मेरी पहली चुदाई

मैं गुजरात की रहने वाली हूँ और सांवली लेकिन भरे फ़ूले शरीर की मालकिन हूँ। मैं एक अच्छे खाते पीते परिवार की लड़की हूँ। मेरे पापा बहुत बड़े सरकारी अफसर हैं। मेरी मां एक पढ़ी-लिखी और फ़ेशनेब्ल स्त्री हैं, वहीं मेरे पापा बहुत ही शरीफ़ और इमानदार अफ़सर है। मेरा भाई विदेश में रहता है।

मेरे भाई का एक दोस्त था, जिसका एक छोटा भाई था जिसका नाम अरविन्द था। अरविन्द अपने भाई के साथ कई बार हमारे घर आया करता था। मुझे अरविन्द शुरु से ही बहुत पसन्द था। धीरे धीरे वो भी मुझे पसन्द करने लगा था।

अब वो अपने भाई के बिना भी हमारे घर आने लगा था। हम दोनों अक्सर मोबाईल पे बातें किया करते थे, अब हमारी बातें प्रेमियों की तरह होने लगी थी। वो हमारे घर किसी ना किसी बहाने से आ ही जाता था। घर वाले उसके इस तरह घर आने पे शक भी नहीं करते थे।

इस तरह एक साल बीत गया और अब तक मुझे भी दोस्ती और प्यार में फ़र्क पता चल गया था, मेरे मन में भी अरविन्द को लेकर कई तरह के खयाल आने शुरु हो गये थे।

अब हम मोबाइल पर एक दूसरे का चुम्बन आदि करने लगे थे, इसी तरह अरविन्द ने मिलने पर भी चुम्बन मांगना शुरु कर दिया लेकिन मैं उसे मना कर देती थी।

लेकिन मैं उसको इस तरह ज्यादा दिन मना नहीं कर पाई और एक दिन वो मुझे पढ़ाने के बहाने मेरे घर आया। मेरी माँ अपने कमरे में टी वी देख रही थी, उस वक्त उसने मुझे अचानक कन्धों से पकड़ लिया और मुझे चुम्मा देने के लिये कहने लगा।

इस बार मैं उसको मना नहीं कर पाई और उसने माँ के आ जाने के डर से मुझे धीरे से एक बार चूम कर छोड़ दिया। कुछ ही देर बाद वो वापिस अपने घर चला गया।

उस रात मैं बेसब्री से उसके फोन का इन्तजार कर रही थी कि ग्यारह बजे के करीब उसका फोन आया। मैं बहुत खुश थी।

उसने मुझे पूछा- तुम्हें चुम्बन में मजा आया?

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तो मैंने अपने दिल का हाल उसे बता दिया।

उस दिन उसने मेरे साथ फोन सेक्स भी किया। मेरी हालत बहुत खराब हो चुकी थी, मेरा दिल चाह रहा था कि अरविन्द अभी आ जाये और मुझे अपनी बाहों में भर के वो सब कुछ कर डाले जो फोन पे कह रहा था।

अब हम मिलते तो चुम्बन तो आम हो गया था अब अरविन्द बेझिझक मेरे शरीर पर जहाँ चाहता हाथ फ़ेरता था। हमने घर से बाहर रेस्टोरेन्ट में भी मिलना शुरू कर दिया था। वहाँ अरविन्द बेझिझक मेज़ के नीचे मेरी स्कर्ट के अन्दर मेरी जांघों पर हाथ फ़ेरता था कभी मौका पा के शर्ट के उपर से ही मेरे स्तनों को सहला देता था।

ये सब मुझे बहुत अच्छा लगता था। घर पे मैं अपने भैया का कम्प्यूटर ही प्रयोग करती थी जिस में मैं कई बार ब्लू-फ़िल्म देखा करती थी। अब मुझे इस सबकी अच्छी तरह समझ आ चुकी थी। मैं मन ही मन ना जाने कितनी बार अरविन्द के साथ सम्भोगग कर चुकी थी। इस बीच मेरे पापा का तबादला कहीं और हो गया लेकिन मेरी पढ़ाई की वजह से मुझे और मेरी माँ को गुजरात में ही रुकना पड़ा।

इसी बीच एक बार हमारा एसी खराब हो गया और पापा ने जहाँ से एसी लिया था वहाँ फोन से शिकायत लिखवा दी। उस दिन रविवार था और वो शोरूम बन्द था इसलिए शोरूम के मालिक जो हमारे घर के पास ही रहते थे का बेटा खुद एसी चेक करने हमारे घर आ गया।

उनके परिवार से हमारे बहुत अच्छे पारिवारिक सम्बंध थे, अक्सर हमारे घर आते जाते रहते थे। उनका नाम सोमेश था, मैं उनको सोमेश भैया कहती थी। वो करीब 27-28 साल के होंगे। उन्होंने थोड़ी ही देर में एसी ठीक कर दिया। माँ ने उन्हें कोल्ड ड्रिंक वगैरह पिलाई और कुछ देर बातें करने के बाद वो चले गये।

लेकिन इसके बाद उनका हमारे घर आना जाना बढ़ गया। अकसर माँ उनसे फोन पे बातें करती रहती थी जो मुझे अच्छा नहीं लगता था। हम शनिवार और रविवार को पापा के पास चले जाया करते थे या पापा यहाँ आ जाया करते थे और घर की चाबियाँ सोमेश भैया के पास ही रहती थी, दूसरी चाबी हमारे पास होती थी।

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एक बार माँ किट्टी-पार्टी पे जा रही थी। जब माँ जा रही थी तो सोमेश भैया भी बाहर खड़े थे, माँ ने उन्हें मेरा ध्यान रखने को बोला और चली गई।

माँ के घर से बाहर जाते ही मैंने अरविन्द को फोन कर दिया तो अरविन्द ने घर पे मिलने की जिद करनी शुरु कर दी, मन तो मेरा भी बहुत कर रहा था अरविन्द को अकेले में मिलने का, मैंने माँ को फोन करके अपनी सहेली के घर जाने का पूछा, माँ ने कह दिया कि मैं 3-4 घंटे में वापिस आ जाउँगी उससे पहले वापिस आ जाना।

मैंने अरविन्द को फोन किया और घर बुला लिया। मैं भी बहुत खुश थी कि आज अरविन्द के साथ जो अपने सपनों में होते देखा था आज हकीक़त में उसका मजा लूँगी।

इसी बीच अरविन्द आ गया। अरविन्द को अन्दर बुला कर मैंने जल्दी से बाहर वाले दरवाज़े को लॉक कर लिया। मैंने उस समय आसमानी रंग की स्कर्ट और सफ़ेद रंग का टोप पहना हुआ था। अरविन्द ने मुझे वहीं से अपनी बाहों में उठा लिया और बेडरूम में ले गया।

वो कुछ ज्यादा ही जल्दी में लग रहा था, मैंने उसे कहा- माँ ने 3-4 घंटे बाद वापिस आना है, पहले कुछ खा पी तो लो!

लेकिन वो कहने लगा- एक शिफ़्ट हो जाये उसके बाद देखेंगे खाना पीना!

कुछ ही पलों में मैं सिर्फ़ ब्रा और पेंटी में थी। उस समय मैं 30 नम्बर की ब्रा पहनती थी जोकि उम्र के हिसाब से कहीं बड़ा था। अब मैं भी आपा खो चुकी थी मैंने जल्दी से अरविन्द की टी-शर्ट उतार दी और उसकी पैंट की जिप खोलने लगी, उसने मेरी ब्रा की हुक खोल दी और मेरे मम्मों को बाहर निकाल के चूसना शुरु कर दिया। मैंने भी अरविन्द का लण्ड बाहर निकाल के उसको हाथों से सहलना शुरु कर दिया।

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