उसी प्यास ने मुझे बुरी तरह झुलसाना शुरू कर दिया था, राजेन्द्र के अंडरवीयर को नीचे करके मैंने उसके लिंग को अपने हाथों में ले लिया, लिंग तप रहा था मानो जैसे मेरे हाथों में जलती हुई लकड़ी आ गई हो।
लेकिन यह क्या मैं चिहुंक उठी !
राजेन्द्र का लिंग तो मुश्किल से छः साढ़े छः इंच का था वह भी पूरी तरह उत्तेजित अवस्था में, मोटाई भी कोई ख़ास नहीं थी, इतने छोटे आकार प्रकार के लिंग से मेरी योनि क्या खाक संतुष्ट होनी थी, मुझे तो कम से कम आठ नौ इंच का लण्ड चाहिए था और अगर डबराल सर के जैसा बलिष्ठ हो तब तो कहना ही क्या ! इतने छोटे लिंग से ना तो मुझे ही कुछ मज़ा आना था और ना ही राजेन्द्र को !
मैं उसके लिंग-मुंड को सहला कर बोली- राजेन्द्र ये क्या ! तुम्हारा लिंग तो बहुत ही छोटा है, मुझे तो उम्मीद थी कम से कम नौ इंच का लिंग तो होगा ही ! इसीलिए तो मैने तुम्हें यहाँ बुलाया !
क्या ? ….राजेन्द्र चौंक उठा, उसने मेरे स्तनों से अपना मुख हटा लिया, उसकी आँखों में अपमान के से भाव थे, उसे मेरे शब्दों पर सख्त हैरानी हुई थी।
क्या…… क्या ? तुम अपने लिंग को मेरी योनि में डाल कर देख लो, ना तो तुम्हे मज़ा आएगा और ना ही मुझे, तुम्हें तो मज़ा मैं मज़ा फिर भी दे दूंगी…….लेकिन मेरे क्या होगा, मैंने उसके लिंग को सहलाना नहीं छोड़ा था।
तो क्या इतनी बड़ी है तुम्हारी योनि…..? उसने हैरत से प्रश्न किया।
तुम डाल कर स्वयं देख लो….. ! मैंने कहा।
मेरे उकसाने पर राजेन्द्र नें अपना लिंग मेरी योनि में लगा कर एक हल्का सा सा ही धक्का दिया था की उसका पूरा का पूरा लिंग मेरी योनि में ऐसे समा गया जैसे वह किसी पुरुष का लिंग ना हो कर कोई पैन हो, मुझे कुछ अहसास भी नहीं हुआ।
हैं….. !!! राजेन्द्र चौंका, उसने लिंग बाहर निकाल लिया।
क्यों….? क्या हुआ….? मैंने कहा, तो वह शरमा गया, उसे अपने लिंग के छोटे आकार पर शर्म आ रही थी।
इधर आओ…. ! मैंने उसका हाथ पकड़ कर दीवार की और बढ़ते हुए कहा- तुम्हें तो मज़ा आ जायेगा ! मैं अपनी जाँघों को बिलकुल भींच कर दीवार से पीठ लगा कर कड़ी हो जाउंगी तब तुम अपने लिंग को मेरी योनि में डाल कर घर्षण करना ! लेकिन हाँ…. शाट ऐसे जबरदस्त होनें चाहिए कि पता लगे कुछ……. ! दूसरी बात, मेरे स्तनों को चूसते रहना……….. ! मुझे स्तन पान में बहुत मज़ा आता है…… !
यह कहते हुए मैं दीवार से पीठ लगा कर खड़ी हो गई और मैंने अपनी जांघें भींच ली और राजेन्द्र के लिंग को अपनी टाईट हो गई योनि के मुख पर लगा लिया, अब कुछ पता लगा कि योनि में कुछ प्रविष्ट हुआ है।
राजेन्द्र ने अपने हाथों से मेरी कमर पकड़ कर मेरे स्तनों को चूसना भी शुरू कर दिया था, वह कामुक ध्वनियाँ छोड़ने लगा था, उसकी साँसें भभकने लगी थी।
वह तेज तेज शाट मारने लगा तो मैं भी सिसकारियों के भंवर में फंस गई, उसका लिंग बेशक छोटा था किन्तु उसके शाट इतने बेहतरीन होते जा रहे थे कि मैं उस पर फ़िदा हो गई, मुझे आनंद आने लगा था, मेरे हाथ राजेन्द्र के कन्धों पर जम गए थे और राजेन्द्र ने उत्तेजना के वशीभूत मेरे स्तनों पर अपने दांत के निशान तक डाल दिए थे।
चरम सीमा पर पहुँच कर राजेन्द्र के धक्के इतने शक्तिशाली हो गए थे कि मुझे अपनी हड्डियाँ कड़कडाती महसूस होने लगी, मेरे कंठ से कामुक ध्वनियाँ तीब्र स्वर में फूटने लगी, अचानक ही मैंने अपनी जांघें खोल दी, राजेन्द्र का तपता लिंग बाहर निकाल कर अपने मुंह में डाल लिया।
राजेन्द्र ने मेरे मुंह में ही अंतिम धक्के मारे और स्खलित हो गया, उसका उबलता वीर्य मेरे कंठ में उतर गया, वह मेरे ऊपर निढाल सा हो गया, मैं उसके लिंग को चाटने लगी।
फिर जब दो चार क्षणो में उसकी चेतना लोटी तो मैंने उससे कहा- राजेन्द्र, वो उस कोने में जो फावड़े का लकड़ी का दस्ता पड़ा है वो उठा लाओ…..
इस कमरे में ऐसी छोटी-मोटी अनेक चीजें पड़ी रहती थी, जैसे फावड़ा, तसला, रस्सी, टूटी बेंचें या चटकी टेबल, उन्हीं चीजों में से एक फावड़े का लकड़ी का दस्ता मुझे दिखाई दे गया था, मेरी आँखें उसे देखते ही चमक उठी थी।
क्यों….. ? राजेन्द्र ने पूछा।
लेकर तो आओ….. ! मैं बोली।
मैंने अपने नग्न तन को ढकने का प्रयास नहीं किया, शरीर पर मात्र स्तनों के नीचे फंसी ब्रा थी और नितंबों पर स्कर्ट थी जिसके नीचे पेंटी नहीं थी।
राजेन्द्र अपनी पेंट ऊपर कर चुका था, वह फावड़े का दस्ता ले आया, यह ढाई तीन फुट का गोलाई वाला डंडा था, एक ओर की मोटाई दो-ढाई इंच थी, दूसरी ओर की तीन चार इंच थी,
मैंने उसके हाथ से डंडा ले लिया और गंदे फर्श पर ही चित्त लेट गई, मैंने स्कर्ट पेट पर चढ़ा कर डंडे के पतले वाले सिरे को अपने ढेर सारे थूक में भिगो कर अपनी योनि पर लगाया और हल्के से दबाव से ही डेढ़ दो इंच तक योनि में समां गया, मुझे उसकी कठोर मोटाई के कारण अपनी जांघें पूरी खोलनी पड़ी।
राजेन्द्र ! इसे धीरे धीरे आगे पीछे करते हुए मेरी योनि में घुसाओ….. ! मैंने राजेन्द्र से कहा।
राजेन्द्र हैरत से मुझे देख रहा था, वह मेरे निकट बैठ गया और उसने डंडा पकड़ लिया और मेरे कहे अनुसार उसे आगे पीछे करने लगा, वह बड़े ही संतुलन के साथ यह क्रिया कर रहा था, उसे मालूम था कि डंडे के टेढे मेढे होने से मेरी नाजुक योनि को नुकसान पहुँच सकता है इसलिए वो बहुत एहतियात के साथ डंडे को आगे बढ़ा रह था।
मैं अब सिसकारी भरने लगी थी, मुझे जांघें और ज्यादा या यूँ कहिये की संपूर्ण आकार में खोलनी पड़ रही थी, मैं अपने हाथों से ही अपने स्तनों को मसले डाल रही थी, डंडे के कठोर घर्षण ने मुझे शीघ्र ही चरम पर पहुंचा दिया और मैं स्खलित हो कर शांत पड़ती चली गई।
राजेन्द्र ने डंडे को योनि से निकाल कर उसके उतने हिस्से को जितना कि मेरी योनि में समाने में सफल हो गया था उसे देख कर कहा……..ग्यारह बारह इंच…..माई गाड…..रजनी डार्लिंग तुम्हारे आगे कौन पुरुष ठहरेगा ! तुम तो पूरी कलाई डलवा सकती हो अन्दर….क्या तुम्हें दर्द नहीं होता इतनी लंबाई से?
उफ…मैं बैठ गई और बोली- कैसा दर्द डीयर…… ! मेरा तो वश नहीं चलता वरना ऐसे कई डंडे अन्दर कर लूँ ….. ! मेरी योनि में जितनी लंबी और जितनी मोटी चीज जाती है मुझे उतना ही ज्यादा मजा आता है, चलो अब…. ! काफी देर हो गई !
मेरे शब्दों पर वह मुझे आश्चर्य से घूरता रह गया था, उसके बाद हम वहाँ से चले आये थे।
इस प्रकार अपनी योनि के साथ भाँति भाँति के अजीब ढंग के प्रयोग करते करते मेरा समय निकल हो रहा था कि विदेश से मेरी दोनों भाभी आ गई, वे अंग्रेज थीं, वे एक माह के लिए हिन्दुतान घूमने आई थी।