मैं एक प्राईवेट स्कूल में पढ़ाती हूँ। उसका एक बड़ा कारण है कि एक तो स्कूल कम समय के लिये लगता है और इसमें छुट्टियाँ खूब मिलती हैं। बी एड के बाद मैं तब से इसी टीचर की जॉब में हूँ। हाँ बड़े शहर में रहने के कारण मेरे घर पर बहुत से जान पहचान वाले आकर ठहर जाते हैं खास कर मेरे अपने गांव के लोग। इससे उनका होटल में ठहरने का खर्चा, खाने पीने का खर्चा भी बच जाता है। वो लोग यह खर्चा मेरे घर में फ़ल सब्जी लाने में व्यय करते हैं। एक मल्टी स्टोरी बिल्डिंग में मेरे पास दो कमरो का सेट है।
जैसे कि खाली घर भूतों का डेरा होता है वैसे ही खाली दिमाग भी शैतान का घर होता है। बस जब घर में मैं अकेली होती हूँ तो कम्प्यूटर में मुझे सेक्स साईट देखना अच्छा लगता है। उसमें कई सेक्सी क्लिप होते है चुदाई के, शीमेल्स के क्लिप… लेस्बियन के क्लिप… कितना समय कट जाता है मालूम ही नहीं पड़ता है। कभी कभी तो रात के बारह तक बज जाते हैं।
फिर अन्तर्वासना की दिलकश कहानियाँ… लगता है मेरा दिल किसी ने बाहर निकाल कर रख दिया हो। इन दिनों मैं एक मोटी मोमबती ले आई थी। बड़े जतन से मैंने उसे चाकू से काट कर उसका अग्र भाग सुपारे की तरह से गोल बना दिया था। फिर उस पर कन्डोम चढ़ा कर मैं बहुत उत्तेजित होने पर अपनी चूत में पिरो लेती थी। पहले तो बहुत कठोर लगता था। पर धीरे धीरे उसने मेरी चूत के पट खोल दिये थे। मेरी चूत की झिल्ली इन्हीं सभी कारनामों की भेंट चढ़ गई थी।
फिर मैं कभी कभी उसका इस्तेमाल अपनी गाण्ड के छेद पर भी कर लेती थी। मैं तेल लगा कर उससे अपनी गाण्ड भी मार लिया करती थी। फिर एक दिन मैं बहुत मोटी मोमबत्ती भी ले आई। वो भी मुझे अब तो भली लगने लगी थी। पर मुझे अधिकतर इन कामों में अधिक आनन्द नहीं आता था। बस पत्थर की तरह से मुझे चोट भी लग जाती थी।
उन्हीं दिनों मेरे गांव से मेरे पिता के मित्र का लड़का लक्की किसी इन्टरव्यू के सिलसिले में आया। उसकी पहले तो लिखित परीक्षा थी… फिर इन्टरव्यू था और फिर ग्रुप डिस्कशन था। फिर उसके अगले ही दिन चयनित अभ्यर्थियों की सूची लगने वाली थी।
मुझे याद है वो वर्षा के दिन थे… क्योंकि मुझे लक्की को कार से छोड़ने जाना पड़ता था। गाड़ी में पेट्रोल आदि वो ही भरवा देता था। उसकी लिखित परीक्षा हो गई थी। दो दिनों के बाद उसका एक इन्टरव्यू था। जैसे ही वो घर आया था वो पूरा भीगा हुआ था। जोर की बरसात चल रही थी। मैं बस स्नान करके बाहर आई ही थी कि वो भी आ गया। मैंने तो अपनी आदत के आनुसार एक बड़ा सा तौलिया शरीर पर डाल लिया था, पर आधे मम्मे छिपाने में असफ़ल थी। नीचे मेरी गोरी गोरी जांघें चमक रही थी।
इन सब बातों से बेखबर मैंने लक्की से कहा- नहा लो ! चलो… फिर कपड़े भी बदल लेना…
पर वो तो आँखें फ़ाड़े मुझे घूरने में लगा था। मुझे भी अपनी हालत का एकाएक ध्यान हो आया और मैं संकुचा गई और शरमा कर जल्दी से दूसरे कमरे में चली गई। मुझे अपनी हालत पर बहुत शर्म आई और मेरे दिल में एक गुदगुदी सी उठ गई। पर वास्तव में यह एक बड़ी लापरवाही थी जिसका असर ये था कि लक्की का मुझे देखने का नजरिया बदल गया था। मैंने जल्दी से अपना काला पाजामा और एक ढीला ढाला सा टॉप पहन लिया और गरम-गरम चाय बना लाई।
वो नहा धो कर कपड़े बदल रहा था। मैंने किसी जवान मर्द को शायद पहली बार वास्तव में चड्डी में देखा था। उसके चड्डी के भीतर लण्ड का उभार… उसकी गीली चड्डी में से उसके सख्त उभरे हुये और कसे हुये चूतड़ और उसकी गहराई… मेरा दिल तेजी से धड़क उठा। मैं 24 वर्ष की कुँवारी लड़की… और लक्की भी शायद इतनी ही उम्र का कुँवारा लड़का…
जाने क्या सोच कर एक मीठी सी टीस दिल में उठ गई। दिल में गुदगुदी सी उठने लगी। लक्की ने अपना पाजामा पहना और आकर चाय पीने के लिये सोफ़े पर बैठ गया।
पता नहीं उसे देख कर मुझे अभी क्यू बहुत शर्म आ रही थी। दिल में कुछ कुछ होने लगा था। मैं हिम्मत करके वहीं उसके पास बैठी रही। वो अपने लिखित परीक्षा के बारे में बताता रहा।
फिर एकाएक उसके सुर बदल गये… वो बोला- मैंने आपको जाने कितने वर्षों के बाद देखा है… जब आप छोटी थी… मैं भी…
“जी हाँ ! आप भी छोटे थे… पर अब तो आप बड़े हो गये हो…”
“आप भी तो इतनी लम्बी और सुन्दर सी… मेरा मतलब है… बड़ी हो गई हैं।”
मैं उसकी बातों से शरमा रही थी। तभी उसका हाथ धीरे से बढ़ा और मेरे हाथ से टकरा गया। मुझ पर तो जैसे हजारों बिजलियाँ टूट पड़ी। मैं तो जैसे पत्थर की बुत सी हो गई थी। मैं पूरी कांप उठी। उसने हिम्मत करते हुये मेरे हाथ पर अपना हाथ जमा दिया।
“लक्की जी, आप यह क्या कर रहे हैं? मेरे हाथ को तो छोड़…”
“बहुत मुलायम है जी लक्ष्मी जी… जी करता है कि…”
“बस… बस… छोड़िये ना मेरा हाथ… हाय राम कोई देख लेगा…”
लक्की ने मुस्कराते हुये मेरा हाथ छोड़ दिया।
अरे उसने तो हाथ छोड़ दिया- वो मेरा मतलब… वो नहीं था…
मेरी हिचकी सी बंध गई थी।
उसने मुझे बताया कि वो लौटते समय होटल से खाना पैक करवा कर ले आया था। बस गर्म करना है।
“ओह्ह्ह ! मुझे तो बहुत आराम हो गया… खाने बनाने से आज छुट्टी मिली।”
शाम गहराने लगी थी, बादल घने छाये हुये थे… लग रहा था कि रात हो गई है। बादल गरज रहे थे… बिजली भी चमक रही थी… लग रहा था कि जैसे मेरे ऊपर ही गिर जायेगी। पर समय कुछ खास नहीं हुआ था। कुछ देर बाद मैंने और लक्की ने भोजन को गर्म करके खा लिया। मुझे लगा कि लकी की नजरें तो आज मेरे काले पाजामे पर ही थी।मेरे झुकने पर मेरी गाण्ड की मोहक गोलाइयों का जैसे वो आनन्द ले रहा था। मेरी उभरी हुई छातियों को भी वो आज ललचाई नजरों से घूर रहा था। मेरे मन में एक हूक सी उठ गई। मुझे लगा कि मैं जवानी के बोझ से लदी हुई झुकी जा रही हूँ… मर्दों की निगाहों के द्वारा जैसे मेरा बलात्कार हो रहा हो। मैंने अपने कमरे में चली आई।
बादल गरजने और जोर से बिजली तड़कने से मुझे अन्जाने में ही एक ख्याल आया… मन मैला हो रहा था, एक जवान लड़के को देख कर मेरा मन डोलने लगा था।