घरवाली और पड़ोस वाली डबल मज़ा भाग 1

पुणे में औंध के बंगला सोसाइटी में, कविता शर्मा अपने बंगले की खिड़की पर खडी हो कर गली में बाहर का नज़ारा देख रहीं थीं. कविता एक बहुत की खूबसूरत औरत थीं – गोरा रंग, लम्बा कद, काले लम्बे बाल, . उनका बदन एक संपूर्ण भारतीय नारी की तरह भरा पूरा था. कविता एक जिन्दा दिल इंसान थीं जिन्हें जिन्दगी जी भर के जीना पसंद था. कविता इस घर में अपने हैण्डसम पति विवेक और अपनी बेटी तृषा के साथ रहती थी. तृषा यूनिवर्सिटी में फाइनल इयर की क्षात्र थीं. कविता एक गृहणी थीं. विवेक एक सॉफ्टवेयर कंपनी में ऊंची पोस्ट पर थे. कविता को ये बिलकुल अंदाजा नहीं था की उसकी जिन्दगी में काफी कुछ नया होने वाला है.

कविता के सामने वाला घर कई महीनों से खाली था. उसके पुराने मालिक उनका मोहल्ला छोड़ कर दिल्ली चले गया थे. आज उस घर के सामने एक बड़ा सा ट्रक खड़ा था. उसके ट्रक के बगल में एक BMW खडी थी जिसमें मुंबई का नंबर था. लगता था मुंबई से कोई पुणे मूव हो रहा था. पुराने पडोसी काफी खडूस थे. मोहल्ले में कोई उनसे खुश नहीं था. कविता मन ही मन उम्मीद कर रही थी कि नए पडोसी अच्छे लोग होंगे जो सब से मिलना जुलना पसंद करते होंगे.

कविता ने देखा की उस परिवार से तीन लोगों थे. पति पत्नी शायद 40 प्लस की उम्र में होंगे. उनकी बेटी कविता की अपनी बेटी तृषा की उम्र की लग रही थी.

कविता ने अपने पति विवेक को पुकारा, “हनी, जल्दी आओ. हमारे नए पडोसी आ चुके हैं”

विवेक लगभग दौड़ता हुआ आया और बाहर का नज़ारा देखते ही उसकी बांछे खिल उठीं. बाहर एक हैण्डसम आदमी की बहुत ही सेक्सी बीवी अपने बॉब कट हेयर स्टाइल में एकदम कातिल हसीना लग रही थी. जैसे जैसे वो चलती थी, उसकी चून्चियां उसकी टी-शर्ट में इधर से उधर हिलती थीं. इसी बीच विवेक की नज़रों में उनकी कमसिन जवानी वाली बेटी आई. विवेक का तो लंड उसके पाजामें के अन्दर खड़ा होने लग गया. नए पड़ोसियों की बेटी ने लो-कट टी-शर्ट पहन रखी थी. इसके कारण उसके आधे मम्मे एकदम साफ़ दिखाई पड़ रह थे. उसके मम्मे उसके माँ की भांति सुडौल थे जो एक नज़र में किसी को भी दीवाना बना सकते थे. उसने बहुत छोटे से शॉर्ट्स पहन रखे थे जिससे उसके गोर और सुडौल नितंब दिखाई पद रहे थे.

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विवेक सारा नज़ारा अपनी पत्नी कविता ने पीछे खड़ा हो कर देख रहा था. विवेक ने पीछे से कविता को अपने बाहीं में भर लिया. उसके हाथ कविता के दोनों चून्चियों पर रेंगने लगे. कविता मुस्कराई और उसने अपनी गुन्दाज़ चूतडों को विवेक के खड़े लंड पर रगड़ना शुरू कर दिया. इससे विवेक का खड़ा लंड कविता की गांड की दरार में गड़ने लगा.

कविता ने धीरे से हँसते हुए पूंछा, “डार्लिंग! तुम्हारा लंड किसे देख के खड़ा हो गया?”

विवेक बोला, “दोनों को देख कर. तुमने देखा की उनकी लडकी ने किस तरह के कपडे पहने हैं”?

“वो बहुत हॉट है न? जरा सोचो अपनी तृषा अगर ऐसे कपडे पहने तो?” कविता बोली.

विवेक के हाथ अब कविता के ब्लाउज के अन्दर थे. वो उसकी ब्रा का आगे का हुक खोल रहा था. विवेक कविता की चून्चियों को अपने हाहों में भर रहा था और धीरे मसल रहा था. विवेक को अपनी चून्चियों के साथ खेलने के अनुभव से कविता भी गर्म हो रही थी.

वो बोली, “विवेक डार्लिंग! आह.. मुझे बहुत अच्छा लग रहा है. मुझे खुशी हुई की नए पड़ोसियों को देख कर तुम्हें “इतनी” खुशी हुई… अब मुझे तुम्हें यहाँ बुला कर उन्हें दिखाने का इनाम मिलेगा ना?”

विवेक कविता को जोर जोर से चूमने लगा. उसने कविता का गर्म बदन अपने ड्राइंग रूम में बिछे हुए कालीन पर खींच लिया. उसके हाथ अब कविता के स्कर्ट के अन्दर थे, उसकी उंगलिया उसकी गीली चूत पर रेंग रहीं थी. कविता ने अपनी टाँगे पूरी चौड़ी कर रखीं थीं. हालांकि दोनों के विवाह को 19 साल हो गए थे, पर दोनों आज भी ऐसे थे जैसे उनका विवाह 19 घंटे पहले ही हुआ है – जब भी उन्हें जरा भी मौका मिलता था, चुदाई वो जरूर करते थे.

विवेक ने अपना पजामा उतार के अपने लौंड़े को आज़ाद किया. कविता इस लंड को अपनी चूत में उतार के चोदने के लिए एकदम तैयार थी. कविता को चुदाई बहुत पसंद थी. वो वाकई चुदवाना चाहती थी. पर विवेक को चिढाने के लिए उसने बोला,

“विवेक डार्लिंग… नहीं…तृषा के घर आने का टाइम हो गया है. वो कभी भी आ सकती है”

विवेक ने अपना लौंडा कविता के चूत के मुहाने पर टिका के एक हल्का सा धक्का लगाया जिससे उसके लंड का सुपाडा कविता की गीली चूत में जा कर अटक सा गया. कविता ने अपनी गांड को ऊपर उठाया ताकि विवेक का पूरा का पूरा लंड उसकी चूत के अन्दर घुस सके. विवेक धीरे धीरे अपनी गांड हिलाने लगा ताकि वो अपनी पूरी तरह गरम चुकी बीवी की गांड के धक्कों को मैच कर सके और बोला,

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“अच्छा को कि तृषा किसी दिन हमारी चुदाई देख ले…कभी कभी मुझे लगता है कि उसकी शुरुआत करने की उम्र भी अब हो गयी है.”

कविता ने अपने पैर विवेक की गांड पर लपेट लिए और अपनी भरी आवाज में बोली,

“अरे गंदे आदमी…यहाँ तुम अपनी बीवी की ले रहा है और साथ में अपनी बेटी को चोदने के सपने देख रहा है…सुधर जा….”

विवेक ने कविता को दनादन फुल स्पीड में चोदना चालू कर दिया. उसका लंड कविता की चूत के गीलेपन और गहराइयों को महसूस कर रहा था. कविता आह आह कर रही थी और अपनी चूत को विवेक के लंड पर टाइट कर रही थी. विवेक को कविता की चूत की ये ट्रिक बेहद पसंद थी. विवेक ने धक्कों की रफ़्तार खूब तेज कर दी और वो कविता की चूत में झड़ने लगा. कविता ने अपने चूत में विवेक के लंड से उसके वीर्य की गरम धार महसूस की और वो भी झड़ गयी. कविता झड़ते हुए इतनी जोर से चिल्लाई की उसकी अवाज नए पड़ोसियों तक भी शायद पहुची हो. दोनों एक दुसरे से लिपटे हुए थोड़े देर पड़े रहे. फिर विवेक के अपना लौंडा उसकी चूत से निकाला उसे होठों पर चूमा और बाथरूम की तरफ चला गया.

कविता ने अपने कपडे ठीक किये और वापस खिड़की पर चली गयी ताकि देख सके की नए पड़ोसी अब क्या कर रहे हैं.

अब माँ और बेटी शायद घर के अन्दर थे और पिता बाहर खड़ा हुआ था. विवेक बाथरूम से लौट आया और उसने कविता के गर्दन के पीछे चूमा. कविता गर्दन के पीछे चूमा जाना बहती पसंद था. कविता ने अपनी भरी आवाज में बोला

“मज़ा आया विवेक. मुझे बहुत अच्छा लगता है जब तुम कहीं भी और कभी भी मेरी लेते हो..”

“ओह यस बेबी…इस शहर का सबसे टॉप माल तो तू है न…”
कहते हुए विवेक ने कविता की गांड पर एक हल्की चपत लगाईं.

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