सीमा एक ख़ूबसूरत संगिनी भाग 3

मुझे मालूम था कि कोई मुझे बाहर से देख रहा है। मैंने टी.वी का रिमोट उठाया और डीवीडी पर ब्लू मूवी लगाईं और बिस्तर पर लौटने से पहले फुर्ती से पिछला दरवाज़ा खोल दिया। वो दोनों भाग नहीं पाए, उनके हाथों में उनके विकराल लौड़े तने देख मेरा बदन आहें भरने लगा।

मैंने बाहरी गुस्सा दिखाया उनको उकसाने के लिए- हरामजादो, मादरचोदो, शर्म नहीं आती, अपनी मालकिन को नंगी देखते हो? और उसकी पैंटी पर मुठ मारते हो? भागो, वरना जूती से मारूँगी कमीनो !

“साली रण्डी, छिनाल !” दीपक बोला- कुतिया न जाने कितनों से भोसड़ा मरवाती है!

मैंने करारा थप्पड़ उसके गाल पर मार दिया।

“हरामजादी, मुझे मारा?” उसने मुझे बिस्तर पर धकेल दिया दोनों पाँव और हाथ बाँध दिए- कुतिया, दिखाते हैं तुझे कि चुदाई कैसे होती है !

दोनों नंगे हो गए, दीपक मेरी गोरी चूत चाटने लगा और शाम अपना लुल्ला चुसवाने लगा।

चपड़-चपड़ उसका लुल्ला चूसा, मुझे गर्म होती देख उन्होंने मुझे आज़ाद किया। मैंने नाटकीय रूप में उठने की भागने की कोशिश की दोनों ने मुझे वापस दबोच लिया और दीपक ने घोड़ी बना कर अपना बड़ा लुल्ला चूत में घुस दिया और झटके पर झटका लगाने लगा। दोनों दोपहर को झड़े थे इसलिए वक्त लगा रहे थे।

“साली रंडी, देख कितने मजे से आँखें मूँद रही है !”

“मादरचोद, बकवास छोड़, चूत मार मेरी !” मैं तड़फ़ते हुए बोली- उफ़… अह… उफ़… अह… अह… उइ… और… सी… सी… आई… उह… उन्ह… फक मी… जोर से…!

“साली छिनाल मालकिन है !”

“मादरचोदो, चोदो मुझे…!!”

दीपक ने लंड निकाल दिया और मेरी गांड पर रगड़ने लग गया, मुझे कुछ नियत खराब महसूस हुई। अभी कुछ कहती, करती, शाम ने मुझे आगे से कस लिया और दीपक ने मेरी चूत से गीला हुआ लंड मेरी गांड में घुस दिया।

मैं चिल्लाने लगी, जोर जोर से चीखें मारने लगी, दे दोनो मुश्टण्डे हँसते रहे। दीपक ने धीरे धीरे पूरा लंड मेरी गांड में उतार दिया।

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मैं पहली बार गाण्ड मरवा रही थी। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।

अचानक उसने अपना लौड़ा निकाल लिया तो मुझे सुख का सांस आया लेकिन उनका इरादा देख मैं डर गई।

दीपक सीधे लेट गया मुझे उसकी तरफ पीठ करके लंड डलवाने को कहा।

मैंने मना किया तो करारा थप्पड़ मेरे गाल पर पड़ा। मैं उस पर बैठ गई, पूरा लिंग मेरी गान्ड में घुस चुका था और ऊपर से शाम आया उसने अपना लंड मेरी चूत को फैला कर घुसा दिया।

“हाय ! तौबा ! मारोगे क्या ! मैं मर जाऊँगी !”

दोनों पेलने पर उतारू थे और धीरे धीरे मुझे इस चुदाई का बहुत मजा आने लगा। वे दोनों फाड़ फाड़ मेरी गांड चूत मार रहे थे। पहले दीपक झड़ा तो कुछ समय में शाम की पिचकारी मेरे अन्दर गर्माहट देने लगी।

दोनों काफ़ी देर तक मुझ नंगी को चूमते रहे थे। सुबह के ढाई बजे तक मेरी गेम बजाई और आज एक नया अनुभव प्राप्त हुआ।

फिर शाम और दीपक अक्सर मुझे मसलने लगे, मुझे उन दोनों के बाँहों में जाना बहुत सुखदायक लगने लगा था।

मैं खुश थी, घर में लंड मिल रहे थे। तभी एक घटना घटी, हमारी कार का एक्सीडेंट हुआ… !!

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