भाभी ने मुझे लोड चुत का खेल सिखाया

“अब धीरे धीरे अन्दर बाहर करो” मैं उसकी गाण्ड में अंगुली करता रहा। वह सिसकी भरती रही।
“भाभी, प्लीज, यह लौड़ी घोड़ी रहने दो ना, मेरे लण्ड का तो कुछ ख्याल करो !”
“खेल के जो नियम है उसे तो मानना पड़ेगा ना, चलो अब मेरी बारी है, अपनी आंखे बन्द करो !” मैंने आंखे बन्द कर ली।

“मेरी चूंचियां पकड़ो…” इस बार मुझे थोड़ा सा दिख रहा था। मैंने सीधे ही भाभी की चूंचिया दबा दी
“नहीं ये तो बेईमानी है…” वो कहती रही।

“नियम तो नियम है” और मैंने उसे धक्का दे कर बिस्तर पर लेटा दिया और उस पर चढ़ गया। उबलता हुआ लण्ड मैंने उसकी चूत पर रख दिया। और अन्दर पेल दिया। भाभी पिघल उठी, उसने भी मदद करते हुये अपनी चूत उछाल दी और दोनों ही सिसकारी भरते हुए एक दूसरे से चिपक गये। लण्ड चूत में घुसता चला गया। भाभी ने अपने होंठ भींच लिये और जैसे उसे जन्नत मिल गई हो।

“देवर जी, इस खेल में चुदाई से पहले जितना तड़पोगे उतना ही मजा चुदाई में आता है, इसीलिये लौड़ी घोड़ी खेल खेलते है, और चुदाई के लिये तड़पते रहते रहते हैं।”
“हां भाभी, मेरा तो खेल खेल में माल ही निकलने वाला था।”
“तेरे भैया का तो कितनी ही बार निकल जाता था।”

उसकी वासना तेजी पर थी। वो जोर जोर से उछल कर लण्ड ले रही थी। मैं उसकी नरम चूत को जम के धक्के मार रहा था। जवान चूत थी, पानी भी बहुत छोड़ रही थी, जड़ तक लौड़ा ले रही थी। उसकी मांसल चूंचिया छोटी मगर बेहद कड़ी थी। मसलने में बड़ा आनन्द आ रहा था। कुछ ही देर में मेरा वीर्य निकल पड़ा। उसकी चूत भी अन्दर से लहरा रही थी, वो भी झड़ चुकी थी।
हम दोनों ने कुछ देर आराम किया फिर भाभी ने कहा,”देवर जी, हां तो आगे चले।”
“चलो खेलते हैं !” मैंने भी झट हां कर दी।

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“यह दूसरा दौर है। पहले खेल में तुम जीते थे, अब मैं तो घोड़ी बनी रहूंगी… तुम मेरे शरीर के किसी भी अंग को चाट सकते हो, अपनी लौड़ी को, यानी लण्ड को किसी भी छेद में घुसा कर मजा ले सकते हो, चलो आंखें बंद करो !”

भाभी ने मेरी आंखे फिर रूमाल से बंद कर दी। अब वो बिस्तर पर झुक कर फिर से घोड़ी बन गई। मैंने जैसे ही अपना मुँह आगे बढ़ाया तो गाण्ड का स्पर्श हुआ। मैंने अपनी जीभ निकाली और जीभ उसके चूतड़ों पर फ़ेरने लगा। भाभी ने निशाना बांधा और गाण्ड का छेद सामने कर दिया। मेरी जीभ ने छेद पह्चान लिया और चाटने लगा और उसके छेद में भी जीभ डालने लगा।

जैसे ही जीभ बाहर निकाली मुझे बालों का स्पर्श लगा, मेरी जीभ अब उसकी चूत चाट रही थी।
मेरा लण्ड तन्ना रहा था। किसी भी छेद में घुस कर एक बार और अपना वीर्य निकालना चाह रहा था। मैंने अब रूमाल हटा लिया और उसे निहारा। उसके गोल गोल गोरे गोरे चूतड़ सामने उभरे हुए थे। भाभी मस्ती में अपनी आंखें बंद किये हुए थी। मैंने जल्दी से अपना लण्ड उसकी गाण्ड में घुसेड़ दिया।
भाभी बोल उठी,”देवर जी, लौड़ी घोड़ी… हाय रे…लौड़ी घोड़ी…गाण्ड चोद दो…हाय !”
भाभी ने मस्ती में गाण्ड ढीली छोड़ दी…और लण्ड गाण्ड की गहराइयों में उतरता चला गया। मुझे तेज मीठी मीठी सी लण्ड में मस्ती लगी। टाईट गाण्ड थी। पर उसे दर्द हो रहा था, फिर भी मजा ले रही थी। कुछ ही देर में उसने कराहते हुए कह ही दिया,” देवर जी, चूत की मस्ती दो ना…मेरा जी तो चूत चुदाने कर रहा है…देखो पानी भी छोड़ रही है !”

मैंने उसकी बात समझी कि ये तो सिर्फ़ मर्दो का सुख है…औरत का सुख तो चूत में है। मैंने लण्ड निकाला और … लौड़ी घोड़ी … कहा और चूत में लण्ड घुसा डाला। अब उसे असली मजा आया। और घोड़ी बने बने ही चूत चुदवाने लगी। इस पोजिशन में लण्ड पूरा अन्दर जा रहा था। मेरे पेड़ू तक चूत से चिपक कर चोद रहा था।

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चुदाई तेज हो उठी। भाभी अपने मुँह से सिसकारियोँ के साथ मां बहन, भोसड़ी, कुत्ते जैसे गालियाँ निकालने लगी। मुझे लगा कि अब वो चरमसीमा पर आकर झड़ने वाली है। और मेरा अनुमान सही निकला…

हम दोनों ही एक साथ झड़ने लगे। चूत में दोनों माल भरने लगा और माल आपस में एक हो गया। मैंने उसकी चूत से गिरते हुए माल को हाथ में लिया और चखा…फ़ीका फ़ीका सा, लसलसा सा, मुझे मजा नहीं आया। पर भाभी ने देखा तो मेरा हाथ पूरा चाट गई और चूत से माल हाथ में ले लेकर चाटने लगी।

“खबरदार, जो मेरे माल को हाथ लगाया … लौड़ी घोड़ी में सारा माल मेरा होता है।
अब तीसरा दौर… आप घोड़ी बनेगे और मैं आपकी लौड़ी यानी लण्ड नीचे से चूस चूस कर तुम्हारा शहद निकालूंगी, तुम घोड़ी की पोजिशन में चाहे मेरी चूत चाटो या कुछ भी करो।”
पर दो चुदाई करने के बाद मैं थक गया था। मैंने जैसे कुछ सुना ही नहीं और पलंग पर लेट गया। वो मुझे झकझोरती रही पर मेरी आंखे नींद में डूबती चली गई। सवेरे जब उठे तो भाभी मेरे से चिपकी हुई नंगी ही सो रही थी।
मुझे भाभी ने लौड़ी घोड़ी का खेल अच्छी तरह से सिखा दिया।

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