मकान मालिक के बेटे से जिस्म की आग भुजाइ

झांसी एक एतिहासिक नगर है, वहां के रहने वाले लोग भी बहुत अच्छे हैं … दूसरों की सहायता तहे दिल से करते है। मेरे पति के साथ मैं झांसी आई थी।

मेरे पति की नौकरी झांसी से लगभग 10 किलोमीटर दूर बी एच ई एल में थी, हम भोपाल से स्थानान्तरित होकर झांसी आये तो सबसे पहले हमने वहां किराये का मकान ढूंढा और जल्दी ही हमें आवास विकास कॉलोनी में मकान मिल भी गया। मकान मालिक ने अपने लड़के सुनील को हमारी सहायता के लिये लगा दिया था।

पहले दिन तो खाना वगैरह का इन्तजाम तो उसने ही कर दिया था। बड़ा ही हंसमुख था वो।

यह बात अलग है कि उसका इरादा आरम्भ से ही बहुत नेक था। एक जवान लड़की सामने हो तो उन्हें अपना मतलब पहले दिखने लगता था। मैं उसकी नजरें तो समझ चुकी थी पर वो ही तो एक हमारा मदद करने वाला था, उसे मैं छोड़ती कैसे भला।

एक-दो दिन में उसने हमारी घर की सेटिंग करवा दी थी और शायद वो भी अपने आप की सेटिंग मुझसे कर रहा था। उसे देख कर मुझे बड़ा ही रोमांच सा हो रहा था।

ललितपुर से सामान भी शिफ़्ट करना था। नई जगह थी सो मेरे पति ने सुनील को दो तीन दिन रात को घर पर सोने के लिये कह दिया था। उसकी तो जैसे बांछें खिल गई …

उसे मेरे समीप रहने का मौका मिल गया था। शाम को सुनील उन्हें अपनी मोटर बाईक पर बस स्टेण्ड छोड़ आया था। शाम ढल चुकी थी। जब वो लौट कर आया तो साथ में झांसी के सैयर गेट के मशहूर नॉन-वेज कवाब और बिरयानी भी ले आया था। सुनील का व्यवहार बहुत ही अच्छा था।

नये मकान में मैं घर पर अकेली थी और सुनील की नजरें मुझे आसक्ति से भरी हुई बदली हुई लग रही थी। मुझे भी अपने अकेले होने का रोमांच होने लगा था कि कहीं कोई अनहोनी ना हो जाये, जिसकी वजह से मेरा दिल भी धड़क रहा था।

जब दो भरी जवानियां अकेली हों और वो प्यासी भी हों तो मूड अपने आप बनने लगता है। मेरे दिल में भी बेईमानी भरने लगी थी, दिल में चोर था, सो मैं उससे आंखें नहीं मिला पा रही थी। उसकी तरफ़ से तो सारी तरकीबें आजमाई जा रही थी, बस मेरे फ़िसलने की देर थी।

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पर मैंने मन को कठोर कर रखा था कि मैं नहीं फ़िसलूंगी। उसका लण्ड भी जाने क्या सोच सोच कर खड़ा हो रहा था जिसे मैं उसके पतले झीने पजामें में से उभार लिये हुये देख सकती थी। उसका प्यारा सा लण्ड बार बार मेरा मन विचलित किये दे रहा था। मेरा मन डोलने लगा था, मैंने अपनी रात के सोने वाली ड्रेस यानि ढीला सा गुलाबी पजामा और उस पर एक ढीला ऊंचा सा टॉप … अन्दर मैंने जानबूझ कर कोई पेण्टी या ब्रा नहीं पहनी थी। मतलब मात्र उसे मेरे स्तनों को हिला हिला कर रिझाना था, ताकि वो खुद ही बेसब्री में पहल करे। यूँ तो मेरा दिल यह सब करने को नहीं मान रहा था पर जवान जिस्म एक जवान लड़के को देख कर पिघल ही जाता है, फिर जब दोनों अकेले हों तो, और किसी का डर ना हो तो मन में यह आ ही जाता है कि मौके का फ़ायदा उठा लो … जाने ऐसा मौका फिर मिले ना मिले। आग और पेट्रोल को पास पास रख दो और यह उम्मीद करो कि कुछ ना हो।

सुनील भी मेरे पास पास ही मण्डरा रहा था। कभी तो मेरे चूतड़ों पर हाथ छुला देता था या फिर मेरे हाथों को किसी ना किसी बहाने छू लेता था। मेरे दिल में भी इन सब बातों से आग सी सुलगने लगी थी। वासना की शुरूआत होने लगी थी।

खाना भी ठीक से नहीं खाया गया। वो तो बस मेरे टॉप में से मेरे स्तनों को बार बार देखने की कोशिश कर रहा था। अब मुझे भी लग रहा था कि नीचे गले का टॉप क्यूँ पहना, पर दूसरी ओर लग रहा था कि इस टॉप को उतार फ़ेंक दूँ और अपनी नंगी चूचियाँ उसके हाथों में थमा दूँ।

रह रह कर मेरे बदन में एक वासना भरी सिरहन दौड़ जाती थी।

रात को वो मेरे कमरे में बातें करने के बहाने आ गया था, पर उसके चेहरे के नक्शे को मुझे समझने में जरा भी मुश्किल नहीं आई। वासना उसके चेहरे पर चढ़ी हुई थी। मैं बार बार नजरें चुरा कर उसके मोहक लण्ड के उभार को निहार लेती थी। बातों बातों में वो मुझे लपेटने लगा, और मैं उसकी बातों में फ़िसलने लगी।

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मेरे झुकने के कारण मेरे मेरे टॉप में से स्तन भी बाहर छलके पड़ रहे थे। उसकी नजरें मेरे स्तन का जैसे नाप ले रही हो। मेरा दिल अब काबू में नहीं लग रहा था। बदन में झुरझुरी सी उठ रही थी।

“भाभी, लड़कों को लड़कियाँ इतनी अच्छी क्यूँ लगती हैं? चाहे वो शादीशुदा ही क्यूँ ना हो?”

“विपरीत सेक्स के कारण … लड़का और लड़की प्रकृति की ओर से भी एक दूसरे के लिये पूरक माने जाते हैं।” मैंने उसे उसी के तरीके से समझाया, ताकि वो मुझे ही अपना पूरक माने।

“भाभी, फिर भी लड़कियों के हाथ, पांव और जिस्म में बड़ा ही आकर्षण होता है, जैसे ये आपके ये पांव … ” सुनील ने अपना हाथ मेरे चिकने पांव पर फ़ेरते हुए कहा।

मेरा मन लरज उठा, जैसे किसी ने करण्ट लगा दिया हो। मेरी योनि में जैसे एक अजीब कुलबुलाहट सी हुई।

“अरे छू मत … मुझे कुछ होता है … !” मैंने अपने हाथ से उसका हाथ हटा दिया।

उसने मेरा हाथ पकड़ लिया। मुझे बड़ा भला सा लगा। उसके हाथ ने मेरे कोमल हाथों को हल्के से इशारा देते हुये दबा दिया।

“आपके ये हाथ कितने चिकने हैं … ! ”

‘ तू क्या कर रहा है सुनील … कोई देख लेगा तो बड़ी बदनामी हो जायेगी … ”

अन्दर ही अन्दर मैं पिघलने सी लगी … मैंने कोई विरोध नहीं किया।

“भाभी हम तुम तो अकेले हैं ना … कौन देखेगा … बस आप इतनी सुन्दर है तो, बदन इतना चिकना हो तो … बस एक बार हाथ से छूने दो प्लीज … !” उसका हाथ मेरे कंधे तक आ गया।

“नहीं कर ना … हाय रे … उनको पता चलेगा, मैं तो मर ही जाऊंगी … !” मैंने अपने जवाब को लगभग हां में बदलते हुये कहा, जिसे कोई भी समझ जाता। यानि कुछ भी करो पर पता नहीं चलना चाहिये।

“भाभी, भाई साहब तो ललित पुर चले गये हैं … कैसे पता चलेगा !” वो अब मेरे और पास आ गया था उसकी सांसे तेज हो उठी थी। मेरा दिल भी धाड़ धाड़ करके धड़कने लगा था।

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