खूबसूरत यादें बचपन के सेक्स की

दोपहर मे जैसे ही आँख खुली, मैं उठ कर बात्ररों गयी, लौतने लगी तो नेहा के कमरे मे देखी की सोनू बिल्कुल नंग-धारंग खड़ा है और नेहा बेड पर सोई है. मैं हैरान हुई ये देख कर की सोनू अपना लंड हिला रहा था और बीच-बीच मे नेहा के होतो से अपना लंड सटा रहा था. मेरी बेटी नेहा अवी 14 साल की थी और पिच्छले हफ्ते ही उसे फर्स्ट टाइम पीरियड आया था. सोनू मेरा 16 साल का बेटा था. ये दृश्या देख कर मैं तो सकते मे आ गयी और बिना कुच्छ बोले वापस सोफा पर आकर लेट गयी, सोची की शाम मे अजय (मेरा पाती) आएगा तो बताउँगी. आँखे बंद की तो पिच्छली यादें ताज़ा हो गयी. इतिहास खुद को दुहरा रहा था.

मई 18 साल की थी और मेरा भाई अजय मुझसे सिर्फ़ एक साल छ्होटा 18 साल का था. हुमलोग एक ग़रीब परिवार से है और अपना ओरिजिनल घर सिवान से दूर जाईपूरे मे रहते है. थोड़ा फॅमिली बॅकग्राउंड बठाना ज़रूरी होगा. पापा की डेत के 6 महीने बाद अजय का जन्म हुआ था. 20-22 साल की मेरी मा जवानी मे ही विधवा हो गयी लेकिन किसी तरह सिलाई-कतई करके हमे पाला-पोसा. भाई अजय को ड्राइविंग का शौक था और उसने जैसे-तैसे ड्राइविंग लाइसेन्स भी बनवा लिया. मा के जान-पहचान से अजय को एक सेठ ने ड्राइवर रख लिया. अब अजय मारुति वन चलता था जिससे घर मे आमदनी बढ़ गयी थी. मैं अजय से बड़ी थी लेकिन सिर्फ़ एक साल का फ़र्क होने की वजह से वो मुझे दीदी ना बोल कर अन्नू ही बोलता था. हमारे घर मे एक पूरेाना मोटर-साएकल भी था जिससे अजय घर के छ्होटे-मोटे काम कर देता था.

एक दिन मैं घर पर खड़ी मोटर-साएकल पर यू ही बाएक चलाने का आक्टिंग कर रही थी. अजय ने देखा तो बोला – क्या बात है अन्नू, बाएक चलाने सीखना चाहती हो क्या? —- क्या तुम मुझे सीखा दोगे? मैं भी मज़ाक मे बोली. इतने मे अजय ने मोटर-साएकल निकाला और मुझे ज़बरदस्ती बिठा कर मैदान मे चला आया. मा पिच्चे से चिल्लती रह गयी. मैदान मे आकर उसने बाएक रोकी और मुझे आगे बिठा कर खुद मेरे पिच्चे बैठ गया. बड़े होने के बाद पहली बार अजय मुझसे इतना सात कर बैठा था. जैसे ही उसने किक मारी और मेरे हाथ से ही एक्शिलेतेर बड़ाई बाएक उच्छल गयी और मैं अजय के सीने पर लड़ गयी. स्कर्ट उस कर कमर पर आ गयी, मैं घबरा कर चिल्लाई — अजय .. .. ..! फिर अजय ने बाएक संभाला तो मैं बोली – तुमने मुझे ड्रेस भी चेंज करने नही दिया, स्कर्ट मे कोई बाएक चलती है क्या? – तो क्या हुआ, ड्रेस से क्या होता है, बाएक चलाओ ना, अभी तो कम-से-कम ड्रेस पर ध्यान मत दो .. …&नबस्प; तुम लड़की लोग होती ही ऐसी हो .. .. दुनिया इधर से उधर हो जाए मगर ड्रेस और मेक-उप ठीक होना चाहिए. अब मेरी बोलती बंद हो गयी, मैं किसी तरह से बाएक चला तो रही थी लेकिन पिच्चे से अजय के सतने से अटपटा भी लग रहा था. उस दिन मैं ज़्यादा नही चला पाई और घर लौट गयी.

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उस दिन के बाद मुझे ड्राइविंग का शौक चड़ गया. अगले दिन जब मैं सलवार सूट मे बाएक चलाने गयी तो अजय ने दुपट्टा हटवा दिया, कहा – ये दुपट्टा कही बाएक मे फस गया तो आक्सिडेंट हो जाएगा. मेरा सारा ध्यान बाएक चलाने मे था लेकिन मैं महसूस कर रही थी की अजय का लंड टाइट हो रहा है और वो मुझे कमर पर कस कर पकड़े हुए है. मैं बता नही सकती मुझे कैसा लग रहा था. काई बार हॅंडल ठीक करने के करम मे उसका हाथ मेरी ठोस चुचियो पर भी चला जाता था. अजय बिल्कुल नॉर्मल था लेकिन मैं नॉर्मल नही लग रही थी, फिर भी मैं विरोध नही कराती थी. 7-8 दिन बाएक चलाने के बाद मैं बोली – अजय क्यो ना तुम हमे कार चलाने ही सीखा दो, बाएक मे गिरने का दर लगता है.

असल मे मैं सोची की कार मे मुझे अजय के साथ सतना नही पड़ेगा और ड्राइविंग भी सिख लूँगी, लेकिन होनी को कुच्छ और ही मंजूर था. संयोग से पहले ही दिन फिर मैं स्कर्ट-टी-शर्ट मे आ गयी. अजय कार लेकर उसी मैदान मे आया, मैं ड्राइविंग सीट पर बैठी और अजय बगल वाली सीट पर. वो मेरी तरफ झुक कर कार स्टार्ट किया और क्लच-गियर के बड़े मे बतने लगा, एसे मे उसका कंधा मेरी चुचियो पर टीका हुआ था और मेरे चेहरे से उसका सिर टच कर रहा था. फिर कार स्टार्ट हुई और एक झटके मे आगे बाद गयी और फिर बंद भी हो गयी. अजय तेज़ी से कार से उतरा और मेरा गाते खोलकर मेरी ही सीट पर आ बैठा. अब तो मैं लगभग उसकी गोद मे थी, मेरे हाथो से सटा हुआ उसका हाथ भी स्टियरिंग पर था और उसकी कोहनी मेरी चुचियो पर रग़ाद खा रही थी. फिर कार स्टार्ट करने से पहले अजय नीचे झुक कर मेरे पैरो को क्लच और ब्रेक पर रखने लगा. मेरी नंगी टॅंगो मे उसके कोहनी के टच से अजीब फीलिंग हो रही थी, फिर वो जैसे ही सीधा हुआ उसके हाथ से मेरा स्कर्ट उपर उठ गया और मेरी पेंटी सॉफ दिख गयी, मैं जल्दी से उसे ठीक की और अजय को देखने लगी, वो झेप गया. एक दो रौंद कार चलाने के बाद अचानक जोरदार बारिश होने लगी और हुमलोग बीच मैदान मे कार रोक दिए.

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कार रोकने के बाद भी अजय वैसे ही चिपका बैठा रहा तो मैं बोली – अब तो अलग सीट पर बैठो … .. —- कैसे निकलु, बारिश हो रही है ना, और फिर मैं अपनी बड़ी बेहन की गोद मे बैठा हू, इसमे ग़लत क्या है …. – अजय एक दम नॉर्मल बिहेव कर रहा था, पर मैं अनीज़ी फील कर रही थी, फिर मैं अंदर ही अंदर पिच्छली सीट पर चली गयी, बाहर घनघोर बारिश हो ही रही थी. बातें बनाते हुए अजय भी पिच्छली सीट पर आ गया और मेरे से सात कर बैठ गया, फिर बोला – उस दिन बाएक से तेरे घुतनो मे चोट लगी थी ना, अब जख्म कैसा है? कहते ही&नबस्प; स्कर्ट सरककर&नबस्प; वो मेरा जख्म देखने लगा, जख्मा अंदर की ओर घुतनो से उपर तक करीब 3-4 इंच था, वो उसे सहलाने लगा, उसकी उंगली मेरी जाँघ के अंदरूणई हिस्से मे फिरने लगा, हे भगवान! मैं ना तो कुच्छ बोल पा रही थी ना ही उसे रोक पा रही थी, कुच्छ ही देर मे मैं अपनी उपरी जाँघ पर उसकी पूरी हथेली को महसूस करने लगी. ये क्या! अजय की उंगली तो मेरी पेंटी को टच करने लगी, वो भी बुवर वाले हिस्से पर, मैं काँपने लगी, साँसे तेज़ हो गयी, धड़कन बढ़ गयी. अचानक उसने मेरा सिर अपनी गोद पर रख दिया और पैर उठा कर सीट पर कर दिया, मैं तो पुतले की तरह एक दम ढीली हो गयी थी. उसकी गोद मे गिराते ही मुझे पहली बार किसी पूरेुष गंध का एहसास हुआ और गालो पर उसके खड़े लंड की चुभन फील हुई.

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