खूबसूरत यादें बचपन के सेक्स की

अजय ने पहले मेरे गालो को सहलाया और मेरा एक हाथ अपनी पीठ पर रख दिया, उसका दूसरा हाथ मेरे जाँघो को सहलाने लगा, मैं लगभग बेहोश थी, मेरे दिमाग़ ने काम करना बंद कर दिया था, उसकी उंगली मेरी पेंटी के किनारे शेलेट-2 अंदर की ओर जाने लगी, मुझे 105 डिग्री फीवर की कंपकपि आ गयी, मेरी दोनो चुचियाँ उसके जाँघ से दबी हुई थी, बुवर से कुच्छ गरम तरल प़ड़ार्थ निकलता महसूस हुआ, शायद पेंटी का चुत वाला हिस्सा भींग चुका था, फिर अजय की एक उंगली पेंटी के उपर से ही मेरी बुवर मे घुसने लगी, उसका लंड पेंट के अंदर टेंट की तरह खड़ा हो गया था. लेकिन जैसे ही अजय ने मुझे उठा कर अपने सीने से सटाया और मेरे लिप्स पर किस करना चाहा, मुझे होश आ गया और मैने उसे परे धकेल दिया. बारिश थम चुकी थी लेकिन गजब की बात ये की अजय के चेहरे पर कोई अपराध-बोध नही था. हम वापस घर आ गये और उस रात जब मैं मम्मी को पकड़ कर सोई तो मेरी चुचियाँ मम्मी की चुचियो को अंजाने ही दबाने लगी, मेरा हाथ बार-2 मेरी बुवर पर जा रहा था और पेंटी भी कुच्छ नीचे सरक गयी थी.

अब जब भी मैं अकेली होती मुझे कार का वो सीन परेशन करने लगता था, साथ ही मेरी बुवर मे अजीब सी सुरसुरी पैदा हो जाती थी, समझ मे नही आता की क्या करू. मैं अजय से दूर-2 रहने लगी थी, दर लग रहा था की कही भाई-बेहन का रिश्ता कलंकित ना हो जाए. एक दिन मेरे मोबाइल पर मेसेज आया – ” क्यो तड़प रही हो, जवानी को कितने दिन ठुकरावगी, आज नही तो कल बुवर की आग को शांत करना ही होगा, कोई लंड नही मिल रहा तो घर पर बैगन से ही ट्राइ करो, मज़ा आ जाएगा” ये मेसेज अजय ने ही भेजा था. उस मेसेज के बाद से बैगन देखते ही मेरी बुवर फड़कने लगती. आख़िर एक दिन जब घर पर सब्ज़ीवला आया तो लगभग दौराती हुई मैं निकली और बोली – भैया एक किलो बैगन दे दो. मम्मी बोली – अनन्नु, तुम तो बैगन की सब्जी खाती ही नही हो, फिर क्यो ले रही हो? —- एक नया डिश ट्राइ करना है मम्मी, बोलकर मैं अच्च्चे-2 और लंबे-2 बैगन चुनने लगी. अगर अजय वाहा होता तो समझ जाता की मैं बैगन को एसे पकड़ रही थी जैसे किसी लंड को पकड़ रही हू.

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उसी दिन मैं सेक्स के इंद्रजाल मे एसे घिरी की मम्मी की नज़र बचा कर मैं एक लूंबा सा बैगन लेकर बाथरूम मे घुस गयी, फटाफट अपने सारे कपड़े उतरी खुद को उपर से नीचे तक निहारने और सहलाने लगी, अब ज़्यादा देर बर्दस्त करना मुश्किल हो रहा था, मैने बैगन को प्यार से चूमा और उसे अपनी रसीली बुवर मे घुसने लगी, लेकिन ये क्या! ये तो अंदर जा ही नही रहा था, जबकि अपने अंदाज़ा से मैं करीब 1.5 इंच घेरा वाला और करीब 7-8 इंच लूंबा बैगन ही लाई थी. संयोग से मेरी नज़र बाथरूम मे तेल की कटोरी पर पड़ी, एक आइडिया लगाई और थोड़ा तेल चुत पर थोड़ा तेल बैगन पर डाली, फिर ज़ोर लगा कर बैगन को बुवर मे घुसाई तो वो फिसलता हुआ मेरी बुवर मे चला गया लेकिन मेरे मूह से चीख निकल गयी —&नबस्प; उई मा .. .. .. मम्मी .. …. मेरी बुवर फट चुकी थी और लग रहा था जैसे बुवर मे कोई गरम लोहा घुस गया हो, मैं डर और दर्द से अपनी चुचिया दबाने लगी, बैगन अपने-आप फिसल कर नीचे गिर गया, थोड़ी रहट मिली. उधर मम्मी चीख सुनकर बाथरूम के दूर पर आई —&नबस्प; क्या हुआ अन्नू? तब तक मैं संभाल चुकी थी, बोली — कुच्छ नही मम्मी, वो ज़रा फिसल गयी थी, अवी नहा कर आती हू. मैं बैगन से चूड़ने का ख्याल छोड़ चुकी थी, मैं बैगन को उठा कर बाथरूम की छ्होटी खिड़की से फेकने ही वाली थी की मेरे अंदर का सेक्स फिर उभर गया. डराते-2 मैने बैगन को फिर से बुवर के अंदर डाला, पहले एक इंच, फिर 3 इंच तक और फिर एक झटके मे लगभग 6 इंच तक, थोड़ा दर्द तो हुआ लेकिन बुवर के अंदर कही कुच्छ मस्ती-सी भी आई, मैं बैगन का पुंच्छ पकड़ कर उसे घूमने लगी, चुत मे आनंद की एक लेहायर दौड़ गयी, जब आधा बैगन बाहर निकली तो देखी की उस पर खून लगा है जो तेल से मिक्स होकर हारे-हारे बैगन पर लाल-लाल मोतियो की तेरह चमक रहा था, चुदाई का नशा चाड़ने लगा था और मैं बैगन को अंदर-बाहर करने लगी. मुश्किल से 1-2 मिनिट मे ही लगा की मेरी बुवर से कुच्छ च्छुटा, असल मे मैं झाड़ गयी थी और मस्ती से अपने होठ कातने लगी, एक हाथ चुचियो को मसालने लगा और अंजाने ही पूरा बैगन बुवर मे समा चक्का था.

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अब तो बैगन मेरी रोज की ज़रूरात बन गयी थी. एक बार घर पर कुच्छ गेस्ट आ गये तो मुझे बैगन से चूड़ने का मौका नही मिल पा रहा था, मेरी बुवर मे खुजली हो रही थी, जब बर्दस्त करना मुश्किल हो गया तो मैं चुपके से एक मुड़ा हुआ&नबस्प; बैगन लेकर बाथरूम मे घुस गयी और उसे आधा बुवर मे घुसा कर पेंटी चड़ा ली, स्कर्ट के कारण बाहर से कुच्छ पता नही चलता था लेकिन क्या बताउ यारो, मैं तो दिन भर गान-गाना रही थी, सच मे एसी मस्ती तो चूड़ने मे भी नही थी, चलते-फिराते मेरी बुवर के अंदर बैगन अपना काम कर रहा था, मैं दिन भर मे 3-4 बार झाड़ चुकी थी, वो भी सब के सामने. सिर्फ़ झड़ने वक्त मेरी आँखे एक पल को बंद हो जाती थी जिसे कोई गौर नही कर पता था. आख़िर रात मे मैं उसे बुवर से निकल कर सब्जी मे मिला दी जिसे साहबो ने मज़े से खाया. सोते समय एक बड़ा और मोटा सा बैगन लेकर अपने कमरे मे बंद हो गयी और उसे अपनी बुवर मे घुसा कर चुद्ती रही, नींद आने तक मैं 4-5 रौंद चुद गयी. मैं पूरी तरह से चुद़क्कड़ बन चुकी थी वो भी बिना भाई-बेहन के रिश्ते को कलंकित किए हुए, लेकिन भाई अजय का एहसान तो मानना ही पड़ेगा की उसी ने मुझे बैगन से संभोग का रास्ता दिखाया.

सहेलियो, अब तक नही की हो तो एक बार बैगन का फ़ॉर्मूला ट्राइ करके देखो, मज़ा आ जाएगा. नेक्स्ट पार्ट मे बताउँगी की कैसे गाजर और मूली का सलाद खिलते-2 आख़िर मे मैं भाई अजय से चुद ही गयी और कैसे मैं उसकी बीवी बन गयी. मज़ा आया हो तो मैल ज़रूर करना,

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