जावान लॅड्कीयो की लेज़्बीयन सेक्स कहानी

उस दिन में पहली बार इस हॉस्टिल मे कदम रखी थी. Mऊझे अजीब सा लग रहा था. सब मुझे यूँ देख रहे थे जैसे खा जाएँगे. मुझे उपरवाले रूम में अयमोडेशन मिला था. मेरी रूम मेट थी मिटा. वो देखने मे बहुत सुंदर थी. मुझे हास के स्वागत किया. फिर. मैने अपना सारा समान ठीक तक इधर उधर कर के रखली. दोपहर को खाने के लिए नीचे गयी, तो हॉस्टिल के मेस मे सारी लड़कियाँ फिर से मुझे ऐसे देख रही थी मानो मैं कोई राज कुमारी हूँ और सब मुझे अप्रीशियेट कर रही थी. खाने के टेबल पर ही बहुत सारी लड़कियों से बाते हुई, सब ने मेरे वेर में बहुत सारे सवाल किया. . मुझे एक पल के लगा मानो में यहाँ बरसो से हू और यह सारे मेरे सहेलियाँ है. मेरे मान से हॉस्टिल का भूत दूर जा रहा था. शाम को मेरे कमरे मे उषा डिड आई, जो मुझसे बहुत बड़ी थी. दिखने मे कुच्छ ख़ास ना सही पर बातें इतनी मीठी करती के मानो अभी सबको खरीद लेंगी. एक दिन कैसे गुजरा पता नही चला. रात को सोने के लिए जेया रही थी के मेरी रूम मेट मिटा बोली, “तुम घर पे ना रह के यहाँ हॉस्टिल मे रहने क्यों आई?”

ज़हीर है मैं नौकरी करती थी, इसीलिए यहाँ पे शिफ्ट करना पड़ा था. फिर बोली दो हज़ार के नौकरी के लिए इतना डोर क्यों आई? अपने सहर में नौकरी नही मिलती थी क्या? मैं चुप हो गयी, बोली मिलता तो था पर वहाँ घरवाले मेरा जीना परेशान कर देते. हमेशा मेरे पिच्चे पड़े रहते के अभी शादी कार्लो अभी शादी कार्लो…
तो तुम क्या शादी नही करोगी? मिटा ने पुचछा.
“पता नही, मैं अभी कुछ कह नही सकती.” मैं बोली.
फिर हम सोगआय. दूसरे दिन सुबह जब मैं उठी तो सुबह के साढ़े पाँच ही बाज़ी थी, और हॉस्टिल मे सब घोड़े बेच के सो रहे थे. मैं नाहके टायर हो गयी. और जल्दी जल्दी हॉस्टिल से निकल आई, मेरी नयी नौकरी के जगह, जो एक स्कूल था, नर्सरी स्कूल. वहाँ हेड मिस्ट्रस से मिली तो बहुत खुश हुई, स्वागत किया. फिर मेरी इन्टेविएव वाली काग़ज़ात निकल के पढ़ते हुए बोली तुम्हे कंप्यूटर आता है? मैने अपना सिर हिला के हाँ बोली. तो उन्होने मुझे कंप्यूटर रूम की एक्सट्रा ड्यूटी पकड़ा दिया, और साथ ही साथ एक हज़ार और रुपये की सॅलरी भी बढ़ा दी. यह मेरे लिए खुशी की बात थी के नौकरी के पहले दिन और मेरी प्रमोशन. वो जो भी हो, उस दिन से मुझे फ्रीडम थी के में जब चाहू कंप्यूटर रूम मे जाकर इंटरनेट का इस्तेमाल कर सकती थी.

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दोपहर तक तो स्कूल बंद हो जाती थी और में रूम में आती थी. कुच्छ दीनो तक मुझे हॉस्टिल मे सब ठीक तक लगा लेकिन वहाँ लड़कियों के बर्ताव मुझे कुच्छ ठीक नही लगी, सब ऐसे बिहेव कर रही थी मानो प्रेमी हो बात बात पे एक दूसरे को चूमा दे देना, हाथ इधर उधर घूमना, ऐसे. में एक रात यही बात मिटा से पुचली. वो हास पड़ी और बोली, इसमे क्या ग़लत है? सब आपस में मिलजुल्के रहते हैं एक दूसरे से प्यार भी करते है, तो भूल कहाँ है?
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“लेकिन, वो सब लड़कियाँ है? लड़किया कैसे एक दूसरे से प्यार कर सकती है?” मैं पुच्च्ी.
वो बोली, “देख अगर एक लड़की लड़के से प्यार करे तो सब जानते है यह प्यार है, मगर क्यों होता है यह प्यार? क्यों की सबको जरुउरत होती है अपने मान की प्यास बुझाना. बस तो यहाँ हॉस्टिल मे एक दूसरे के मान की प्यास बुझती है यह लड़कियाँ और खुश रहती है. अब अगर किसी लड़के से यह सब प्यार करेंगी तो उनसे मिलने के लिए जाएँगी कब? नौकरी से च्छुटी मिलती नही और जगह कही है नही, और फिर प्रेग्नेन्सी का ख़तरा. तो बस हॉस्टिल मे एक दूसरे के मान की प्यास बुझाना सबसे अच्छा तरीका है.”
में उनको देखती रह गयी. बात तो सही थी. अगर किसी लड़के से प्यार करो तो क्या पता कब मिलना हो कहाँ मिलना हो. फिर कुछ ग़लत कार्डिया तो पेट से हो सकती है. मैं हस्दी.
वो बोली, उषा दीदी तुझसे इस वेर में कुछ बातें करना चाहती थी, मैने ही माना कर दिया. मुझे पता था तुम अभी नादान हो इस वेर में ज्ञान नही होगी. मैं बोली, लेकिन इसमे कोई ग़लती तो नही करते है ना वो सब? क्यों के मैने फिल्म देखी थी “फिरे” उसमे ऐसे ही दिखाया था जिसके बाद उन दो औरतो को घरसे बाहर कर दिया था.

वो हास पड़ी, और बोली, “तुम भोली हो, अरे अगर तुम सबसे कहोगी के तुम यह सब करती हो तो लोग तुमपे हासेंगे, समाज से अलग करदेंगे, इसीलिए एक काम करो किसी को ईस्वरे मे बोल ना ही नही, घर में भी नही. फिर क्या घबराना. इसमे कोई दर नही और जो भी होता है दो लड़कियों के बीच होता है तो प्रेग्नेन्सी नही होगी ना ही तुम्हारे वर्जिनिटी को कोई नुकसान होगा.
मैं तो चकित हो के रह गयी थी. रात के साढ़े आठ बाज़ने को आए थे हम नीचे मेस मे डिन्नर के लिए गये. आज मुझे सब की हरकतें अच्छी लग रही थी. मिटा ने जाकरा उषा दीदी को कुछ कहा, वो मेरे और देख के मुस्कुराई और मेने भी मुस्कुरदी. डिन्नर के बाद हम कमरे मे आए तो मिटा बोली चलो आज च्चत के उपर चल के टहल ते है. और हम वहाँ गये, थोड़ी देर बाद उषा दीदी भी वहाँ आई. हम ऐसे ही बातें कर रहे थे उषा दीदी ने पुचछा, तुमने कभी सेक्स किया है? सेक्स की बात सुनके मेरी टन मे सनसनाहट होने लगी. मेने ना बोली. वो बोली, “होमोसेक्श कभी की है? मतलाब लड़की लड़की सेक्स?” मैं पागल होये जेया रही थी. जिंदगी में कभी किसने मुझसे ऐसे बातें नही की थी. मैं ना बोली.

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“किसी लड़के से प्यार करती है?” वो मुझसे पुच्च्ी. मैने सिर हिला के ना बोली. वो हस्दी और मेरे पास आके बोली कभी तुम्हे किसने कहा के तुम कितना सुंदर हो? मेरे बदन से पसीना च्छुत रहा था तभी. वो बोली, क्या हुआ तबीयात ठीक नही है क्या? या फिर दर रही हो? हुंसे क्या डरना? हम सब तुम्हारे सीनियर है यहाँ, तुम्हे सारी चीज़ों की जानकारी देना हमारा काम है. मैं सिर्फ़ सिर हिला रही थी.

कुच्छ देर ट्के खामोश रहने के बाद उषा दीदी मेरे पीछे चलीगाए और एक झटके मे मेरे स्तानो को अपने हाथो मे भर लिया और बोली, बहुत मस्त है तुम्हारे यह स्तन, मान करता है इनको चूमलू. मिटा दीदी हस्ती हुई बोली “उषा दीदी आप चाहे तो चूम ले कोई नही देख रहा है.” मैं क्या करू कुच्छ समझ नही पा रही थी. पसीना च्छुत के मेरा निघट्य गीली हो गयी थी. मैं मिटा को देखा और वो बोली, उषा दीदी छ्चोड़ दीजिए अभी पहली बार है ना इसीलिए दर रही है बेचारी. और उषा दीदी मुझे छ्चोड़ दिया. हम सब नीचे अपने कमरे मे आगाय.

कमरे मे आते ही मिटा ने दरवाज़ा के कुण्डी बंद कर दी और उषा दीदी बोली, चल हुमें दिखा क्या च्छूपा रही है तू.में क्या करू कुछ समझ नही पा रही थी के तभी मिटा आके मेरी निघट्य को उपर करलिया. मैं लाज्जा के मारे मुरझगाई. और उषा दीदी बोली, सचमुच तेरे स्तानो को चूमना चाहती हूँ. और मेरी किसी बात का इंतेज़ार किए बगैर वो मेरे स्तानो को मूह मे लेकर चूमने लगी थी. मेरे बदन मे आग लग रही थी. मैं क्याकाहु क्या करू कुछ नही जान पे और जो हो रहा था होने दिया.

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