दूसरे दिन बहुत सोच बिचार के बाद में उनके कमरे में गया ताके उन से बात कर सकूँ और हालात बेहतर हो सकैं. जब में उनके कमरे में दाखिल हुआ तो वो बेड कवर ठीक कर रही थीं और बड़ी सजी सज्जई, बनी सवरी लग रही थीं . उनके रवये को देखते हुए ये बात मुझे कुछ अजीब और मंताक़ के खिलाफ लगी. उन्होने काले रंग की शलवार क़मीज़ पहनी हुई थी जिस में से उनका गुलाबी या लाल रंग का ब्रा झलक रहा था. उनके मोटे और सेहतमंद मम्मे देख कर जिनको मैंने एक दिन पहले ही खूब चूसा और चाटा था मेरे लंड में सनसनी सी होने लगी. उनके दूध की तरह गोरे बदन पर काले कपड़े बहुत सज रहे थे. मैंने दिल ही दिल में ये फ़ैसला किया के फूफी फ़रहीन की चूत और गांड़ आज फिर ज़रूर मारूं गा.
“फूफी फ़रहीन आप क्यों परेशां हैं?” मैंने बात शुरू की.
“अमजद तुम ने जो हरकत मेरे साथ की किया वो परेशां करने वाली नही? में तो हैरान हूँ के तुम मेरे बारे में ऐसा सोचते थे और में बे-वक़ूफ़ हमेशा से बे-खबर थी. किया अपने बाप की बहन के साथ ज़ीना करना मुनासिब है?” उन्होने बेड पर बैठते हुए थोड़े से गुस्से से कहा.
“फूफी फ़रहीन में मानता हूँ के मुझ से बहुत बड़ा गुनाह सर्ज़ाद हुआ है. लेकिन में किया करूँ मुझे वोही औरत अच्छी लगती है जो सेहतमंद हो और कम-उमर ना हो. आप में वो सब कुछ है जो में किसी औरत में देखना चाहता हूँ. खूबसूरत चेहरा, सेहतमंद बदन और फिर सब से बड़ी बात ये के आप मेरी सग़ी फूफी हैं यानी मेरी अपनी हैं. मै तो आप को पसंद करने पर मजबूर था.” मैंने अपनी सफाई पेश करते हुए उनकी तारीफ भी की.
“किया दुनिया भर के भतीजे अपनी फ़ुपिओं को चोदते फिरते हैं? किया यही ज़माने का दस्तूर है? बाक़ी सारी औरतें मर गई हैं किया?” उन्होने उसी तरह बहेस जारी रखी.
“फूफी फ़रहीन मुझे जो मज़ा अपनी सग़ी फूफी को चोदने में आया है वो किसी बाहर की औरत के साथ नही आता. ये मेरी कमज़ोरी है. मै बहुत बचपन से ही इन्सेस्ट का शोक़ीं हूँ.” मैंने उन्हे बताया.
“लेकिन मुझे अपने आप से जो नफ़रत महसूस हो रही है उस का किया करूँ?” वो नाक सिकोड़ कर बोलीं.
मैंने सोचा के अगर फूफी फ़रहीन को खुद से इतनी ही नफ़रत महसूस हो रही है तो मेकप क्यों कर रखा है और इतनी बनी सवरी क्यों हैं. वो अगर चाहतीं तो नाराज़गी के इज़हार के तौर पर सुबा ही अपने घर लाहोर वापस चली जातीं. लेकिन उन्होने ऐसा नही किया. ये सब बातें इस हक़ीक़त का सबूत थीं के जो उनकी ज़बान पर था वो दिल में नही था.
“किया आप एक भरपूर औरत नही हैं फूफी फ़रहीन? किया आप को एक मज़बूत और ताक़तवर लंड की ज़रूरत नही? मुझे ईलम है के फ़ूपा सलीम आप जैसी खुऊबसूरत और तंदरुस्त औरत की जिस्मानी ज़रूरियात पूरी नही कर सकते. बाहर किसी से चुदवाने से ये बेहतर नही है के आप मुझे अपनी चूत दे दें ताके किसी को उंगली उठाने का मोक़ा ना मिल सके. और फिर ये भी सच बताएं के किया आप को मुझ से चुदवा कर मज़ा नही आया?” मैंने बिल्कुल खुले अल्फ़ाज़ में दलील पेश की.
“अपनी ज़िंदगी से खुश ना होते हुए भी मैंने कभी किसी मर्द से ता’अलुक़ात कायम करने का नही सोचा. और तुम्हे तो कोई हक़ है ही नही के तुम मेरी खराब ज़िंदगी का फायदा उठा कर मुझे चोदना शुरू कर दो. तुम मेरे भतीजे हो तुम्हे तो ऐसी बातें सोचानीं भी नही चाहिए.” वो बोलीं.
उनकी बात बिल्कुल सही थी लेकिन मुझे कोई जवाब तो देना ही था. “आप किया समझती हैं के आप दुनिया की वाहिद औरत हैं जिस ने इन्सेस्ट की है. फूफी फ़रहीन इस सोसाइटी में छुप छुपा कर हर तरफ यही हो रहा है. हम इस से परदा पोशी करें तो और बात है मगर ऐसा करने से हक़ीक़त बदल तो नही जाए गी और ना ही इन्सेस्ट ख़तम हो जाए गी. बाहर के कई मुल्कों में बालिग़ मर्द और औरत की इन्सेस्ट जुर्म नही है.” मैंने कहा.
“मगर बेटा…..” मुझे बेटा कहते हुए उनके चेहरे का रंग एक लम्हे को बदल गया क्योंके मेरा लंड लेने के बाद अब उनके ख़याल में मेरा और उनका रिश्ता पहले वाला नही रहा था. और किसी हद तक ये था भी सही. जब मर्द और औरत सेक्स कर लें तो उनके दरमियाँ ता’अलुक़ात की नौेयात किसी ना किसी हद तक तब्दील ज़रूर होती है. तमाम पर्दे उठ जाते हैं और तमाम भरम खुल जाते हैं. मेरे और फूफी फ़रहीन के साथ भी ऐसा ही हुआ था. अब वो सिरफ़ मेरी फूफी नही रही थीं बल्के महबूबा भी बन गई थीं .
“फूफी फ़रहीन अप फज़ूल परेशां हो रही हैं. आप अब भी मेरी फूफी हैं और हमेशा रहें गी. इसी तरह में भी आप का भतीजा ही रहूं गा. अगर मैंने आप की चूत मारी है तो उस से हमारे रिश्ते पर किसी क़िसम का कोई असर नही पड़ा. और फिर वैसे भी जब एक मर्द एक औरत की चूत लेता है तो दोनो में मुहब्बत बढ़ती है कम नही होती.” मैंने उन्हे दिलासा दिया. वो मेरी बातें गौर से सुन रही थीं .
“अच्छा बेटे में तुम्हारी दलील मान लेतीं हूँ. इस के अलावा अब किया भी किया जा सकता है?” वो बोलीं.
“अच्छा एक बात तो बताओ. तुम कब से सेक्स कर रहे हो?” उन्होने बात बदलते हुए पूछा.
में इस बात का जवाब देने में ज़रा झिजक.
“लगता है तुम्हे सेक्स का काफ़ी तजर्बा है.” उन्होने फिर कहा.
“फूफी फ़रहीन मुझे ज़ियादा तो नही मगर कुछ ना कुछ तजर्बा ज़रूर है.” मैंने जवाब दिया.
“अगर इस मामले में तुम्हारा तजर्बा कम है तो डिसचार्ज होने में इतनी देर कैसे लगाते हो. मै ज़ियादा इन चीज़ों को नही जानती लेकिन इतना तो मुझे भी पता है के मर्द तजरबे और प्रॅक्टीस से ही सेक्स के दोरान अपना टाइम बढ़ा सकता है.” उन्होने हंस कर कहा
“आप ठीक कह रही हैं सेक्स जिस्मानी से ज़ियादा जेहनी गेम है. अगर मर्द को अपने ज़हन पर कंट्रोल हो तो वो अपने जिसम को भी कंट्रोल कर सकता है. उससे सेक्स के बारे में काफ़ी सारा नालेज भी होना चाहिये. हम जिन चीज़ों के बारे में बिल्कुल नही जानते या थोड़ा जानते हैं उन्हे गलत तरीक़े से करते हैं. सेक्स के साथ भी यही होता है. फिर जो मर्द ज़ियादा सेक्स करती हैं उन्हे अपने ऊपर ज़ियादा कंट्रोल होता है और वो अपनी मर्ज़ी से डिसचार्ज हो सकते हैं.” मैंने कहा. “हन ये तो ठीक है.” वो बोलीं.