मामी की छोड़कर मदद करी


एक रात जब सब सोने के लिए जब कमरे की बत्ती बंद कर दी तब बाहर से आ रही रौशनी में मैंने देखा कि एक साया मामा की टांगों के बीच में झुक कर बैठा हुआ ऊपर-नीचे हिल रहा था। मैं कुछ देर तक तो वह दृश्य देखता रहा और समझने की कोशिश करता रहा लेकिन जब कुछ समझ नहीं आया तो मैंने उठ कर कमरे की बत्ती जला दी।

रोशनी होते ही मैं हैरत में आ गया और देखा कि मामी ने मामा की लुंगी ऊपर कर रखी है तथा वह उनके ढीले ढाले लौड़े को मुँह में लेकर चूस रही थी और उसे खड़ा करने की कोशिश कर रही थी।

मामी भी रोशनी होने पर सकते में आ गई और शर्म के मारे उठ कर बैठ गई तथा मामा के लौड़े को लुंगी नीचे खींच कर छुपा दिया।

मैं मामी के पास जाकर उससे बोला- जल्दबाजी करने से कुछ हासिल नहीं होगा, वक्त की प्रतीक्षा करनी चाहिए।

मेरी इस बात को सुन कर मामी रोने लगी और आँसू बहाती हुई कहने लगी- अब मैं अपने अंदर की ज्वाला को सहन नहीं कर सकती।

उसने मुझसे पूछा कि उसके अंदर की ज्वाला को बुझाने के लिए उसे क्या करना चाहिए तब मुझे कोई उत्तर नहीं सूझा और मैं चुपचाप बत्ती बंद कर के अपने बिस्तर पर मामी की सिसकियाँ सुनते सुनते सो गया।

दूसरे दिन सुबह मैं उठ कर तैयार हो कर दफ्तर चला गया और शाम को जब घर आया तो माहौल को कुछ गंभीर पाया।

मामी मुझे चाय देकर रसोई में ही काम करती रही और मैं भी बिना कुछ कहे या पूछे चुपचाप मामा के पास बैठ कर चाय पीता रहा। मैं समझ गया था कि रात की बात से मामी शर्मिंदा है और इसलिए मेरे सामने आने से कतरा रही थी। मामी की इस दुविधा को दूर करने के लिए मैं कुछ देर के लिए बाज़ार चला गया और लगभग एक घंटे बाद कुछ फल सब्जी लेकर वापिस आया और जब वह मामी को दिए तो उसे कुछ सामान्य पाया।

इसके बाद हमने खाना खाया और सब ने कुछ देर एक साथ बैठ कर टीवी देखा। जब दस बजे तो मामी ने मामा को दवाई दे कर उन्हें सुला दिया और फिर मेरे सामने ही अपनी साड़ी उतार दूर फेंक दी तथा मेरे सामने वाली कुर्सी पर आकर बैठ गई और टीवी देखने लगी।

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मामी ब्रा तो पहनती नहीं थी इसलिए साड़ी न होने की वजह से उसकी चूचियाँ और चुचूक उसके हल्के गुलाबी रंग के ब्लाउज में से साफ़ दिखाई दे रहे थे। साथ में कुर्सी पर टांगें ऊंची करके बैठने से मामी का पेटीकोट ऊँचा उठ गया था और मुझे उसकी बड़ी बड़ी काली झांटों वाली चूत साफ़ दिखाई दे रही थी।

मैं कुछ देर तो वह दृश्य देखता रहा और अपने खड़े हो चुके लौड़े को हाथ से नीचे की ओर दबाता रहा। जब बात मेरे बर्दास्त से बाहर होने लगी और क्योंकि ग्यारह बज चुके थे इसलिए मैंने उठ कर टीवी और लाईट बंद कर दी और हम अपने अपने बिस्तर पर सोने चले गए।

लगभग दस या पन्द्रह मिनट के बाद मैंने पाया कि मामी मेरे पास आ कर लेट गई और मेरी छाती अपना हाथ फेरने लगी। जब मैंने कोई प्रतिक्रया नहीं दी तो उसका हाथ नीचे की ओर सरकने लगा और देखते ही देखते मेरा लौड़ा मेरी लुंगी के बाहर उसके हाथों में था।

मैंने जब मामी को दूर करने की चेष्टा की तो पाया कि वह बिलकुल निर्वस्त्र ही मेरे पास लेटी हुई थी और मुझे अपने साथ चिपटाने की कोशिश कर रही थी।

मुझसे भी रहा नहीं गया और मैंने मामी की ओर करवट कर ली और उसे अपनी बाहों में ले कर अपने बदन से लिपटा लिया। इस डर से कि मामा जाग न जाएँ मैंने मामी को चेताया तो वह बोली- डरने की कोई बात नहीं है, उन मामा को नींद की गोलियाँ एक के बजाए दो दे दी हैं, वे रात भर सोते रहेंगे।

फिर भी मैंने अपनी तस्सली के लिए उठ कर कमरे की लाईट जलाई तो देखा कि मामा गहरी नींद सोये हुए खर्राटे ले रहे थे और मामी बिलकुल नंगी मेरे बिस्तर पर लेटे हुए हँसती हुई मुझे चिढ़ा रही थी।

अब बात मेरे बर्दाश्त से बाहर हो गई थी, मैंने अपनी लुंगी उतार कर दूर फैंक दी और नंगा ही मामी की ओर चल दिया। लाईट में जब मामी ने मेरा आठ इंच लंबा और ढाई इंच मोटा लौड़ा देखा तो अपने मुँह पर हाथ रख कर ‘हाई दैया’ कहते हुए उठ कर बैठ गई, फिर मुझ से बोली कि अगर उसे पहले से पता होता कि मेरा लौड़ा इतना लंबा और मोटा है तो वह कभी भी नहीं उसके पास लेटने की हिम्मत करती।

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मेरे यह कहने पर कि अब तो वह मेरे पास लेट गई है इसलिए अब उसे हिम्मत करनी ही पड़ेगी, वह बोल उठी- जब ओखल में सिर दिया तो मूसल से क्या डरना !

और आगे बढ़ कर मेरे लौड़े तथा टट्टों को पकड़ लिया और अपने होंठों से चूमने लगी। फिर वो मेरे लौड़े को जैसे अपने मुँह में डालने लगी, मैंने उसे रोक दिया और कहा- जब तक वह मुझे अपनी जाँघ पर काला तिल नहीं दिखाएगी तब तक मैं उसे कुछ नहीं करने दूँगा।

तब वह बोली- तुम बहुत ही नटखट हो !

और फिर अपनी दोनों टाँगे खोल कर लेट गई और मुझे उस तिल को देखने की अनुमति दे दी। मैं कुछ देर तक तो उस तिल को ढूँढता रहा और जब नहीं मिला तो मामी से पूछा- कहाँ है?

तब मामी ने अपनी उंगली से चूत के बाएं होंठ को थोड़ा हटाया, तब मुझे उसकी जांघ की जड़ में वह काली मिर्च के दाने जितना बड़ा काला तिल दिखाई दिया।

मैं उसको देख कर बहुत खुश हुआ और नीचे झुक कर उसे चूम लिया।

तभी मामी ने मेरे सिर को कस कर पकड़ लिया और मेरे मुँह को अपनी चूत पर दबा दिया तथा उसे चूसने को कहा।

मैं तो पहले से उतेजित था इसलिए अपनी उँगलियों से मामी की चूत को खोल कर उसमे जीभ मारने और चूसने लगा, उसके मटर जितने मोटे लाल रंग के छोले को जीभ से सहलाने लगा। मामी शायद इस आक्रमण को ज्यादा देर सहन नहीं कर सकी और कुछ ही पलों के बाद मेरी जीभ की हर रगड़ पर फुदकने लगी तथा आह्ह्ह… आह्ह्ह… की आवाजें निकालने लगी।

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