पुलिस साहब से हवालात में चुद गयी

उस दीन कुछ अच्छा नही लग रह था. सुबह से ही मन् में भारीपन लग रहा था. ऐसे ही अलसाई हूई अपने रुम में सोयी पडी थी. काम करने में जीं नहीं लग रह था. तभी ग्ली में शोर होने लगा. अपने पलंग से उठकर बरामदे की खिड़की से ग्ली में झाँकने लगी.

बाबु के माकन के सामने भीड़ एक्कठी हो रही थी. क्या हुआ होगा सोचकर अपनी आंखें उनके गेट पेर गडा दी. भीड़ में फुसफुसाहट हो रही थी. तभी खिड़की के सामने से एक आदमी गुजरा तो उससे पूछ लीया, “आरे भैया, क्या हो गया?”

आदमी ने चलते-चलते जवाब दीया, “किसी ने बाबु को चाक़ू मार दीया.”

यह सुनकर मैं डर्र गयी. दीन-दहाड़े ग्ली मे हत्या. उफ़! क्या हो गया है इस दुनीया को. बाबु से हमारे घरवालों की जमती नही थी. अब घरवाले कौन? एक मेरा मरद और दूसरी में. अभी तीन-चार दीन पहले ही मेरे मरद, का झगड़ा बाबु से कुछ लें- दें को लेकर हो गया था. लेकीन इससे क्या? आखीर ग्ली में किसी की हत्या हो तोः बुरा तोः लगता ही है.

मैं मन् ही मन् डर्र रही थी. सोच रही थी की श्याम जल्दी घर आजाये तो अच्छा है. लेकीन उन्हें तो शाम को ही आना था. दुसरे गांव गए हुये थे. ऐसा ही बोल कर सुबह जल्दी निकल गए थे.

थोड़ी देर बाद वापस खिड़की खोल कर बाबु के घर की और झाँका तोः देखा आदमी तोः ज्यादा नही थे बल्की ६-७ पुलिस वाले जरूर खडे थे. अब हत्या हूई है तोः पोलीस वाले तोः आएंगे ही. तभी देखा ३- ४ पुलिसवाले मेरे घर की तरफ आ रहे है. मेरा मन् और खराब होने लगा. पोलीस वाले मेरे घर की तरफ क्यों आ रहे है? मैं झट से खिड़की बंद करके वापस अपने कमरे की तरफ बढने लगी.

दुसरे पल ही दरवाजा पीटने की आवाज आने लगी. मैं झट से कमरे की जगह अपने घर के मैं दरवाजे की तरफ बढ गयी और गेट खोल दीया. पुलिस वाले धद्धादते हुये घर में घुस गए.

मैंने हडब्डाकर उनसे पूछा, “आरे ये क्या कर रहे हो?”

एक पोलीस वाला कड़कती आवाज में पूछा, “श्याम कीधर है?”

मैंने वापस पूछा, “क्या काम है मेरे मरद से?”

तभी दूसरा पोलीस वाला दहडा, “साली, हमसे पूछती है क्या काम है? कीधर छुपा कर रखा है अपने मरद को?”

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मैं सहमकर बोली, “वो तोः घर पर नही है. दुसरे गांव गए हुये है. शाम को आएंगे?”

तभी उसने कठोरता से पूछा, “साली, घर में छुपा कर रखा है और बोलती है की नहीं है. बता कीधर छुपाया है.”

“साहेब मैं झूठ नहीं बोल रही हूँ. वो तोः सुबह से ही गए हुये है. लेकीन बात क्या है?”

तभी तीसरे पोलीस वाले ने कहा, “तेरा मरद शाम है ना?”

जवाब में मैंने अपना सीर हाँ में हिला दीया.

“साले ने बाबु का ख़ून कीया है.”

मेरे ऊपर मनो पहाड़ गीर गया. लेकीन सँभालते हुये बोली, “कैसे साहेब? वो तो सुबह से ही यहाँ नही है.”

“कैसे नही है. बहार कई लोगों ने उसे अभी थोड़ी देर पहले ही उसे भागते हुये देखा है. वो कोई झूठ नहीं बोल रहे हैं.”

मेरी तोः आवाज ही बंद हो गयी. तभी एक पोलीस वाला पूरा घर दूंधने के बाद बोला, “इधर तोः श्याम नही है. लगता है साला भाग गया.”

तोः दुसरे पोलीस वाले ने उससे कहा, “जा साहेब को बता कर आ.”

मैं चुप-चाप जमीन पेर बैठ गयी और रोने लगी. वीशवाश ही नही हो रहा था. जरूर कीसी ने अपना बदला निकलने के लीये झूठ-मूठ पोलीस वाले को कह दीया होगा. श्याम के साथ मेरी शादी को सिर्फ ६ महिने ही हुये थे. इन् ६ महीनो में हमने ख़ूब मज़ा कीया. ३-४ महीने तक तोः वो घर से बहार बहुत ही कम वक़्त के लीये बहार निकलता था. हम दोनो दीन-रात बिस्तेर पर, kitchen में, बाथरूम में और यहाँ तक की आंगने में मज़ा लूट ते रहते थे. वक़्त कब का निकल गया समझ में ही नहीं आया. लेकीन आज..

श्याम २५ साल का एक गबरू जवान था. कसरती बदन और थोडा सांवले रंग का लेकीन मजबूत मरद था. बिस्तर पर उसका कोई जवाब ही नही था. उसका हथियार भी उसके बदन जैसा मूसल और लम्बा-मोटा. मेरे बीते भर से बड़ा और मेरी कलाई से आधा. उसके साथ ब्याह होने के बाद में अपने पुरे जीवन को भूल चुकी थी.

हाँ. मैं शादी होने के पहले अपने दो-तीन दोस्तो से यारी कर बैठी थी. और उनके साथ हम्बिस्तर भी. लेकीन श्याम से शादी होने के बाद मैंने कभी भी उनको याद नहीं कीया. अब जो कुछ भी था तोः वोह श्याम ही था.

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श्याम और मेरे पुराने यारों की नज़रों मे मैं गोरी चिठ्ठी हसीं गुदिया थी. मेरे लंबे-लंबे बाल, मेरे गोरे-गोरे गाल, मेरे मद्मुस्त होठ, मेरे अनार जैसे कड़क संतरे की साइज़ के मुम्मे, भरी हूई झंघे. ऐसा ही कहते थे वोह सुब. और मैं अपनी प्रसंसा सुनकर फूला नही समाती थी.

तभी थानेदार की कड़कती हूई आवाज़ ने मुझे जगा दीया, “कहां है उसकी बीबी?” मुझ पर नज़र पड़ते ही उसकी आंखें मेरे जिस्म पर गीद्ध की आँखों जैसे चिपक गयी.

तभी मुझे एक पोलीस वाले ने पकड़ कर खड़ा कर दीया और बोला, “येही है उसकी बीबी.”

थानेदार मेरे जिस्म को तौलता हुवा बोला, “कहां है श्याम?”

मैंने सहमते हुये कहा, “मुझे नही मालूम. वोह तोः सुबह से बहार गए हुये है.”

“बता दे वर्ना मुझे और भी तरीके आते है.” थानेदार ने गरजती हूई आवाज़ में पूछा.

मैं चुप-चाप खडी रही. बहार भीड़ देख कर थानेदार ने और तोः कुछ नही बोला लेकीन मैं मेह्शूश कर रही थी उसकी नज़रों को अपने जिस्म में धंसते हुये. थानेदार अपने आदमियों को कुछ बताने लगा और मुझे घूरते हुये बहार चला गया.

शाम की ४-५ बज गयी. पोलीस party अपने थाने चली गयी. मैंने चेन की सांस ली. लेकीन रात को ८-८.३० बजे फीर एक पोलीस वाला आया. मुझसे श्याम के बारे में पूछने लगा. मैंने ना में जवाब दीया.

“ऐसे कैसे हो सकता है. तू सुबह बोल रही थी ना की वोह शाम को वापस आएगा. अब तोः रात हो चुकी है,” पोलीस वाले ने पूछा.

“उन्होने सुबह ऐसा ही कहा था,” मैंने जवाब दीया.

“लगता है तू ऐसे नही मानेगी. अब तेरे से हाथ-लात से बात करनी पडेगी,” उसने घुड्ते हुये कहा.

मेरी धुक-धुक बढने लगी. मुझे श्याम पर ग़ुस्सा आ रहा था. अब तक नही आया. ग्ली मैं एक ख़ून हो गया और बीबी घर में अकेली. लेकीन उसका कोई पता ही नही. तभी फीर सोचा. उससे क्या मालूम की हत्या हो गयी है. अगर मालूम होता तोः दोपहर में ही नही आजाता. क्या उसने ही हत्या…

“साली को थाने ले चल,” पोलीसवाला अपने साथी से कहा. “साहेब ने कहा है अगर श्याम नही मीलता तो उसकी बीबी को थाने लेकर आना.”

मैं तो यह सुनकर रोने लगी.

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