उन्हे डराना ज़रूरी था ताके में जो कुछ करना चाहता था कर सकूँ और वो मुझे ना रोकैयन.
“पता नही ये है किया बला और कहाँ से मुझे चिमत गई है?” वो घबर्राहट में अपने माथे पर हाथ मार कर बोलीं. जिसम पर दाघों वाली बात ने उन्हे और भी परेशां कर दिया था.
“मैरा ख़याल है के ये किसी कीर्रे ने किया है. आप उस जगह हाथ ना लगा’यान कहीं हाथ पर भी ना लग जाए.” मैंने कहा.
“मैंने तो आज तक ऐसा कोई कीररा नही देखा. कीरे बदन पर फिर जांयें तो खारिश ज़रूर होती है लेकिन मुझे तो कोई खारिश नही हो रही.” उन्होने कहा और फॉरन अपने हाथ पीछे कर लिये.
अब मुझे अपना काम शुरू करना था. मैंने दिल बड़ा कर के कहा:
“फूफी फ़रहीन मुझे इस चीज़ को ख़तम करने के लिये आप की क़मीज़ के अंदर हाथ डालना पड़े गा.”
“तुम मेरे बच्चों की तरह हो तुम से मुझे कोई शरम नही. बस किसी तरह इस मुसीबत से मेरी जान छुड़ाव” उन्होने जल्दी से कहा. उस वक़्त उनकी जेहनी हालत ऐसी नही थी के वो शरम के बारे में सोकछतीं.
मैंने फ़रश पर बैठ कर फूफी फ़रहीन की क़मीज़ ऊपर उठाई और अपना हाथ अंदर कर के उनके पेट की तरफ ले गया. क़मीज़ टाइट थी इस लिये मेरा हाथ उनके नरम गरम पेट पर लगा. मैंने उनके पेट की गर्मी महसूस की और मेरा लंड अकड़ने लगा. उनके मम्मे मोटे होने की वजह से इतने बाहर निकले हुए थे के नीचे से मुझे उनका चेहरा नज़र नही आ रहा था क्योंके मम्मे सामने थे. मैंने ख़यालों ही ख़यालों में उनकी फुद्दी के अंदर अपना लंड घुसते हुए देखा और कोशिश की के उनकी क़मीज़ बदन से अलग हो जाए लेकिन ज़ाहिर है ऐसा नही हुआ. फिर में उनके चूतड़ों की तरफ आ गया और उस जगह पर उंगली फेरी जहाँ एल्फी लगी थी.
“फूफी फ़रहीन आप के कपड़े सख्ती से जिसम के साथ चिपके हुए हैं क़ैंची से काट कर ही अलग करना पड़े गा फिर शायद कोई हाल निकले.” मैंने मायूसी का इज़हार करते हुए कहा.
“ठीक है यही कर लो.” उन्होने बे-सबरी का इज़हार किया.
में भाग कर दूसरे कमरे से क़ैंची लाया और फूफी फ़रहीन की क़मीज़ के दामन को एहतियात से काट कर सीधा उनके मम्मों की तरफ ले गया. फिर मैंने जल्दी से उनकी क़मीज़ मुख्तलीफ़ जगहों से काट कर उनके जिसम से पूरी तरह अलग कर दी और उस का सिरफ़ एक छोटा सा तुकर्रा ही उनके मम्मों के नीचे चिपका रह गया. अब उनके ब्रा के अंदर क़ैद मम्मे मुझे नज़र आने लगे. फूफी फ़रहीन के मम्मे बे-इंतिहा मोटे थे और इतने बड़े साइज़ का ब्रा भी उन्हे पूरी तरह छुपाने में नाकाम था. कमरे में लगी हुई तीन ट्यूब लाइट्स की रोशनी में उनके गोरे मम्मे जैसे चमक रहे थे. दोनो मम्मों की गोलाइयाँ बिल्कुल एक जैसी लगती थीं और वो जैसे ब्रा से उबले पड़ रहे थे.
मैंने फूफी फ़रहीन की तरफ देखा तो उनके चेहरे पर कोई ऐसा ता’असुर नही था के मेरे सामने अपनी क़मीज़ उतारने से उन्हे कोई परैशानी हो रही थी. और होती भी क्यों में उनका सागा भतीजा था और वो ये सोच भी नही सकती थीं के में अपनी फूफी की फुद्दी लेना चाहता था. इस से पहले मैंने उनके साथ ऐसी कोई हरकत की भी नही थी जिस से उन्हे मुझ पर शक़ होता.
फूफी फ़रहीन के ब्रा का निचला हिस्सा भी एल्फी के साथ जिसम से चिपका हुआ था. मैंने हिम्मत कर के उनके भारी भर्कूं बांया मम्मे को हाथ में पकड़ा और हल्का सा खैंचा. जहाँ एल्फी लगी हुई थी में वो जगह देखता रहा और उनका मम्मा मुसलसल मेरे हाथ में ही रहा जिस को मैंने थोड़ा दबा कर पकडे रखा. मुझे ऐसा लग रहा था जैसे उनका मम्मा अभी ब्रा से बाहर आ जाए गा.
फूफी फ़रहीन के मम्मे ना सिर्फ़ बहुत बड़े थे बल्के अच्छे झासे सख़्त भी थे. फ़ूपा सलीम को शायद वो अपने मम्मों को चूसने नही देती थीं क्योंके जहाँ तक उनके मम्मे मुझे ब्रा में से नंगे नज़र आ रहे थे बिल्कुल बे-दाग थे.
“फूफी फ़रहीन मुझे आप का ब्रा भी काटना पड़े गा क्योंके ये भी क़मीज़ की तरह जिसम से अलग नही हो रहा.” मैंने फूफी फ़रहीन का मोटा मम्मा हाथ में पकडे पकडे कहा.
“हन तुम रूको में इस का हुक खोलती हूँ फिर एहतियात से काटना ताके क़ैंची की नोकैयन मुझे ज़ख़्मी ना करें.” मैंने फॉरन उनका मम्मा छोड़ दिया. उन्होने हाथ पीछे कर के अपने ब्रा का हुक खोल कर उससे उतार दिया जो ढीला हो कर उनके हाथों में आ गया. उनके मम्मों पर से ब्रा का दबाव हटा तो वो काफ़ी हद तक नंगे हो गए लेकिन अभी तक मुझे उनके निप्पल नज़र नही आ रहे थे. मैंने फूफी फ़रहीन के बांया मम्मे को दोबारा हाथ में पकड़ा और उस के ऊपर से ब्रा को काट दिया. उनके एक मोटे ताज़े मम्मे को अपने हाथ में महसूस कर के मेरे जिसम में आग सी लग गई और मेरा लंड तन कर लोहा बन गया.
फूफी फ़रहीन के रवये की वजह से मेरा दिल बढ़ गया था. ब्रा के काटने के बाद मैंने फॉरन उनके दांयें मम्मे के ऊपर से उससे हटाया और उस मम्मे को भी नंगा कर दिया. अब मैंने उनके सेहतमंद नंगे मम्मों पर नज़र डाली तो मेरे होश अर गए. इस में कोई शक नही के उनके मम्मे मेरे तसववर से भी ज़ियादा ज़बरदस्त थे. उनके मम्मों के निप्पल मोटे और लंबे थे और निप्पल के आस पास का हल्का ब्राउन हिस्सा बहुत बड़ा था. मम्मे इतने बड़े और वज़नी होने के बावजूद लटके हुए नही थे बल्के तने तने लगते थे.
में जानता था के खुश्क एल्फी को माल्टे के छिलके की तरह जिसम से बड़ी आसानी से उतारा जा सकता है. मैंने आहिस्ता से फूफी फ़रहीन के मम्मे के नीचे लगी हुई खुश्क एल्फी उतार ली.
“ये है किया?” उन्होने पूछा.
“पता नही फूफी फ़रहीन लेकिन बहरहाल उतार तो गया है.” मैंने जवाब दिया. मै उन्हे किया बताता के उनके बदन से चिपकी हुई चीज़ किया थी.
“अमजद मेरा सीना तो छोड़ो किया पकडे ही रहो गे.” फूफी फ़रहीन ने अचानक कहा लेकिन उनके लहजे में सख्ती या नागावारी नही थी. मै इस दोरान ये भूल गया था के फूफी फ़रहीन का एक मम्मा अभी तक मेरे हाथ में है.
मैंने उन का मम्मा फॉरन छोड़ दिया.