दारू के नशे में बाप ने मेरी बुर चुदाई की

भाभी की चूत काफी उभरी हुई थी और फटी हुई चूत से गाढ़ा गाढ़ा सफ़ेद वीर्य निकल कर उनकी गोरी जांघ पर फैला हुआ था. लग रहा था कि भाभी की अच्छी तरह रगड़ाई हुई है. तभी थक कर सोई हुई हैं. उनके बाल बिखरे थे और गाल पर हल्के से दांतों के निशान बने हुए थे.

यह मेरे लिए बहुत ही कौतुहल का विषय था कि मेरा बाप अपनी ही बहू (पुत्रवधू) को चोद रहा था और मेरे सिवा किसी को भनक तक नहीं लगी.

मेरी फुद्दी इस काण्ड को देख कर मचलने लगी थी. मैंने नीचे हाथ लगाया तो पूरी दरार गीली हो चुकी थी. मैंने एक नजर अपने बेटे पर डाली, वो गहरी नींद में सोया हुआ था.

मैंने अपनी उंगली छेद में घुसेड़ दी और काफी तेजी से 35-40 बार चलायी और झड़ गयी.
बाबूजी ने भाभी की चीखें निकलवा दी थी. ऐसा तो मेरा पति भी नहीं कर सका था. मेरा पति रमेश कुछ ही मिनट में पसर जाता था.
और इधर बाबूजी ने भाभी को बिस्तर पर चित कर रखा था.

इसके बाद मुझे भी नींद आ गयी.

सुबह सब घर के काम में ऐसे लगे हुए थे जैसे कुछ हुआ ही न हो!
भाभी भी मेरे पिताजी को आवाज दे रही थी- पापा जी … चाय पी लो!

यह देख कर मेरा सिर चकरा गया कि ‘अरे कैसी बहू है जो रात भर ससुर के नीचे चुदती, कराहती रही और आज इतने प्यार से उन्हें चाय के लिए बोल रही है.’

अगली रात मैं इंतजार करती रही पर बेकार … यह नजारा मुझे देखने को नहीं मिला.
पर मैंने उम्मीद नहीं छोड़ी थी.

तीसरे दिन रात को फिर वो ही घटनाक्रम … बाबूजी ने दरवाजा भेड़ा, मैं उठी और दोनों ने पहले बिना कुछ बोले काम क्रीड़ा की और भाभी उनके बिना कहे बिस्तर पर मुंधी(उलटी) हुई और फिर उनके पीछे बाबूजी खड़े हो गए फर्श पर और फिर कैसे 12 मिनट बीते, ये पता ही नहीं चला. भाभी की सिसकारियों से पूरा कमरा भर गया था और बाबूजी एक नवयुवती की जवानी का भरपूर मजा ले रहे थे।

बाबूजी काफी देर में झड़ते थे, यह देख कर मुझे भाभी से ईर्ष्या होने लगी कि कैसे इस औरत ने मेरे बाप को कब्जे में कर रखा है; और वो भी सिर्फ अपने सुन्दर जवान बदन से!
आखिर इसे मेरे बाप में ऐसा क्या दिखा कि ये रात को कुछ भी नहीं बोलती और न ही मना करती है, सब कुछ ऐसे होता था जैसे मशीन करती थी।

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मैं भी अब अपने जवान बदन को निहारने लगी. मेरे अंदर कोई भी कमी नहीं थी पर मैं अपने बाबूजी के नीचे यानि की जन्म दाता के नीचे कैसे लेटूँ?
यह एक बहुत बड़ी समस्या थी.

मैंने सोचा कि क्यों न भाभी को रंगे हाथ पकड़ा जाये!
पर ऐसा करने से दोनों सावधान हो सकते थे.

फिर मैंने एक तरकीब लगायी कि भाभी से खुल कर बात करने लगी सेक्स के बारे में!
हम दोनों हमउम्र थी और हमारी कदकाठी भी लगभग एक समान थी.

मैंने एक दिन बात ही बात में कह दिया- भाभी, असली मजे तो तुम ले रही हो जवानी के!
तो वो एकदम से चौंक पड़ी और उन्होंने कहा- रमा तू भी … छी: तेरी प्यास अभी तक नहीं बुझी क्या?

मैंने बिल्कुल भी देर नहीं की और कह दिया- भाभी, और रात को तुम जो मजे लेती हो उसका क्या? आखिर भैया में ऐसी क्या कमी है?
उनका मुंह शर्म से लाल हो गया।

भाभी ने कहा- अरे रमा, बस जिंदगी ऐसे ही चलती है. औरत तो बस एक मोहरा है. मुझे तो इस घर में रहना है. जल में रहना है तो मगर से बैर नहीं किया जाता. पर बता तुझे कब पता लगा और तूने क्या देखा?
मैंने उसे सब कुछ बता दिया.

साथ ही मैंने तुरंत बात सँभालते हुए उन्हें कहा- भाभी, अगर कोई चीज़ मजा देती है तो उसे मिल बाँट कर खाने में क्या बुराई है?

भाभी ने कहा- रमा, देख तू मेरी सहेली ज्यादा है ननद बाद में! देख पहले तो जोर-जबरदस्ती करी थी पापा जी ने एक रात को और मैंने तुम्हारे भैया को डर के मारे नहीं बताया. और फिर धीरे धीरे मुझे भी आदत हो गयी उनकी।

भाभी आगे बोली- पर तेरे तो बाबू जी हैं। है तेरे अंदर इतनी हिम्मत?
मैंने कहा- भाभी, अभी कुछ नहीं कह सकती … पर तुम ही कोई रास्ता बताओ?

फिर भाभी ने जो कुछ कहा, सुनकर मेरे रोंगटे खड़े हो गए.
उन्होंने कहा- देख ऐसा कर … तेरे बेटे के साथ मैं सो जाऊंगी और दो दिन तक मैं उन्हें कोई भी बहाना बना कर रोक कर रखूंगी. और तू ऐसा करना कि मेरे बेड पर मेरे कपड़े पहन कर लेट जाना, वो कुछ भी बात नहीं करते हैं, बस प्यार करते हैं और फिर अपनी प्यास बुझा कर चुपचाप चले जाते हैं.

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मुझे भाभी का यह सुझाव बहुत अच्छा लगा पर ख्याल आया कि सुबह क्या होगा?
मैंने भाभी से ये बात बताई तो उन्होंने कहा- अरे सुबह की सुबह देखना.

और फिर दो दिन बाद मैंने उनकी वो नारंगी रंग की साड़ी पहनी ठीक रात को सोने से पहले. भाभी मेरे कमरे में चली गयी और मैं उनके बिस्तर में।

मेरा दिल धड़क रहा था कि मैं ये क्या कर रही हूँ. पर मेरी चूत में चुलबुलाहट हो रही थी जो बाबूजी ही मिटा सकते थे.

मैं रात को वैसे ही अपनी गांड दरवाजे की तरफ करके लेट गयी. मेरे से टाइम काटे नहीं कट रहा था.
कि तभी मुझे दरवाजा बंद करने की आवाज आयी और फिर कोई मेरे पीछे आकर लेट गया.

मुझे उसकी सांसों से एक तेज गंध आयी जो दारू की गंध थी. बाबूजी ने दारू पी रखी थी.

और मेरे बाल हटा कर मेरी गर्दन पर जैसे ही उन्होंने किस किया, मेरे शरीर में एक करेंट सा दौड़ गया. फिर वो अँधेरे में ही मेरी चुम्मियाँ लेने लगे और मेरे बाहर से ही स्तन दबाने लगे.
मैं चाह कर भी सिसकारी नहीं ले सकी।

उनका हाथ मेरे पेट की तरफ बढ़ रहा था और उन्होंने मेरी साड़ी उठा दी.

फिर बाबूजी ने मुझे सीधा करा और मेरे ऊपर आ गए. उन्होंने घुटने से मेरी जांघें चौड़ी की और अपना निहायत ही मोटा लण्ड मेरी फुद्दी पर रख दिया. वो मुझे लगातार चूमे जा रहे थे.
और फिर जैसे ही उन्होंने कस कर धक्का मारा, मैं एक अजीब आनंद के मारे दुहरी हो गयी.

बस फिर बाबूजी मुझे भाभी समझ कर धीरे धीरे पेलने लगे.

मेरा रोम रोम आनंद के मारे पुलकित हो रहा था। ऐसा मोटा लण्ड मैंने पहले कभी नहीं लिया था. मेरी चूत के सलवट खुलते जा रहे थे. साली ऐसी मस्त रगड़ाई मेरे पति रमेश ने पहले कभी नहीं की थी।

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