दोस्त की मम्मी के सात हुआ सेक्स दंगल

हमारा परिवार मुम्बई के बांद्रा-कुर्ला मे एक बहुमंजिला टावर में रहता है, जिसमें मैं अपनी दादी, पापा-मम्मी और दीदी के साथ रहता हूँ। इसी इमारत में ही मेरे बचपन का दोस्त मीत भी अपने मम्मी, पापा के साथ शानदार घर में रहता है।

यह घटना चार साल पहले की है, मीत उम्र में मुझसे चार साल छोटा था पर कुछ सालों से साथ क्रिकेट खेलने, साथ स्कूल आने-जाने से हमारी दोस्ती गहरी हो गई थी और इससे दोनों के परिवारों में भी घनिष्ठता हो गई थी। हम रोज़ एक दूसरे के घर आते-जाते थे। मैं अपना होमवर्क भी उसके साथ उसके घर पर ही करता था, वहीं खेलता भी था।

कुल मिलाकर मेरा ज्यादातर समय उसके घर पर ही बीतता था। मीत के पापा शरद अंकल का मुंबई और दुबई में हेण्डीक्राफ्ट के एक्स्पोर्ट का अच्छा बिज़नेस था। इस सिलसिले में वो लगभग हर सप्ताह दुबई आते-जाते थे। मीत की मम्मी स्वाति आंटी 35-36 साल की पढ़ी लिखी, हाई सोसायटी की समझदार महिला थी। सुगठित शरीर, लम्बी टागें, उन्नत उरोज़ एवं बडे-बडे नितम्बों से सुशोभित स्वाति आंटी इतनी सुन्दर थी कि उनके आगे कोई अप्सरा भी फीकी पड़े।

चाहे वो साड़ी पहनें, सलवार कुर्ता पहनें या कोई मॉडर्न आउटफिट, उन्हें देख कर किसी का भी ईमान डगमगा सकता था, फ़िर मेरी तो उम्र ही बहकने की थी इसलिये मैं कभी-कभी उनकी कल्पना कर के हस्तमैथुन भी करता था।
खैर, उस साल दिसम्बर की छुट्टियों में मीत अपनी सौम्या बुआ के पास दुबई अपने पापा के साथ जाने वाला था।

24 दिसम्बर को जब मैं मीत के घर गया तब अकंल, आँटी ने मुझे कहा- भले मीत यहाँ नहीं हो, तो भी तुम रोज़ हमारे घर आना, अपना होमवर्क भी यहीं करना, वीडियो गेम खेलो और टीवी देखो।

वे दोनों यह चाहते थे कि मैं उनके घर ज्यादा से ज्यादा समय बिताऊँ जिससे स्वाति आंटी का मन भी लगा रहेगा। अंकल ने मुझे घर का ख्याल भी रखने के लिये कहा जिसे मैंने सहर्ष स्वीकार कर लिया।
अगले दिन अंकल और मीत सुबह जल्दी दुबई के लिये रवाना हो गये। छुट्टियाँ तो थी पर थोड़ा होमवर्क भी मिला था, इसलिये सुबह मैं लगभग 9 बजे जरूरी किताबें बैग में लेकर मीत के घर चला आया। तब स्वाति आंटी नीले गहरे गले वाले प्रिन्टेड गाऊन के ऊपर कशीदे वाले हाउसकोट में गज़ब की सुन्दर लग रही थी।
मुझे मीत के स्टडी रूम में बिठा कर थोड़ी देर मेरे पास बैठकर इधर-उधर की बातें करने के बाद वो अपने काम से रसोई में चली गई और कामवाली बाई को काम समझाकर उन्होंने मुझे आकर कहा- मैं नहाने जा रही हूँ, जब कामवाली अपना काम करके चली जाये तो घर का दरवाज़ा अन्दर से बन्द कर लेना।
थोड़ी देर बाद जब कामवाली बाई अपना काम पूरा करके चली गई, मैंने उठ कर घर का दरवाज़ा बन्द कर दिया। अब मैं और स्वाति आंटी घर में अकेले थे, बाथरूम से आंटी की गुनगुनाने की आवाज़ से माहौल की मादकता बढ़ रही थी। अचानक आंटी के प्रति मेरी वासना बलवती होने लगी।
मीत के कमरे और स्वाति आंटी के बेडरूम के बीच में एक कोमन दरवाज़ा था। मैंने चुपचाप जाकर उसे थोड़ा खोल दिया ताकि मैं आंटी को बिना कपड़ों के देख सकूँ।

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थोड़ी बाद स्वाति आंटी कोई गीत गुनगुनाते हुए बाथरूम से निकली और अपने गीले बदन को पौंछने लगी। मैं दबे पांव उस थोड़े खुले दरवाज़े की तरफ गया और वहाँ बैठ कर जन्नत का नज़ारा देखने लगा। स्वाति आंटी जितनी कपड़ों में सुन्दर दिखती थी उससे कहीं ज्यादा कामुक वो बिना कपड़ों के दिख रही थी। गोरे-गोरे मांसल उरोज़ों पर उभरे हुए गुलाबी निप्पल गज़ब लग रहे थे, वहीं पतली कमर के नीचे दोनों जाघों के बीच हल्के बालों वाली गुलाबी योनि तो कयामत ढा रही थी।
तौलिए से बदन पोंछने के बाद उन्होंने अपनी बग़लों और गले पर डेओडोरेंट स्प्रे किया, सफेद रंग की लिन्गरी पहनी और गुलाबी पेटीकोट भी ऊपर से पहना फिर उन्होंने सफेद ब्रा पहनी।

और मैं चुपचाप उठ कर अपनी जगह आकर बैठ गया और मैगज़ीन पढ़ने लगा पर आखों में स्वाति आंटी का मादक बदन ही घूम रहा था।

तभी स्वाति आंटी की आवाज़ आई- प्रीत क्या कर रहे हो? कोई आया तो नहीं था?
मैं बोला- ‘आंटी… मैं मैगज़ीन पढ़ रहा हूँ और बाई के जाने के बाद कोई नहीं आया था… मैंने दरवाजा भी बन्द कर दिया है।
आंटी ने कहा- कुछ नहीं कर रहे हो तो एक बार इधर आओ, मुझे कुछ काम है।
मैं उठ कर उनके बैडरूम में गया, स्वाति आंटी ब्रा और पेटीकोट में खड़ी थी और कंधे के ऊपर रखे तौलिये से ब्रा ढकी हुई थी। वो बोली- सर्दी से मेरी पीठ बहुत ड्राई हो रही है, थोड़ी माईश्चराइज़र क्रीम लगा दोगे?…वहाँ ड्रेसिंग टेबल के ऊपर रखी है।
मैं मन ही मन चहकते हुए बोला- अभी लाया आंटी…!

और ड्रेसिंग टेबल के ऊपर रखी निविया की बोतल ले आया। तब तक स्वाति आंटी बैड पर उल्टी लेट चुकी थी, अब तौलिया उनकी पीठ पर ढका था। सच कहूँ तो उस वक्त मैं अपने आप को बहुत खुशकिस्मत समझ रहा था कि मुझे उनके बदन को छूने का मौका मिलेगा।
उन्होंने मुझे बैड पर उनके बगल में बैठ कर तौलिया हटा कर पीठ पर क्रीम लगाने को कहा।
मैंने तुरन्त तौलिया हटा कर पहले उनकी चिकनी पीठ पर हाथ फिराया फिर क्रीम हाथ में लेकर लगाने लगा।
तभी वो खुद बोलीं- ब्रा का हुक खोल दो, नहीं तो क्रीम से गीली हो जायेगी।

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मैंने तुरन्त दोनों हाथों से ब्रा के हुक खोल कर उनकी उरोज़ों को आज़ाद कर दिया और हल्के हाथ से उनकी नर्म चिकनी पीठ पर क्रीम लगाने लगा। मुझे तो स्वर्ग का आनन्द मिल रहा था, शायद उनको भी अच्छा महसूस हो रहा था तभी वो बीच-बीच में ‘आह’ ‘उह’ की दबी आवाज़ें कर रहीं थी। एकाध बार मेरा हाथ गलती से उनके उरोज़ों से छू गया तो मैं सिहर उठा।
कुछ देर में वो माहौल की चुप्पी तोड़ते हुए बोली- प्रीत…जब मैं कपड़े पहन रही थी तब तुम स्टडी रूम से क्या देख रहे थे?
मैं घबराकर बोला- नहीं तो…आंटी मैंने कहाँ कुछ देखा…!
शायद उन्होंने आईने में मुझे अपने आपको देखते हुए देख लिया पर मुझे इसका पता नहीं चला।
स्वाति आंटी मुस्कुराते हुए बोली- झूठ मत बोलो…मैंने तुम्हें मिरर में देख लिया था!
मैं एकदम सकपका गया, मुझसे कुछ बोलते नहीं बन रहा था…मैं सिर नीचे कर बैठा रहा।
वो फिर हंसते हुए बोली- क्या देख रहे थे…ये…?
कहते हुए मेरी तरफ घूम गई।

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