मैं रचना, मेरी बड़ी बहन कुसुम मुझसे 7 साल बड़ी है।
यह कहानी तब की है जब मैं बीस साल की थी. मेरा बदन भी चढ़ती जवानी में खिलने लगा था. घर से बाहर जाने की अब ज्यादा आजादी नहीं मिलती थी. मैं ज्यादातर समय अपने कमरे में पढ़ाई करते हुए ही बिताती थी.
जवानी तो शोर मचा रही थी मगर मैं बाहर से शांत रहने लगी थी. अपने आप में ही खोयी सी रहती थी. किसी से मिलने या बातें करने में ज्यादा मजा नहीं आता था. न मस्ती, न खेल-कूद, न धमाचौकड़ी. अपने कमरे में खुद को बंद करके रखती थी मैं. बंद दरवाजे के अंदर कमरे में शीशे के सामने खुद को ही निहारती रहती थी. कभी-कभी अकेलेपन में बिस्तर पर लेट कर कसमसाती रहती थी.
मेरे शरीर और स्वभाव में इस बदलाव को देख कर मेरे माँ और पापा थोड़ी चिन्ता करने लगे थे मेरी.
उसके बाद एक दिन पापा ने मेरी इसी चुप्पी को तोड़ने के लिए मुझे मेरी बहन कुसुम के घर भेज दिया. मैं जाना नहीं चाहती थी मगर फिर भी पापा के कहने पर राजी हो गई. मुझे बार-बार वही पुरानी घटना याद आने लगी थी. वही घटना जिसमें मेरे जीजू ने अपने दोस्त को अपने घर पर बुलाकर मेरी कुसुम दीदी को चुदवाया था. मैंने गहरी नींद में सोने का नाटक करते हुए वह सब देख लिया था.
उस चुदाई के बाद मैंने दीदी के घर जाना लगभग बंद ही कर दिया था. मगर न जाने क्यूँ इस बार मैंने बिना सोचे समझे ही जाने की तैयारी कर ली. अगले ही दिन मैं अपनी कुसुम दीदी के घर जा पहुंची. दीदी और जीजू मुझे देख कर खुश हो गये. मेरे वहाँ जाने के बाद दीदी का बेटा भी मेरी गोद में आकर चढ़ गया. मैं उसको अपने साथ खिलाती रही. शाम के समय मेरी दीदी तो किचन में खाना बनाने में व्यस्त हो गई. मैं जीजू के साथ बेडरूम में टीवी देख रही थी. बीच-बीच में हम दोनों कुछ बातें भी कर रहे थे.
वैसे तो मैं अपने जीजू से काफी खुली हुई थी. मगर यह खुलापन दीदी की गैर मौजूदगी में ही होता था. वैसे दीदी के सामने भी मुझे जीजू से बात करने में कोई ज्यादा परेशानी नहीं होती थी मगर जब दीदी नहीं होती थीं तो ज्यादा खुल कर बात हो जाती थी. मैंने जीजू के दोस्त अजय के बारे में पूछ लिया. अजय का नाम सुन कर जीजू एक बार चौंक से गये. उसके बाद वो थोड़ा नॉर्मल हो गये.
मैंने जीजू से पूछ लिया- क्या अजय अभी भी उनके घर आते रहते हैं?
जीजू ने बताया- हाँ आता रहता है.
मैंने दोबारा पूछा- पिछली बार वो कब आये थे?
मेरे इस सवाल पर जीजू थोड़े से घबरा गए मगर उन्होंने फिर भी जवाब दे दिया और मुझसे पूछने लगे- तुम ये सब क्यों पूछ रही हो?
मैंने जीजू को बता दिया कि मैं उनके और अजय के बारे में सब जानती हूँ. मेरी बात सुनकर जीजू हैरान होने की बजाय मुस्कराने लगे. वे बोले- तेरी दीदी कुसुम है ही इतनी गर्म. उसको एक बड़े लंड के बिना मजा नहीं आता. मेरा लंड उसके लिए थोड़ा छोटा पड़ रहा था.
जीजू की बात सुनकर मैंने थोड़ा सा शरमाने का नाटक किया. उसके बाद जीजू ने पूछ लिया कि मैं अजय के बारे में यह सब क्यूँ पूछ रही हूँ तो मैंने बता दिया कि पिछली बार जब अजय आया था तो मैंने चोरी-छिपे सब देख लिया था.
जीजू बोले- तो कैसा लगा अपनी दीदी को चुदते हुए देख कर? क्या तुम्हारा मन भी करने लगा है चुदने के लिए? जीजू ने मेरे गाल को सहलाते हुए पूछा।
वैसे तो जीजू मेरी मनोदशा समझ रहे थे मगर वो मेरे मुंह से सुनना चाहते थे.
उन्होंने फिर से दोहराया- क्या तुम दोबारा वह सब देखना चाहोगी?
मैंने भी उतावलेपन में जीजू को हाँ बोल दिया. फिर बात को संभालते हुए कहा- जीजू, इस बारे में कुसुम दीदी को न बताएं.
जीजू ने मुझे कुसुम दीदी यानि कि उनकी पत्नी को इस बारे में कुछ न बताने का विश्वास दिलाया और कहा कि कल शायद दोबारा फिर से वही रंगीन नजारा देखने का इंतजाम वह मेरे लिए कर देंगे.
हम लोगों ने रात का खाना खाया और फिर सब लोग आराम से बेड पर जाकर बातें करने लगे. मैं बेड के एक कोने में थी. जीजू और दीदी आपस में कुछ बातें कर रहे थे. रात के करीब दस बजे का टाइम हो चला था कि एकदम से दरवाजे की घंटी बजी. जीजू ने उठ कर दरवाजा खोला तो सब लोग देख कर हैरान हो गये. अजय दरवाजे पर खड़ा था.
अजय को देख कर न जाने क्यूँ मेरे दिल की धड़कन भी बढ़ने लगी. मगर मैं चुपचाप लेटी रही. दीदी और जीजू दोनों उठ कर बैठ गये. दीदी ने मेरी तरफ देखा और अजय से पूछा- इतनी रात को कैसे आना हुआ?
अजय ने बताया कि वह किसी काम से यहाँ पर आया हुआ था मगर काम करते हुए रात में देर हो गयी इसलिए उनके पास चला आया.
दीदी ने अजय से पूछा- खाना लगा दूँ?
अजय- नहीं, खाना तो मैं खाकर आया हूँ। आप लोग परेशान न हों.
जीजू ने कुसुम दीदी से कहा- अजय के लिए बिस्तर लगा दो.
अजय ने कहा- मैं यहाँ सोने या आराम करने के लिए नहीं आया हूँ. तुम तो अच्छी तरह जानते हो मैं यहाँ पर किस लिए आया हूँ।
जीजू ने कहा- ठीक है यार, मैंने कब मना किया है, अगर तुम चाहो तो हमारे साथ ही लेट जाओ.
अजय- नहीं, मैं कुसुम को लेकर दूसरे कमरे में जा रहा हूँ। अगर तुम्हें भी आना है तो वहीं पर आ जाओ.
यह कह कर अजय कुसुम दीदी को दूसरे कमरे में ले गये. दीदी थोड़ी सोच में पड़ गई थी मगर फिर भी अजय के साथ चल दी.
दीदी के जाते ही जीजू ने मुझसे कहा- अरे वाह, यह तो कमाल ही हो गया. आज तो तुम्हारी इच्छा भी पूरी हो जायेगी. तुम आज फिर वही हसीन चुदाई देख सकती हो.
मैंने कहा- मगर जीजू आप किसी को मत बताना.
उसके बाद जीजू मुझे खिड़की पर ले गये. दूसरे कमरे में अंदर चुदाई का मदहोश कर देने वाला नजारा साफ-साफ दिखाई दे रहा था. दीदी अजय के ऊपर लेट कर उसके लंड को मुंह में लेकर चूस रही थी. दीदी की चूत अजय के मुंह की तरफ थी और अजय दीदी की चूत को चाट रहे थे. दोनों के जिस्म नंगे थे और दोनों के अंदर ही सेक्स की आग की गर्मी अलग से दिखाई दे रही थी.
कुसुम दीदी अपनी कमर को अजय के मुंह पर टिकाकर चूत चटवा रही थी, मुझे खिड़की से सब साफ दिख रहा था, देखते ही मेरी चूत भी चुनचुनाने लगी जिसे मैं अनायास ही दबाने लगी। पीछे खड़े जीजू मेरी हालत को समझ रहे थे. उन्होंने मुझे पीछे से ही जकड़ लिया और मेरी चूचियों को सहलाने लगे. अब तो सामने का नजारा और जीजू की हरकत से मेरी चूत फूलकर बहने लगी.
kash me vha hota tumhari chut phad deta