैं कविता को चोदने को बेताब हो रहा था। वो भी बहुत चुदासी हो गयी थी। फिर मैंने अपना पैर उसके मुँह से निकाल लिया और उसकी छतियों पर रख दिया। अब मैं अपने पैर से उसके बूब्स दबा रहा था। मुझे बहुत मजा आ रहा था। फिर मैं अपना दूसरा पैर भीं कविता के बूब्स पर रख दिया। कविता मेरे सामने रेलिंग का सहारा लेकर खड़ी हो गयी। मैं अपने दोनों पैरों से उसके दोनों बूब्स को टमाटर की तरह कुचल रहा था। मैं चुदास में डूब चूका था। मैंने आजतक बस कमरे में ही चुदाई की थी।

आज पहली बार मैं खुले में चुदाई का मजा ले रहा था। यहाँ से वादियों का मजा ही कुछ अलग था। दूर दूर तक बस पहाड़ ही पहाड़ दिख रहे थे। मैंने कविता के कपड़े भी उतरवा दिए। अब मैंने अपने पैर ने उसकी बुर में ऊँगली करने लगी। मैं अपने पैर के अंघुठे से उसकी बुर को सहला रहा था। वाकई ये कमाल का था। मेरा एक पैर उसकी नाभी को सहला रहा था। कविता भी चुदासी हो गयी थी। अब मैं उसके बुर को जल्दी जल्दी अपने पैर के अंगूठे से घिसने लगा। फिर तो मैं और आगे बढ़ गया। मैंने अपने पैर का अंगूठा उसकी बुर में अंदर पेल दिया। और जल्दी जल्दी उसकी बुर अपने अंगूठे से चोदने लगा।

कविता भी बिलकुल मस्त और चुदासी हो गयी। आज तक उसको कई लोगों ने चोदा था पर पैर के अँगूठे से उसको आजतक किसी ने नहीं चोदा था। मैं गचागच उसकी बुर को अपने पैर के अँगूठे से चोद रहा था। मैंने आधे घण्टे तक कविता की बुर को अपने लण्ड से नहीं बल्कि अपने अंगूठे से चोदा। उसने अपना पानी छोड़ दिया। उसकी गर्म गर्म गाढ़ी मलाई से मेरे अंगूठा भीग गया। मन तो कर रहा था कि उसकी बुर में अपना पूरा पैर ही घुसेड़ दी। पर दोंस्तों ऐसा नहीं हो सकता था। ये नामुमकिन था, वरना मैं उसकी बुर में अपना पूरा पैर ही घुसेड़ देता। अब तो मेरा लण्ड भी पूरी तरह से तैयार था कविता को चोदने के लिए।

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मैंने अपना अंगूठा दोबारा कविता के मुँह में पेल दिया। मेरा अंगूठा उसके गर्म मॉल।से भीगा था। अब कविता अपना गरम माल खुद चाटने लगी। अब मुझसे खड़ा नहीं रहा गया। मैं खड़ा हो गया। मेरा लण्ड बिलकुल तन्ना गया था। ये तो बिलकुल लोहे की तरह हो गया था। ये लण्ड किसी भी चूत को फाड़ सकता था। इतनी ताकत थी इस लण्ड में इस समय। मैं खड़ा हो गया। मैंने कविता रंडी को नीचे उसके घुटने पर बैठा दिया। मैंने अपना लण्ड उसके मुँह में डाल दिया। वो मस्ती से मेरा लण्ड चूसने लगी।

मुझे मजा आ गया। लण्ड चुस्वाने में तो वैसे।ही बड़ा मजा आता है। कविता जोर जोर से सिर हिलाकर मेरा लण्ड चूसने लगी। मुझे शैतानी सूझी। मैं लण्ड निकाला और उससे ही उसके मुँह, नाक होंठों पर मारने लगा। उसे बहुत अच्छा लगा। मैंने अपने लण्ड का इस्तेमाल किसी डंडी की तरह किया। जिस तरह से टीचर बच्चो के हाथ में डंडी से मरता है ठीक उसी तरह मैं अपने लण्ड को हाथ में पकड़ कविता के मुँह और गालों पर मार रहा था। उसे भी मौज आ गयी थी। वो चाहती थी की मैं उसे जल्दी से बस चोदूँ पर मैं उसको पूरा तड़पा रहा था। अब तो मैं और।चुदासा हो गया। मैंने उसे बालों से रंडी की तरह पकड़ लिया। जैसै रंडियों को खींचकर द्रौपदी की तरह चीर हरड़ करते है उसी तरह मैंने कविता को कसके बालों पर पकड़ लिया रंडी की तरह। मैंने उसके मुँह में अपना हाथ डाल दिया और अपने लण्ड से उसके बूब्स पर मारने लगा।

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