हेलो दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा एक ओर नई कहानी लेकर आपके सामने हाजिर हूँ .
दोस्त जिस तरह आप सब को मेरी पिछली सभी कहानियाँ पसंद आई हैं आशा करता हूँ
ये कहानी भी आपको पसंद आएगी कहानी की शुरू-आत कुछ इस तरह से है
आनंद एक गाओं की ऑफीस मे नौकरी करता था. वो उस गाओं के हर आदमी
और औरतों को जानता था. गाओं के किसी भी आदमी को कोई भी काम हो पर वो
सब आनंद के पास पहले आते थे और बाद मे बीडीओ से मिलते थे. ऐसा ना
करने पर ऑफीस से उनकी फाइल कभी ना कभी गायब हो जाया करती
थी और वो फाइल तब तक नही मिलती थी जब तक ना आनंद को खुश
कर दिया जाता था. इस तरह से आनंद का गाओं मे काफ़ी दबदबा था.
आनंद की शादी अभी नही हुई थी और इसी लिए वो गाओं की औरत
और लड़कियों को घूर घूर कर देखता था. गाओं के कुँवारी लरकियाँ भी
आनंद को छुप छुप कर देखती थी क्योंकि वो एक तो अभी कुँवारा था
और दूसरी तरफ उसका गाओं मे काफ़ी रुतबा था. आनंद इस बात से वाकिफ़
था और बारे इतमीनान से अपने लिए सुंदर लड़की की तलाश मे था.
आनंद की सरकारी नौकरे से काफ़ी आमदनी हो जाती थी और इसलिए उसको
पैसे की कोई कमी नही थी.
एक दिन आनंद सहर से सरकारी काम ख़तम करके लौट रहा था. वो
जब अपने गाओं मे बस से उतरा तो उस समय दुपहर के करीब 1.00 बजा
था. ऊन्दिनो गर्मी बहुत पड़ रही थी और मई का महीना था. उस
वक़्त कोई भी आदमी अपने घर के बाहर नही रुकता था. इसलिए उस
दोपहर के समय सड़क काफ़ी सुनसान थी और आनंद को कोई सवारी गाओं
तक मिलने की आशा नही थी. आनंद बहादुरी के साथ अपने गाओं, जो
की करीब दो किलोमेटेर दूर था, पैदल ही चल पड़ा. वो अपने सर के
उपर छाता लगा कर और अपने कंधों पर ऑफीस फाइल का बॅग रख
कर गाओं की तरफ पैदा ही चल पड़ा. वो काफ़ी ज़ोर-ज़ोर चल रहा था
जिससे की जल्दी से वो अपने घर को पहुँच जाए.
आनंद चलते चलते गाओं के किनारे तक पहुँच गया. गाओं के किनारे
आम का बगीचा था जो की टूटी फूटी तार के बाड़े से घिरा था.
आनंद ने सोचा कि अगर आम के बगीचा के अंदर से जाया जाए तो थोड़ी
सी दूरी कम होगी और धूप से भी बचा जा सकेगा. ये सोच कर
आनंद तार के बाड़े मे घुस गया और अपने छाता को मोड़ कर चलने लगा.
वो अभी थोरी दूर ही चला होगा की सामने बगीचा के रखवाले,
नरेन्द्रा, की झोपड़ी तक पहुँच गया. अनानद ने सोचा की वो नरेन्द्रा
के घर थोरी देर आराम कर पानी और छाछ पी कर अपने घर जाएगा.
आनंद सोचा रहा था की वो पहले नहर मे नहाएगा और पानी पिएगा.
आनंद जैसे ही नरेन्द्रा के झोपड़ी के पास पहुँचा तो उसे बर्तन
गिरने की आवाज़ सुनने मे आई. “अरे भाभी, साबधानी से काम कर, मेरे
बर्तनो को मत तोड़,” नरेन्द्रा की आवाज़ सुनाई दी. “माफ़ करना
नरेन्द्रा, बर्तन मेरे हाथ से फिसल गया,” एक औरत की आवाज़ सुनाई
दी. “ये तो बड़ी अजीब बात है,” आनंद. ने सोचा क्यूंकी नरेन्द्रा
की पत्नी का देहांत कई साल पहले हो चुक्का था. “अब ये औरत कौन
हो सकती है? आनंद सोचने लगा. आनंद बहुत उत्सुक हो गया कि ये
औरत नरेन्द्रा के घर मे कौन आई है. वो धीरे धीरे दबे पावं
नरेन्द्रा के घर की तरफ चल पड़ा. वो एक आम के छोटे से पेड के
पीछे जा कर खड़ा हो गया और वहा से नरेन्द्रा के घर मे झाँकने
लगा. उसने देखा की नरेन्द्रा अपने घर मे एक चबूतरे मे बैठ कर
अपने आप पंखा झल रहा है.
“ओह! कितनी गर्मी है” ये कहते हुए एक औरत अंदर से बाहर आई.
आनंद उसको देख कर चौंक उठा. वो आनंद के खास दोस्त, अजीत” की
पत्नी थी और उसकी नाम आशा था. आनंद उनके घ्रर कई बार जा चुक्का
था. आशा एक बहुत ही सुंदर और एक सरीफ़ औरत है. आशा ने इस समय
सिर्फ़ एक साड़ी पहन रखी थी और उसके साथ ब्लाउस नही पहन
रखा था और अपनी छाती अपने पल्लू से छुपा रखी थी. पल्लू के
उप्पेर से आशा की चूंची साफ साफ दिख रही थी, क्योंकी साडी बहुत
ही महीन थी. आशा नरेन्द्रा के पास आकर बैठ गयी. आशा चबूतरे
के किनारे पर बैठी थी, उसकी एक टांग चबूतरे के नीचे लटक
रही थी और एक टांग उसने अपने नीचे मोड़ रखी थी. इस तरह
बैठने से उसकी साड़ी काफ़ी उप्पेर उठ चुकी थी और उसके चूतर
साफ साफ दिख रहे थे. “मेरे गोदी मे लेट जाओ नरेन्द्रा, मैं तुम्हे
पंखा से हवा कर देती हूँ. कम से कम आम के पेड़ के नीचे थोड़ा
बहुत ठंडा है” आशा बोली.
“इस तरफ की गर्मी कई साल के बाद पड़ी है,” नरेन्द्रा ने कहा और
आशा की गोदी ने अपना सर रख कर लेट गया, जैसे ही आशा पंखा
झलने लगी तो नरेन्द्रा ने उप्पेर की तरफ देखा तो आशा की चूंची को
अपने चहेरे के उप्पेर पाया. नरेन्द्रा अपने आप को रोक नही पाया और
साडी के उप्पेर से ही वो आशा की चूंची को धीरे धीरे दबाने
लगा. “अजीत बहुत किस्मत वाला है, उसे हर रोज इन सुंदर चूंचियों से
खेलने को मिलता है. अजीत इतनी सुंदर औरत को हर रात
चोद्ता है,” नरेन्द्रा बोल रहा था और आशा की चूंची को धीरे
धीरे दबा रहा था. “तुम अपने आप को और मुझको परेशान मत करो,
तुम अच्छी तरफ से जानते हो कि मुझको कितनी देर तक उसका लंड चूस
चूस कर खड़ा करना पड़ता है. फिर उसके बाद वो दो चार धक्के मार
कर झाड़ जाता है. अगर वो मुझको अच्छी तरफ से चोद पाता तो क्या मैं
तुम्हारे पास कभी आती? खैर अब मुझको कोई परेशानी नही है और
ना मुझको कोई शिकायत है.” इतना कहा कर आशा झुक कर नरेन्द्रा की
धोती के उप्पेर से उसका आधे खड़े लंड को उपर हाथ सेमसल्ने लगी.
ऐसा करने से आशा की चूंची अब नरेंद्र के मुँह के साथ रगड़ खाने
लगी नरेन्द्रा झट आशा की पतली साडी का पल्लू हटा कर
उसकी चूंची को अपने हाथों मे लेकर उनसे खेलने लगा. फिर नरेन्द्रा
आशा की दाँयी चूंची अपने मूह मे ले चूसने लगा और बाँयी
चूंची की मसल्ने लगा.