कमुक्त आश्रम गुरूजी 2

मेरे दस मिनट तक चूसने के कारण उसके उरोज साइज़ में कोई दो इंच तो जरूर बढ़ गए थे और निप्पल्स तो पेंसिल की नोक की तरह एकदम तीखे हो गए। मैंने उसे बेड पर लिटा दिया। उसका एक हाथ थोड़ा सा ऊपर उठा हुआ था। उसकी कांख में उगे सुनहरे रंग के रोएँ देख कर मैं अपने आप को रोक नहीं पाया और अपना मुंह वहाँ पर टिका दिया। हालांकि वो नहा कर आई थी पर उसके उभरते यौवन की उस खट्टी, मीठी, नमकीन सी खुशबू से मेरा स्नायु तंत्र एक मादक महक से भर उठा। मैंने जब जीभ से चाटा तो मिक्की उतेजना और गुदगुदी से रोमांचित हो उठी।
अब मैंने पहले उसके गालों पर आई बालो की आवारा लट को हटा कर उसका चेहरा अपनी हथेलियों में ले लिया। थरथराते होंठो से उसके माथे को, फिर आँखों की पलकों को, कपोलों को, उसकी नासिका, उसके कानों की लोब और अधरों को चूमता चला गया। मिक्की पलकें बंद किये सपनों की दुनिया में खोई हुई थी। उसकी साँसे तेज चल रही थी होंठ कंपकपा रहे थे। मैंने उसके गले और फिर उसके बूब्स को चूमा। दोनों उरोजों की घाटी में अपनी जीभ लगा कर चाटा तो मिक्की के होंठो से बस एक हलकी सी कामरस में भीगी सित्कार निकल गई। हालांकि रौशनी में चमकता उसका चिकना सफ्फाक बदन मेरे सामने सब कुछ लुटाने के लिए बिखरा पड़ा था।
अचानक उसे ध्यान आया कि मैं तो पूरे कपड़े पहने हुए हूँ, उसने मुझे उलाहना देते हुए कहा “अच्छा जी आपने तो अपने कपड़े उतारे ही नहीं !”
मैं तो इसी ताक में था। दरअसल मैंने अपने कपड़े पहले इस लिए नहीं उतारे थे कि कहीं मिक्की मेरा सात इंच का फनफनाता हुआ लंड देखकर डर न जाए और ये न सोचे कि मैं जबरन कुछ कर देने पर तुला हुआ हूँ या कहीं उसका बलात्कार ही तो नहीं करना चाहता। कपड़े उतार कर मैं डबल बेड पर सिरहाने की ओर कमर टिका कर बैठ गया। मेरी एक टांग सीधी थी और दूसरी कुछ मुड़ी हुई जिसकी जांघ पर मिक्की अपना सिर रखे आँखें बंद किये लेटी थी। मैंने नीचे झुक कर उसका चुम्बन लेने की कोशिश की तो वो थोड़ा सा नीचे की ओर घूम गई। मेरा आधा लंड चड्डी के बाहर निकला हुआ था वो उसके होंठों से लग गया। मुझे तो मन मांगी मुराद मिल गई।
मैंने उसे कहा- मिक्की देखो इसे कैसे मुंह उठाए तुम्हें देख रहा है ! हाथ में लो ना इसे !

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मिक्की ने हिचकिचाते हुए पहले तो उसने अपनी नाज़ुक अंगुलियों से उसे प्यार से छुआ और फिर अन्डरवीयर नीचे खिसकाते हुए मेरे लण्ड को पूरा अपने हाथों में भर लिया और सहलाने लगी। मेरे लण्ड ने एक ठुमका लगते हुए उसे सलामी दी और पत्थर की तरह कठोर हो गया। अब मिक्की लगभग औंधी लेटे मेरे लण्ड के साथ खेल रही थी और मेरे सामने थे उसके गोल मटोल नितम्ब। मैंने उन पर प्यार से हाथ फिराना शुरू कर दिया। वाह क्या घाटियाँ थी।
गुलाबी रंग की कसी हुई दो गोलाकार पहाड़ियां और उनके बीच एक बहती नदी की मानिंद गहरी होती खाई। मैं तो किसी अनजाने जादू से बंधा बस उसे देखता ही रह गया। फिर धीरे से मैंने पैंटी के ऊपर से ही उन गोलाइयों पर हाथ फेरना शुरू कर दिया।
मैंने एक हाथ से उसका चेहरा अपने लण्ड के सुपाड़े पर छुआते हुए कहा- इसे प्यार कर ना ! चूम लो मेरे लौड़े को अपने होठों से !
रहस्यमयी मुस्कान अपने होठों पर लाते हुए मिक्की ने मुझे घूरा और फिर तड़ से एक चुम्बन ले लिया। मिक्की के होंठ थोड़े खुले थे, मैंने एक हल्का सा झटका ऊपर को लगाया तो पूरा सुपाड़ा मिक्की के मुँह में चला गया। वो इसे बाहर निकालना ही चाहती थी कि मैंने उसके सिर को नीचे दबा दिया जिससे मेरा पूरा लण्ड उसके गले तक चला गया और वो गों-गों करने लगी। तब मैंने उसके सिर को छोड़ा, उसने लण्ड को मुँह से निकाला और बनावटी गुस्से से बोली- क्या करते हो जिज्जू? मेरा तो सांस ही रुक गया था !
चूसो ना जैसे अंगूठा चूसती हो ! बहुत मज़ा आएगा तुम्हें और मुझे भी !
यह तो अंगूठे से दुगना मोटा है ! कहते हुए उसने मेरी आंखों में देखा और मेरा आधा लौड़ा अपने मुंह में ले लिया और चूसने की कोशिश करने लगी। फ़िर लण्ड को मुंह से निकाल कर बोली- कैसे चूसूँ? चूसा ही नहीं जा रहा !
मैंने उसे लण्ड को मुंह में लेने को कहा और फ़िर उसका सिर पकड़ कर उसके मुंह में दो-चार धक्के लगाते हुए कहा- ऐसे चूसो !
अब तो वो लण्ड चूसने में मस्त हो गई और मैं अपनी उंगलियाँ उसकी पैन्टी में ले गया उसके अनावृत कूल्हों का जायजा लेने !
इससे बेखबर मेरा लण्ड चूसे जा रही थी किसी आइस-कैंडी की तरह जैसे मैंने उसे परसों मज़ाक में कुल्फी चूसने को कहा था।
ये लड़की तो लण्ड चूसने में अपनी मम्मी (सुधा) को भी पीछे छोड़ देगी। आह उसकी नरम मुलायम थूक से गीली जीभ का गुनगुना अहसास अच्छे अच्छों का पानी निचोड़ ले। कोई पाँच-छः मिनट उसने मेरा लण्ड चूसा होगा। फिर वो अपने होंठो पर जीभ फेरती हुई उठ खड़ी हुई। उसकी रसीली आँखों में एक नई चमक सी थी। जैसे मुझे पूछ रही हो कैसा लगा ?
मैं थोड़ी देर ऐसे ही बारी बारी उसके सभी अंगों को चूमता रहा लेकिन उसकी बुर को हाथ नहीं लगाया। मैं जानता था कि मिक्की की बुर ने अब तक बेतहाशा काम-रस छोड़ दिया होगा पर मैं तो उसे पूरी तरह तैयार और उत्तेजित करके ही आगे बढ़ना चाहता था ताकि उसे अपनी बुर में मेरा लण्ड लेते समय कम से कम परेशानी हो। मेरा लण्ड प्री-कम के टुपके छोड़ छोड़ कर पागल हुआ जा रहा था। ऐसा लग रहा था कि अगर अब थोड़ी देर की तो यह बगावत पर उतर आएगा या खुदकुशी कर लेने पर मजबूर हो जायेगा। आप मेरी हालत समझ रहे है ना।

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