मेरा दोस्त के बीवी को चोदके बड़ा मज़ा आया

शायद अब उसे भी मज़ा आने लगा था और ताबड़तोड़ चुदाई के बाद वो भी अपनी
गाण्ड को उठा-उठाकर मेरा साथ देने लगी और उसने अपने जिस्म को पूरी तरह
टाईट कर लिया।
मैं समझ गया कि वो झड़ने वाली है.. तो मैं अब और भी ज़ोर-ज़ोर से धक्के
देकर चोदने लगा।
वो चिल्लाने लगी- आअहह..आआह्ह.. इसस्सई इसस.. अहह..ह्ह्ह्हह चोदो मुझे और
ज़ोर से.. उह्ह्ह्ह ह्ह्ह्ह चोदो मुझे..।
वो झड़ गई और शांत हो गई।

अब मेरी बारी थी.. तो मैंने उससे पूछा- अपना पानी कहाँ निकालूँ?
तो वो बोली- अन्दर ही छोड़ दो.. मैं भी आज तेरे पानी का मजा ले ही लूँ।

बस 5-7 जोरदार धक्कों के बाद मैं भी झड़ गया और उसके ऊपर ही लेट गया और
दस मिनट लेटे रहने के बाद जब हम नॉर्मल हुए तो हमने दोबारा एक गहरा किस
किया और एक-दूसरे को अपनी बाँहों में भर लिया।

ऐसे ही दूसरे दिन भी चुदाई की।
पर दोस्त मुझे तुमसे छुपा कर अच्छा नहीं लग रहा इसलिए मैंने ये सब बता दिया।
हम दोनों चुप थे।

उसकी बात सुन कर मुझे लगा कि ना इसमें संजय का दोष है और ना कीर्ति का..
क्योंकि यह सब समय और संयोग के कारण हुआ।
मैं बोला- कोई बात नहीं.. चलता है आखिरकार दोस्त है मेरा तू..

ऐसी बात से मैं उससे दोस्ती तोड़ना नहीं चाहता था.. क्योंकि काम का बंदा
था। एक तो पैसे वाला और जान-पहचान वाला और मुझसे उसने सच्ची दोस्ती की
थी.. इसलिए तो उसने मुझे सब सच बताया।
मैं भी ऐसा सच्चा दोस्त भी खोना नहीं चाहता था।

संजय- तुम मुझ पर गुस्सा नहीं हो?
मैं- था.. जब तुमने कहा कि संबध बनाए.. फिर इसके पीछे का कारण सुन कर
बिल्कुल नहीं लगा कि तुम दोनों में से किसी का दोष था।
संजय मुझसे ‘सॉरी’ बोल कर मुझसे लिपट गया।

मैं- अबे साले ड्रामा बंद कर.. और आगे कभी भी तू भाभी के साथ करना चाहो
या करो.. तो मुझे बताना.. पर हमेशा सच बोलना..
संजय- हे..
मैं- हे क्या.. हाँ या ना..
संजय- ह..हाँ..

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मैं- और तूने मुझे बता दिया है कि क्या हुआ था.. पर इस बारे में कीर्ति
को मत बताना।
संजय- क्यों?
मैं- उसने शायद ऐसा भी लगे कि वो झूठ बोली या फिर गैरमौजूदगी में गैर
मर्द से काम किया.. वो मुझसे नजरें नहीं मिला पाएगी.. मेरे उसके प्रेम पर
असर पड़ सकता है। पर इस बार चूंकि मैं नहीं था और ना मेरी इजाजत से ये सब
हुआ है.. इसलिए तुझे बोल रहा हूँ।
संजय- ठीक है
मैं- चलो अब काम पर चलते हैं.. तूने तो मेरी बीवी के साथ मस्ती कर ली। जब
तुम्हारी बीवी आएगी.. तब मैं उसके साथ करूँगा।
संजय- कर लेना.. मैं नहीं रोकूँगा.. हा हा हा हा हा..
इस तरह हम काम पर चले गए।

दोस्तो, सब कुछ शान्त हो गया कुछ दिन में मेरी बीवी भी सामान्य हो गई।
इसके बाद आगे भी हुआ.. पर हम दोनों की सहमति से हुआ था..

कई बार जब मेरा बाहर जाना होता तो संजय और मेरी बीवी चुदाई करते और मस्ती करते।
संजय बाद में और पहले सब बता देता..

मैं जब यहाँ शहर में होता तो कीर्ति को कभी-कभी कहता कि अगर शॉपिंग या
मूवी देखनी हो संजय के साथ चली जाए।

मेरे मन में संजय और उसके प्रति कोई सवाल या कुछ और न देख कर वो भी
बेझिझक हो गई थी इसी लिए कभी-कभी वो उसके साथ भी जाती।
पर ऐसी घटना के बाद भी हमारी एक-दूसरे के प्रति इज्जत और सम्मान वैसा ही रहा।
यह सब समय और संयोग की बात है।

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