फूफी फ़रहीन के मोटे मोटे चूतड़ों पर से में अपनी आँखें हटा नही पा रहा था. ना-जाने मेरे दिल में किया आया के में उनके भारी चूतड़ों पर अच्छा ख़ासा ज़ोरदार ठप्पर दे मारा. कमरे में धाप की तेज़ आवाज़ गूँजी और फूफी फ़रहीन ने भी आईं उसी वक़्त एक तेज़ चीख मारी. उनके दोनो सफ़ेद सफ़ेद चूतड़ों के दरमियाँ मेरे हाथ की उंगलियों का लाल निशान पड़ गया. कुछ देर उनके चूतड़ों को मसलने के बाद मैंने उन्हे चारों हाथों पैरों पर कुतिया बना कर पीछे से उनकी मोटी चूत में अपना लंड डाल दिया. “ज़लील के बच्चे, कंज़र तू ने मुझे वाक़ई कुतिया बना दिया है. उूउउफफफ्फ़….. कुत्ते, बहनचोद, रंडी के बच्चे मार दिया मुझे हरामी. तेरा लंड बहुत मोटा है, बहुत मोटा है तेरा लंड.” लज़्ज़त के उन लम्हो में फूफी फ़रहीन के मुँह से बे-तकान गालियाँ निकल रही थीं . रिश्ते नाते, इज़्ज़त एहतीराम, प्यार मुहब्बत सब ख़तम हो चुके थे. सिरफ़ लंड और चूत का खेल रह गया था. मुझे भी मज़ा आ रहा था क्योंके मेरे लिये भी ये एक बिल्कुल नया तजर्बा था. मै उनकी चूत मारता रहा.
उनकी गांड़ का गांड का सुराख मेरे सामने था जिस पर में उंगली फेरता जा रहा था. हर घस्से के साथ जुब मेरा लंड उनकी चूत के अंदर जाता तो उनके दूध की तरह गोरे और मोटे चूतड़ मेरी रानों से टकराते. कुछ ही देर में में फूफी फ़रहीन की चूत के अंदर खलास हो गया और मेरे लंड से मनी की पिचकारियाँ निकल कर उनकी गरम फुद्दी के अंदर चली गईं. वो बेड पर तक कर धायर हो गईं. यों अपनी खूबसूरत फूफी को चोदने का मेरा बरसों का अरमान पूरा हो गया.
फूफी फ़रहीन की चूत मार लेने के बाद अब एक और बड़ा अहम मरहला दरपाश था और वो था उनकी गांड़ लाना. उन्होने अगले दो दिन हमारे घर ही रहना था और मुझे इसी दोरान उनकी गांड़ मारनी थी जो बा-ज़ाहिर इतना आसान काम नही था. इस वक़्त भी हालात कुछ ऐसे अच्छे नही थे. अगर अपनी सग़ी फूफी को चोद लिया जाए तो टेंशन का होना बिल्कुल क़ुदरती अमर है. फूफी फ़रहीन एहसास-ई-जुर्म का शिकार थीं और अपने भतीजे से चूत मरवाने पर उन्हे बड़ी सख़्त नादामात महसूस हो रही थी. इस का साबोट ये था के कल वाले वाक़ई’आय के बाद उन्होने ना मेरा सामना किया था और ना ही मुझ से कोई बात की थी. मुझे उन्हे इस जेहनी पेरैशानि और एहसास-ए-जुर्म से निजात दिलानी थी ताके बात आगे चल सके और में उनकी गांड़ मार सकूँ.