मेरा नाम संदीप है और मैं दिल्ली में रह कर नौकरी करता हूँ. मेरे चाचा और चाची पटना में रहते हैं. चाचा एक दुकानदार हैं.
काफी दिनों से उन लोगों से मेरी मुलाकात नहीं हुई थी तो चाची ने मुझे एक दिन फोन किया और होली के समय पटना आने को कहा. चाची की बात मैं टाल नहीं सकता था. मैं बेसब्री से होली का इंतज़ार करने लगा.
मुझे हर रात चाची का हुस्न याद आने लगा. चाची इस वक़्त 32 साल की होंगी जबकि मेरे चाचा की उम्र लगभग 40 साल की है. उन दोनों की उम्र में काफी फासला होने के कारण उन दोनों में हंसी मजाक नहीं होता था.
हम दोनों एक दोस्त की तरह रहते थे. मेरी उम्र लगभग 29 साल की है. इसलिए चाची और मेरी खूब जमती थी.
चाची का हुस्न मैं जब भी देखता था, मदमस्त हो जाता था. चाची भी मुझसे काफी घुल मिल गई थीं. हम दोनों के बीच एक अनजाना सा रिश्ता बन गया था जोकि मैं समझता था कि ये शायद चाची को सेक्स के नजरिये से पसंद आ रहा था. हालांकि अब तक कभी भी चाची ने मुझे कोई इशारा ऐसा नहीं दिया था जिससे मैं ये साफ़ समझ सकूँ कि चाची मुझ पर फ़िदा हैं या मुझसे चुदना चाहती हैं. तब भी मुझे उनको चोदने की बड़ी इच्छा थी और मैं उनकी निगाहों को बचा कर उनके उठे हुए मम्मों और फूली हुई गांड को निहारता रहता था.
एकाध बार मुझे ऐसा लगा कि शायद चाची ने मुझे उनको इस तरह से वासना भरी निगाहों से घूरते हुए देख लिया है. लेकिन उनके कुछ न कहने से और ना ही कोई रिएक्ट करने से मुझे कुछ भी सूझ नहीं रहा था कि क्या किया जाए.
बस उनसे बातचीत करके ही इस बात का इन्तजार कर रहा था कि कभी तो मौका मिलेगा और चाची के जिस्म का भोग लगा सकूँगा.
पिछली बार जब मैं पटना गया था तो चाची मेरे साथ कई बार सिनेमा देखने पटना के मोना थियेटर गई थीं. मैं उस वक्त बहुत कोशिश की थी कि चाची बस एक बार कोई इशारा कर दें तो सिनेमा हॉल के अँधेरे में चाची के साथ मस्ती करके कुछ शुरुआत कर सकूँ.
खैर.. इस बार चाचा चाची के बुलावे पर मैं होली के दो दिन पहले ही पटना पहुँच गया. वहां चाचा और चाची मुझे देख कर अत्यंत ही खुश हुए. चाचा भीतर चले गए थे, मैं और चाची ही खड़े रह गए थे.
चाची ने मुझसे हंस कर यहाँ तक कह दिया- अब होली में मजा आ जाएगा.
मुझे उनकी बात को सुन कर लगा कि शायद इस बार होली ही हम दोनों के शरीर को मिला दे.
मैं बस उनकी बात को सुनकर मुस्कुरा कर रह गया और धीरे से मन में कहा कि हाँ रानी अबकी बार तेरी चूत में मेरी पिचकारी चल जाए तो ही लंड को चैन आ पाएगा.
शायद चाची को मेरी इस सोच विचार वाली मुद्रा से कोई आभास हुआ और उन्होंने मुझसे कह दिया- क्या सोच रहे हो? होली की मस्ती अभी से चढ़ रही है क्या?
मैं उनकी बात से एकदम से अचकचा गया, मैं अभी कुछ कहता कि चाचा की आवाज आ गई- अरे अन्दर आ जाओ, क्या बाहर ही खड़ी रखोगी उसको?
चाची ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे अन्दर चलने का कहा. मैं भी चाची के हाथ का नर्म स्पर्श पा कर एकदम से उत्तेजित सा हो गया और मैंने खुद उनके हाथ में अपने हाथ को जब तक बना रहने दिया तब तक चाची ने खुद ही मेरे हाथ को नहीं छोड़ दिया.
शाम को चाची ने मेरे साथ खूब बातें की और मुझे बढ़िया खाना खिलाया. इस बार चाची के स्वभाव में कुछ ज्यादा ही खुलापन नजर आ रहा था.
मैं भी देर रात तक उनके साथ हंसी मजाक करता रहा. चाचा जी को जल्दी सोने की आदत थी. इस बार चाची ने कई बार मेरे सामने अपने आँचल को ढुलक जाने दिया और मुझे उनकी गोरी चूचियों की शानदार हसीन वादियों को निहारने का अवसर मिला.
मुझे समझ आने लगा था कि शायद इस बार चाची की चुत में आग लगी हुई है. मैंने इस बात को चैक करने के लिए उनसे पूछा कि चाची रात हो गई अब सो जाइए, शायद चाचा आपको याद कर रहे होंगे.
मैंने इस बात को बहुत सोच समझ कर एक मजाक के रूप में कहा था. मैं चैक करना चाहता था कि चाची की क्या प्रतिक्रिया होती है.
वही हुआ.. चाची ने मेरी बात को सुनकर बुरा सा मुँह बनाया और कहा- अब तक तो वे सो भी गए होंगे.
उनकी इस बात से मुझे काफी कुछ समझ आ गया था, तब भी मुझे उनकी तरफ से कोई स्पष्ट इशारा नहीं मिल रहा था.
मैंने चाची से फिर पूछा कि चाची क्या आप अपने स्कूल टाइम में होली में अपनी सहेलियों को लेकर मस्ती करती थीं.
चाची ने बड़े उत्साहित होकर बताना शुरू कर दिया कि हां उन दिनों हम सभी लड़कियां भांग की ठंडाई बना कर अपनी भाभियों को पिला देती थीं और खूब मस्ती करती थीं. रंग भी इतना अधिक लगा देती थीं कि समझो एक हफ्ते तक रंग छुड़ाना पड़ता था. कई कई बार तो मेरी सारी सहेलियां ऐसी जगह तक रंग लगा देती थीं कि क्या बताऊं.
मैं उनकी इस बात को सुनकर उनकी तरफ हंस कर सवालिया निगाहों से देखने लगा कि किस जगह रंग लगा देती थीं.
मेरी निगाहों को पढ़ कर चाची ने मुझसे अपनी नजर चुरा ली और हंसने लगीं. मैं समझ गया था कि चाची अपनी सहेलियों के संग चूची और चुत में रंग लगा कर होली खेलने की बात कर रही थीं.