दोस्तों ये मेरी पर पहली कहानी है | ये कहानी पढ़ कर लडकियों की चूत से पानी निकल जायेगा और लडको के लंड से पिचकारी जरुर निकलेगी दोस्तों मैंने अपने बचपन का अधिकतर समय अपनी बुआ के पास बिताया, लेकिन पिछले तीन साल से नहीं गया। मेरी सर्दियों की छुट्टियाँ हुई तो माँ ने जबरस्ती भेज दिया। जाकर एक महीने बुआ की सेवा कर आ। हालाकि मन तो नहीं हो रहा था लेकिन इस वादे पर कि अगर मन लगा तो रुकूँगा नही तो दो-चार दिन में आ जाऊँगा। पहुचाँ तो पता चला कि कल ही बुआ की नन्द की बेटी रिंकल दीदी आयी हैं। उन्हें मैंने बहुत पहले देखा था उस समय वह छोटी थी मगर अब जवान हो गई थी। रिंकल दीदी एक समझदार लड़की थीं। वह भी मुझे देखकर प्रसन्न हुईं। मैं पिछले तीन साल से हॉस्टल में रह रहा था। वहाँ मैंने दो-तीन बार नंगी पिक्चरें भी देखी थीं और कुछ दिनों सें अधनंगी पिक्चरों की शहर के सिनेमा हालों में तो बाढ़ सी आ गयी थी। मैं जिन बातों को गाँव में जानता नहीं था वो सब मुझे पता चल गयी थीं। जब भी मैं छुट्टियों के बाद गाँव से लौटता तो सहपाठी खुले शब्दों में अपनी चुदाई की कहानियां बताते और मेरी भी पूछते, चूँकि मेरी कोई कहानी होती नहीं, फिर मुझे अपने आप पर क्रोध आता हर बार कुछ करने का इरादा लेकर जाता, लेकिन सफलता हाथ नहीं लगती। लेकिन रिंकल दीदी को देखते ही मैंने मन बना लिया कि चाहे मुझे यहाँ पूरी छुट्टियाँ ही यहाँ क्यों न बितानी पड़ जाये, इसकी लिए बिना नहीं जाऊँगा। मैंने इसी भावना से आते-जाते दो-तीन बार उसके शरीर से अपने शरीर को स्पर्श किया तो उसने बजाय बचने के अपनी तरफ से एक धक्का देकर जवाब दिया।
शाम के समय थोड़ी सर्दी ज्यादा हो गई थी इसलिए बुआ ने बरामदे में अंगीठी जला दी। पड़ोस की दो तीन औरतें आकर बैठ गयीं। रिंकल दीदी भी वहीं थीं। बुआ सरदी और बरसात वहीं सोती थी। उनका बिस्तर वहीं लगा था। कुछ देर बाद लाइट चली गयी। रिंकल दीदी उठकर बिस्तर पर बैठ गयीं। वह चुप थीं। इधर आग के पास औरतों की गप – शप चल रही थी मै उठकर सोने के लिए बाहर बैठक में जाने लगा तो बुआ ने ही रोक लिया। उन्होंने अभी तक अपने पीहर की तो बात ही नहीं की थी। उनके कहने पर मैं भी वहीं जाकर चारपाई पर दूसरी तरफ रजाई ओढ़कर बैठ गया। रिंकल दीदी पीठ को दीवार से टिकाये बैठी हुई औरतों के प्रस्नों का उत्तर हाँ – ना में दे रही थीं। मैंने पैर फैलाये तो मेरे पैरों का पंजा उनकी जांघों से छू गया। मैंने उन्हें खींचकर थोड़ा हटाकर फिर फैलाया तो जाकर उनकी योनि से मेरा अँगूठा लग गया। उन्होंने अपने दोनों पैरों को इधर उधर करके लम्बा कर रक्खा था। उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। लेकिन मैंने जब अपने पैर को वहाँ से हटाना चाहा तो उसने उसी जगह पर मेरे पैरों को दबाया। वह मुस्कुराये जा रही थीं। मैं उनकी योनि के भूगोल को परखने में लग गया। संभवता वह शलवार के नीचे चड्डी नहीं पहने थीं। क्योंकि उनके वहाँ के बालों का मुझे पूरा एहसास हो रहा था। निश्चित रूप से उनकी झाँठो के बाल बड़े और घने होंगे। इस अनुभूति से मेरे अन्दर अजीब सी सनसनाहट होने लगी। वहीं बैठी किसी औरत ने कहा, सो जाओ बेटा। बाहर बैठक में ही मेरा बिस्तर बिछा था। वहां अभी भी तीन चार लोग बैठे थे। गप – शप चल रही थी। बिस्तर पर रजाई नहीं थी। बुआ ने रिंकल दीदी से कहा, ऊपर की कोठरी में बाक्स में से रजाई निकाल दे। और मुझसे बोलीं, कि तू भी चला जा लालटेन दिखा दे। आगे-आगे मैं और पीछे रिंकल दीदी, ऊपर
पहुँचकर कोठरी का द्वार खोलकर बड़े वाले बक्से का ढक्कन खोलने के लिए वह जैसे ही झुकी मैंने लालटेन जमीन पर रखकर उसे पीछे से अपनी बाहों में समेट लिया। वह चोंकी तब तक मैंने अपने हाथ को आगे से लेकर उसे अपनी बाहों में ले लिया और उसकी चूचियों को मसलने लगा और उसके कानों को होंठों मे दबाकर चूसने लगा। उसने पकड़ से आजाद होने का प्रयत्न किया, लेकिन मैंने इतनी जोर से कसा कि वह हिल भी नहीं सकती थी वह घबराकर बोली, छोड़ दे, अभी कोई आ जायेगा। उसकी यह बात सुनकर मेरा मन गदगद हो गया।आप लोग यह कहानी Antarvasnastory.org पर पढ़ रहे है | मैंने उसे झटके से अपनी तरफ घुमाकर चप्प से उसके मुँह को अपने मुँह में लेकर होठों को चूसने लगा और उसकी समीच में हाथ डालकर चूचियों को सीधे स्पर्श करने लगा। धीरे-धीरे वह डिली सी पड़ने लगी। वह मस्ताने लगी। जब उसके मुँह को चूसने के बाद अपने मुँह को हटाया तो मादक स्वर में बोली कि, अब छोड़िये मुझे डर लग रहा है। देर भी हो रही है। एक वादा करो। क्या देने का! उसने चंचल स्वर में फिर सवाल किया, क्या बुर और क्या उसने अँगूठे के संकेत से कहा, ठेंगा। मैंने हाथ को झटके से नीचे लेजाकर उसकी बुर को दबोचते हुए कहा, ठेंगा नहीं यह! तुम्हारी रानी को माँग रहा हं। मेरे नीचे से हाथ हटाते ही उसने बक्सा खोलकर रजाई निकालकर कहा, उसका क्या करना है चोदना है! वह रजाई को कंधे पर रख लपक कर मेरे लंड को चड्डी के ऊपर से नोचते हुए बोली, अभी तो! नहीं कल! और वह नीचे चली गयी। मैं भी जाकर बाहर बैठक मैं सोया। फूफा तो खर्राटे भरने लगे, लेकिन मुझे नीद ही नहीं आ रही थी। अन्दर से प्रसन्नता की लहर सी उठ रही थी। तरह-तरह की कल्पनाएं करते हुए न जाने कब नीद आयी। जब आँख खुली तो पता चला कि सुबह के 9 बज गये हैं। चड्डी गीली लगी। छूकर देखा तो पता चला कि मैं सपने में झड़ गया था। तभी रिंकल दीदी आ गयीं। उन्होंने मेरे उठने के बाद लुगी को थोड़ा सा गीला देखा तो मुस्कुराने लगीं। और धीरे से कहा, यह क्या हो गया। मैंने भी उन्ही के स्वर में उत्तर दिया, रात में आपको सपने में चोद रहा था। नाइटफाल हो गया। वह मुस्कुराते हुए अन्दर चली गयीं। सर्दी तो थी लेकिन धूप निकल आई थी। मैं नित्य क्रिया से निपटकर चाय पीने के बाद नाश्ता कर रहा था तो पास में ही आकर रिंकल दीदी बैठ गयीं। दूसरी तरफ रसोई में चूल्हे पर बैठी बुआ पूरी उतार रही थीं। वहीं से बोलीं – मन्दिर में जा रही हूँ। आज स्नान है। महीने का दूसरा सोमवार है। रिंकल तूं नहा धोकर तैयार हो जा। वह जवाब देतीं उससे पहले ही मैंने धीरे से हुए कहा, प्लीज रिंकल दीदी न जाइए। कोई बहाना बना दीजिए। क्यों धीरे से मुस्कुराकर कहा। मेरा मन बहुत हो रहा है। क्या मैंने झुँझलाकर कहा, तेरी लेने का! मैं दे दूँगी! हाँ! आप को जाना नहीं है। तब वह बोलीं, मामी मेरी तबियत ठीक नहीं। अकेले कैसे रहेगी। भैया तो है ना। वह रुकने वाला है घर में! नहीं बुआ मैं तो चला घूमने। मैंने उन्हें छेड़ते हुए कहा। फिर वह धीरे से बोलीं, तो मै जाऊँ! प्लीज.प्लीज नहीं। बुआ बोली – मैं बारह बजे तक तो आ ही जाऊँगी तेरे फूफा तो निकल गये। अब तुझे ही रहना पड़ेगा। मैं रात से ही देख रही हूँ इसकी तबियत ठीक नहीं देर तक सोई नहीं।
बुआ के मंदिर जाते ही मैंने मुख्य द्वार की सांकल को बन्द किया और रिंकल दीदी का हाथ पकड़कर कमरे में ले गया। बिजली थी। बल्ब जलाकर उन्हें लिपटा लिया। वह भी सहयोग करने लगीं। मेरे मुंह से मुंह लगाकर मेरी जीभ चूसने लगीं। मैं उनके चूतड़ों की फांक में अंगुली धंसा कर उन्हे दबाने लगा। मेंरा मुंह उनके थूक से भर गया। मेरा शरीर तनने लगा। वह चारपाई पर बैठ गयीं। मैंने उनकी समीच को उतरना चाहा तो बोलीं, नहीं ऊपर कर लो। मजा नहीं आयेगा। कहते हुए मैंने हाथों को ऊपर करके समीज उतार दी। ब्रेसरी में कसी उनकी छोटे खरबूजे के आकार की चूचियां सामने आ गयीं। फिर मैंने थोड़ी देर उन्हें ऊपर से सहलाने के बाद ब्रेजरी खोलना चाहा तो उन्होंने खुद ही पीछे से हुक खोल दिया। बल्ल से उनकी दोनों गोरी-गोरी चूचियां बाहर आ गयीं। चने गुलाबी थे। थोड़ी सी नीचे की तरफ ढलकी थीं। मैं झट से पीछे जाकर टांगे उनके कमर के दोनों तरफ करके बैठ गया। और आगे से हाथ ले जाकर उनकी चूचियां मलने लगा। चने खड़े हो गये। उन्हें दो अंगुलियों के बीच में लेकर छेड़ने लगा बहुत मजा आ रहा था। मेरा पूरी तरह खड़ा हो गया लिंग उनकी कमर में धंस रहा था। वह बोलीं, पीछे से क्या धंस रहा है अब इससे आगे नहीं! उनको अनसुना करके मैंने अपनी लुंगी खोल दी नीचे कुछ नहीं था। चारपाई से उतर कर उनके सामने आ गया। मेरे पेड़ू पर काली-काली झांठे थीं। लंड नीचे लटक रहा था। चमड़े से ढका लाल सुपाड़ा बाहर निकल आया। उसे उनकी नाक के पास हिलाते हुए कहा, रिंकल दीदी इसे पकड़ो। उन्होंने लजाते हुए उसे पकड़ा और सहलाने लगीं। थोड़ी ही देर में लगा कि मैं झड़ जाऊंगा। मैंने तुरन्त उनकी पीठपर हाथ रखकर उन्हें चित कर दिया और हाथ को सलवार के नाड़े पर रख दिया। वह बोलीं – नहीं। मैंने उनकी बात नहीं सुनी और और उसके छोर को ढूंढने लगा। वह बोलीं, आगे न बढ़ों मुझे डर लग रहा है। मैंने नाड़े का छोर ढूंढ लिया। वह फिर बोलीं, अगर कहीं बच्चा ठहर गया तो। आज नहीं कल निरोध लाना। बुर मे नहीं झड़ूंगा। कसम से । मैंने कहा। मुझे डर लग रहा है, सच में यह मैं पहली बार करवा रही हूं। मैं भी। इसी के साथ मैंने उनके नाड़े को ढीला कर दिया और दूसरे हाथ से उनकी चूचियां मले जा रहा था। वह ढीली पड़ती जा रही थीं। कुछ नहीं होगा। कहकर मैंने उनकी सलवार खींच दी। नीचे वह चड्डी नहीं पहने थीं। उनकी बुर मेरे सामने आ गयीं। उन्होंने लज्जा से आंख बंद कर लीं। उनका पेड़ू भी काली झांठो से भरा था। मैंने ध्यान से देखा तो उनकी बुर का चना यानी क्लीटोरिस रक्त से भरकर उभरा हुआ दिखा। मैं सहलाने के लिए हाथ ले गया तो वह हल्का सा प्रतिरोध करने लगीं, लेकिन वह ऊपरी था।
मुझसे अब बरदास्त नहीं हो रहा था। मैंनें जांघे फैला दी और उनके बीच में आ गया। फिर रिंकल दीदी के ऊपर चढ़कर हाथों से लन्ड पकड़कर उनकी बुर के छेद पर रक्खा और दबाव दिया तो लन्ड अन्दर चला गया। निशाना ठीक था। उसने सिसकारी भरी। और धीरे से कहा, झिल्ली फट गयी। मैं उसे मजा लेकर चोदने लगा। उन्होंने मुझे अपनी बाहों में कस लिया और मेरे चेहरे पर अपने मुंह को रगड़ने लगीं। उनका गोरा नरम शरीर मेरे सांवले थोड़ा भारी शरीर से दबा पिस रहा था। थोड़ी देर बाद उनकी गांड से पुच्च-पुच्च का स्वर निकलने लगा। मैं झड़ने को हुआ तो झट से लन्ड को निकाल दिया ओर वीर्य फेंक दिया। सारा वीर्य उनके शरीर पर गिर गया। थोड़ी देर बाद वह उठ गयीं ओर वैसे ही कपड़े पहनने लगीं। मैंने कहा, एक बार और। नहीं! अब कब कभी नहीं। यह पाप है! पाप नहीं मेरा लन्ड है। मैंने इस तरह कहा कि, वह मुस्करा उठीं और कपड़े पहनने के बाद कहा – सच बताओ इससे पहले किसकी ली है। कभी नहीं। बस आज पहली बार ही किया है। दोपहर तक बुआ के आने से पहले हम दोनों चूत, बुर, गांड और लन्ड की बातें करते-करते इतने खुल गये कि मैंने तो सोचा भी नहीं था। उन्होंने बताया कि उनके चाचा के लड़के ने कई बार जब वह सोलह की थीं तो चोदने की कोशिश की लेकिन अवसर नहीं दिया। लेकिन मैंने रात में उनकी भावनाओं को जगा दिया और अच्छा ही किया। क्यों की अभी तक वह इस स्वर्गीय आन्नद से वंचित थीं। चुदाई के बाद हम लोगों ने मुख्य द्वार तुरन्त ही खोल दिया, तभी पड़ोस की एक औरत आ गयीं। वह थोड़ी देर बैठी रहीं। मैं धूप में नहाने बाहर नल पर चला गया। वह भी जब नहाकर आयीं तो बारह बजने में आधा घंटा रह गया था। इसका अर्थ था बुआ बस आने वाली होंगीं। मैंनें एक बार ओर चोदने के लिए कहा तो वह नहीं मानी, लेकिन मेरे जिद करने पर ठीक से वह अपनी बुर दिखाने के लिए तैयार हो गयीं। बुर को खोल दिया। चुदाई के कारण अभी तक उनकी बुर हल्की सी उठी थी। मैंने झांट साफ करने के लिए कहा तो हंसकर टाल गयीं। उन्होंने मेरा लन्ड भी खोलकर देखा। वह सिकुड़कर छुहारा हो रहा था। लेकिन उनके स्पर्श से थोड़ी सी जान आने लगी तो वह पीछे हट गयीं, और बोलीं कि, अभी यह फिर तैयार हो गया तो मेंरा मन भी नहीं मानेगा। इसलिए वो कमरे से बाहर चली गई। थोड़ी देर बाद बुआ आ गई।