घर में बहु नहीं रंडी आयी है भाग 3

जतिन ने सकपका कर मैगजीन से नजर हटाई, मैनें देख लिया था वह एक मोडल का उत्तेजक फोटो बड़ी तल्लीनता से देख रहा था, उसके चेहरे पर ऐसे भाव आ गए जैसे चोरी पकडी गई हो, उसने कांपते हाँथ से ग्लास ले लिया, मेरी ओर देखने पर उसकी पैनी नजर मेरे खुले सिने पर अन्दर ब्रेजरी तक होकर वापस लौट आई, वह नजर झुका कर पानी पिने लगा तो मैं मन ही मन मुस्कुराती हुई रसोई में चली गई,

मैनें चाय पांच मिनट में ही बना ली, चाय लेकर मैं वापस ड्राइंग रूम पहुंची तो देखा की जतिन तपते चेहरे से मैगजीन को पढ़ रहा है, मेरी आहट पाते ही उसने मैगजीन टेबल पर उलट कर रख दी,

लो चाय….चाय का एक कप ट्रे में से उठा कर मैनें उसकी ओर बढ़ाया, उसने कंपकंपाते हाँथ से कप पकड़ लिया और नजर चुरा कर कप में फूंक मारने लगा, मैनें भी एक कप उठा लिया,
मैनें महसूस कर लिया की जतिन सेक्स के प्रति अभी संकोची भी है और अज्ञानी भी, ऐसे युवक से संबंध स्थापित करने का एक अलग ही मजा होता है, मैं सोचने लगी की जतिन से कैसे सेक्स संबंध विकसित किया जाये ताकि मेरी यौन पिपासा में शांति पड़े,

उसके गोल चेहरे और अकसर शांत रहने वाली आँखों में मैं यह देख चकी थी की कामोत्तेजक मैगजीन ने शांत झील में पत्थर मार दिया है और अब उसके मन में काम-भावना से संबंधित भंवर बनने लगे हैं, वह खामोशी से चाय पि रहा था, मेरी ओर यदा कदा देख लेता था,

तभी फोन की घंटी बज उठी, मैनें सोफे से उठ कर फोन का रिसीवर उठाया ओर उसे कान में लगा कर बोली….हेलो …आप ..कौन बोल रहे हैं….?

जानेमन हम तुम्हारे पति बोल रहे हैं…..उधर से मेरे पति का स्वर आया….हम थोड़ी देर में आयेंगे….तुम परेशान मत होना….ओ.के….इतना कह कर उन्होंने संबंध विच्छेद भी कर दिया,

किसका फोन था…..?जतिन ने प्रश्न किया,

तुम्हारे भाई साहब का….मेरी कुछ सुनी भी नहीं और थोड़ी देर से आयेंगे ये कह कर रिसीवर भी रख दिया….मैनें दोबारा उसके सामने बैठते हुवे कहा,

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अब तक उनकी आदत ऐसी ही है….कमाल है….जतिन बोला,

वह चाय ख़त्म कर चूका था, खली कप उसने टेबल पर रख दिया, मैं भी चाय पि चुकी थी,

चलो टी. वी देखते हैं….मैं सोफे से उठती हुई बोली, मैनें एक शरीर तोड़ अंगड़ाई ली, मेरी मेक्सी में से मेरा शरीर बाहर निकलने को हुआ, जतिन के होंठों पर उसकी जीभ ने गीलापन बिखेरा और आँखें अपनी कटोरियों से बाहर आने को हुई,

मैनें टेबल से मैगजीन उठा ली और बेडरूम की ओर चल दी, जतिन मेरे पीछे पीछे था,
मैनें बेडरूम में पहुँच कर टी. वी. ऑन करके केबल पर सेट किया एक अंग्रेजी चैनल लगाया ओर बेड पर अधलेटी मुद्रा में बेड की पुश्त से पीठ लगा कर बैठ गई ओर मैगजीन खोल कर देखने लगी, जतिन भी बेड पर बैठ गया लेकिन मुझसे फासला बना कर,

मुझमें कांटे लगे हैं क्या…? मैनें उससे कहा

जी…जी….क्या मतलब….जतिन हडबडा कर बोला,

तुम मुझसे इतनी दूर जो बैठे हो……..मैनें मैगजीन को बंद करके पुश्त पर रख कर कहा,

ओह्ह…लो नजदीक बैठ जाता हूँ… कह कर वह मेरे निकट आ गया,

उसके ओर मेरे शरीर में मुश्किल से चार छः अंगुल का फासला रह गया,

तबियत ठीक नहीं है तुम्हारी….? कान कैसे लाल हो रहे हैं….मैनें उसके चेहरे को देख कर कहा ओर उसके माथे पर हाँथ लगा कर बोली– ओहो….माथा तो तप रहा है….ऐसा लगता है की तुम्हे बुखार है….दर्द वर्ड तो नहीं हो रहा सीर में…हो रहा हो तो सीर दबा दूँ, मैनें कहा,

हो तो रहा है भाभी जी….दोपहर से ही सर दर्द है….अगर दबा दोगी तो बढ़ियां ही है …जतिन बोला

लाओ…गोद में रख लो सीर…मैनें उसके सीर को अपनी ओर झुकाते हुवे कहा

उसने ऐतराज नहीं किया और मेरी जाँघों के जोड़ पर सीर रख कर लेट गया, मैं उसके माथे को हल्के हल्के दबाने लगी और मेरे मस्तिस्क में काम-विषयक अनार से छूटने शुरू हो गये थे,

भाभी…आप बुरा न मनो तो एक बात पूछूं….जतिन बोला,

पूछो…एक क्यों दस पूछो…..मैं टी… वी. से नजर हटा कर उसकी बड़ी बड़ी आँखों में झांक कर बोली,

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ये जो मैगजीन ही इसे आप पढ़ती हैं या भाई साहब…? जतिन ने प्रश्न किया,

हम दोनों ही पढ़ते हैं क्यों….? मैनें कहा,

दोनों ही….आपको क्या जरुरत है ऐसी मैगजीन पढने की…..वह बोला,

क्यों….? हम दोनों क्यों नहीं पढ़ सकते….हमें जरुरत नहीं पड़नी चाहिए….? मैं बोली

और क्या….आप तो शादी शुदा हो…इसकी या ऐसी मैगजीनों की जरुरत तो मेरे जैसे कुंवारों के लिए ठीक रहती है…. जतिन बोला,

क्यों….जो आनंद इस मैगजीन से कुंवारे ले सकते हैं…..उस पर हमारा अधिकार नहीं है क्या…? कैसी बातें करते हो तुम…..मैं उसकी कनपटियाँ सहला कर बोली,

अरे वाह…..आपको आनन्द के लिये मैगजीन की क्या जरुरत…? आपके पास तो जीवित आनन्द देने वाली मशीन है….मेरे कहने का मतलब है की आप भैया से आनन्द ले सकती हो और वे आपसे….परेशानी तो हम जैसों की है…..जो अपनी आँखों की प्यास बुझाने के लिये ऐसी मैगजीनों पर आश्रित हैं….जतिन ने बात को गंभीर मोड़ दिया,

ओहो…तो मेरे देवर की आँखें प्यासी रहती हैं तभी ऐसी बातें कर रहे हो….मैनें मुस्कुराते हुवे कहा, फीर बोली….तो क्या तुमने अभी तक अपनी आँखों की प्यास नहीं बुझाई….मेरे कहने का मतलब ये है की….क्या इन बड़ी बड़ी आँखों को देवी दर्शन नहीं हुवे,

देवी दर्शन……. वह इस शब्द पर उलझ गया,

यानी की किसी युवती को बिना कपडों के नहीं देखा, मैनें देवी दर्शन का मतलब समझाया,

इसे कहते हो आप देवी दर्शन…वाकई आप तो जीनियस हो भाभी जी….वैसे कह ठीक रही हो आप, अपनी किश्मत में ऐसा कोई मौका अभी तक नहीं आया है, आगे भी शायद ही आये….वह सोचता हुवा सा बोला फीर टी.वी पर आते एक दृश्य में दो मिनी स्कर्ट वाली लड़कियों को देख कर बोला….टी.वी. या किताबों में ही देख कर संतोष करना पड़ता है….

तुम सचमुच ही बद-किस्मत हो लेकिन एक बात बताओ….जब तुम ऐसी मैगजीन देख लेते होगे तब तो और प्यास भड़क उठती होगी और शरीर में उत्तेजना भी फ़ैल जाती होगी…उस उत्तेजना को तुम कैसे शांत करते हो फीर…? मैं बोली.

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