एक मोठे लुंड की कहानी

“मुझे भी तो जवान लण्ड चाहिए ना। तुम तो बस नई नई चूतों के पीछे पड़े रहते हो मेरा तो जरा भी ख़याल नहीं है तुम्हें…”

“अरे तुमने भी तो अपने जीजा और भाई से चुदवाया था ना और गाण्ड भी तो मरवाई थी ना…”

“पर वो नए कहाँ थे मुझे भी नया और ताजा लण्ड चाहिए बस कह दिया…”

“ओह… तुम तरुण को क्यों नहीं तैयार कर लेती। तुम उसके मजे लो और मैं कनिका की सील तोड़ने का मजा ले लूँगा…”

“पर वो मेरे सगे भाई की औलाद हैं क्या यह ठीक रहेगा?”

“क्यों इसमें क्या बुराई है?”

“पर वो… नहीं, मुझे ऐसा करना अच्छा नहीं लगता…”

“अच्छा चलो एक बात बताओ जिस माली ने पेड़ लगाया है क्या उसे उस पेड़ के फल को खाने का हक नहीं होना चाहिए। या जिस किसान ने इतने प्यार से फसल तैयार की है उसे उस फसल के अनाज को खाने का हक नहीं मिलना चाहिए। अब अगर मैं अपनी इस बेटी को चोदना चाहता हूँ तो इसमें क्या गलत है?”

“ओह तुम भी एक नंबर के ठरकी हो। अच्छा ठीक है बाद में सोचेंगे…” और फिर मामी ने मामा का मुरझाया लण्ड अपने मुँह में भर लिया और चूसने लगी।

मैं उनकी बातें सुनकर इतना उत्तेजित हो गया था कि मुट्ठ मारने के अलावा मेरे पास अब कोई और रास्ता नहीं बचा था। मैं अपना 7 इंच का लण्ड हाथ में लिए बाथरूम की ओर बढ़ गया। फिर मुझे ख़याल आया कनिका ऊपर अकेली है। कनिका की ओर ध्यान जाते ही मेरा लण्ड तो जैसे छलांगें ही लगाने लगा। मैं दौड़कर छत पर चला आया।

कनिका बेसुध हुई सोई थी। उसने पीले रंग की स्कर्ट पहन रखी थी और अपनी एक टांग मोड़े करवट लिए सोई थी। स्कर्ट थोड़ी सी ऊपर उठी थी। उसकी पतली सी पैंटी में फँसी उसकी चूत का चीरा तो साफ नजर आ रहा था। पैंटी उसकी चूत की दरार में घुसी हुई थी और चूत के छेद वाली जगह गीली हो गई थी। उसकी गोरी-गोरी मोटी जांघें देखकर तो मेरा जी करने लगा कि अभी उसकी कुलबुलाती चूत में अपना लण्ड डाल ही दूँ। मैं उसके पास बैठ गया और उसकी जाँघों पर हाथ फेरने लगा।

वाह… क्या मस्त मुलायम संग-ए-मरमर सी नाज़ुक जांघें थी। मैंने धीरे से पैंटी के ऊपर से ही उसकी चूत पर अंगुली फिराई। वो तो पहले से ही गीली थी। आह… मेरी अंगुली भी भीग सी गई। मैंने उस अंगुली को पहले अपनी नाक से सूंघा। वाह क्या मादक महक थी। कच्चे नारियल जैसी जवान चूत के रस की मादक महक तो मुझे अन्दर तक मस्त कर गई। मैंने अंगुली को अपने मुँह में ले लिया। कुछ खट्टा और नमकीन सा लिजलिजा सा वो रस तो बड़ा ही मजेदार था।

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मैं अपने आपको कैसे रोक पाता। मैंने एक चुम्बन उसकी जाँघों पर ले ही लिया। वो थोड़ा सा कुनमुनाई पर जगी नहीं। अब मैंने उसके उरोज देखे। वह क्या गोल-गोल अमरूद थे। मैंने कई बार उसे नहाते हुए नंगा देखा था। पहले तो इनका आकार नींबू जितना ही था पर अब तो संतरे नहीं तो अमरूद तो जरूर बन गए हैं। गोरे-गोरे गाल चाँद की रोशनी में चमक रहे थे। मैंने एक चुम्बन उनपर भी ले लिया। मेरे होंठों का स्पर्श पाते ही कनिका जग गई और अपनी आँखों को मलते हुए उठ बैठी।

“क्या कर रहे हो भाई?” उसने उनीन्दी आँखों से मुझे घूरा।

“वो… वो… मैं तो प्यार कर रहा था…”

“पर ऐसे कोई रात को प्यार करता है क्या?”

“प्यार तो रात को ही किया जाता है…” मैंने हिम्मत करके कह ही दिया।

उसकी समझ में पता नहीं आया या नहीं।

फिर मैंने कहा- “कनिका एक मजेदार खेल देखोगी?”

“क्या?” उसने हैरानी से मेरी ओर देखा।

“आओ मेरे साथ…” मैंने उसका बाजू पकड़ा और सीढ़ियों से नीचे ले आया और हम बिना कोई आवाज किये उसी खिड़की के पास आ गए। अन्दर का दृश्य देखकर तो कनिका की आँखें फटी की फटी ही रह गईं। अगर मैंने जल्दी से उसका मुँह अपनी हथेली से नहीं ढक दिया होता तो उसकी चीख ही निकल जाती। मैंने उसे इशारे से चुप रहने को कहा।

वो हैरान हुई अन्दर देखने लगी।

मामी घोड़ी बनी फर्श पर खड़ी थी और अपने हाथ बेड पर रखे थे। उनका सिर बेड पर था और नितम्ब हवा में थे। मामा उसके पीछे उसकी कमर पकड़कर धक्के लगा रहे थे। उन 8 इंच का लण्ड मामी की गाण्ड में ऐसे जा रहा था जैसे कोई पिस्टन अन्दर बाहर आ जा रहा हो। मामा उनके नितम्बों पर थपकी लगा रहे थे। जैसे ही वो थपकी लगाते तो नितम्ब हिलने लगते।

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और उसके साथ ही मामी की सीत्कार निकलती- “हाईई… और जोर से मेरे राजा और जोर से… आज सारी कसर निकाल लो और जोर से मारो मेरी गाण्ड बहुत प्यासी है ये हाईई…”
“ले मेरी रानी और जोर से ले… या… सविता… आआ…” मामा के धक्के तेज होने लगे और वो भी जोर-जोर से चिल्लाने लगे।

पता नहीं मामा कितनी देर से मामी की गाण्ड मार रहे थे। फिर मामा मामी से जोर से चिपक गए। मामी थोड़ी सी ऊपर उठी। उनके पपीते जैसे स्तन नीचे लटके झूल रहे थे। उनकी आँखें बंद थी और वह सीत्कार किये जा रही थी- “जियो मेरे राजा मज़ा आ गया…”

मैंने धीरे-धीरे कनिका के वक्ष मसलने शुरू कर दिए। वो तो अपने मम्मी-पापा की इस अनोखी रासलीला को देखकर मस्त ही हो गई थी। मैंने एक हाथ उसकी पैंटी में भी डाल दिया। उफ… छोटी-छोटी झांटों से ढकी उसकी बुर तो कमाल की थी, बिल्कुल गीली। मैंने धीरे से एक अंगुली से उसके नर्म नाज़ुक छेद को टटोला। वो तो चुदाई देखने में इतनी मस्त थी कि उसे तो तब ध्यान आया जब मैंने गच्च से अपनी अंगुली उसकी बुर के छेद में पूरी घुसा दी।

“उईई माँ…” उसके मुँह से हौले से निकला- “ओह… भाई ये क्या कर रहे हो?” उसने मेरी ओर देखा। उसकी आँखें बोझिल सी थी और उनमें लाल डोरे तैर रहे था। मैंने उसे बाहों में भर लिया और उसके होंठों को चूम लिया। हम दोनों ने देखा कि एक पुचक्क की आवाज के साथ मामा का लण्ड फिसल कर बाहर आ गया और मामी बेड पर लुढ़क गई। अब वहाँ रुकने का कोई मतलब नहीं रह गया था। हम एक दूसरे की बाहों में सिमटे वापस छत पर आ गए।

“कनिका…”

“हाँ… भाई…”

कनिका के होंठ और जबान कांप रही थी। उसकी आँखों में एक नई चमक थी। आज से पहले मैंने कभी उसकी आँखों में ऐसी चमक नहीं देखी थी। मैंने फिर उसे अपनी बाहों में भर लिया और उसके होंठ चूसने लगा। उसने भी बेतहाशा मुझे चूमना शुरू कर दिया। मैंने धीरे-धीरे उसके स्तन भी मसलने चालू कर दिए। जब मैंने उसकी पैंटी पर हाथ फिराया।

तो उसने मेरा हाथ पकड़ते कहा- “नहीं भाई… इससे आगे नहीं…”

“क्यों क्या हुआ?”

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