आखिर ससुरजी घुस ही गए मेरी चुत में

जो कुछ भी हो, उन्हे पितामह बन ने की उतावल थी.एक दिन एकांत पा कर मुझ से पूछा : क्यूं बेटी ? सब ठीक है ना ? उन का इशारा चुदाई की ओर था जान कर मुझे शर्म आ गयी मेने सिर ज़ुक लिया, कुछ बोल ना सकी.. में रो पड़ी. मेरे कंधों पर हाथ रख कर वो बोले : मैं सब जनता हूँ तू अब भी कम्वारी हो. प्रदीप ने तुझे चोदा नहीं है सच है ना ? ससुरजी के मुँह से चोदा सुन कर मैं चोन्क़ गयी उन की बाहों से निकल गयी कुछ बोली नहीं. आँसू पॉच कर सिर हिला कर हा कही.वो फिर मेरे नज़दीक आए, मेरे कंधों पर अपनी बाह रख दी और बोले : बेटी, ये राज़ हम हमारे बीच रखेंगे की प्रदीप चोद ने के काबिल नहीं है लेकिन मुज़े पोता चाहिए इस का क्या ? मेरी इतनी बड़ी जायदाद, इतना बड़ा कारोबार सब सफ़ा हो जाएगा मेरे मार ने के बाद. वो तो वो लेकिन जब मैं इस दुनिया में ना रहूं तब तेरी और प्रदीप की देख भाल कौन करेगा जब तुम दोनो बुड्ढे हो जाओगे ? मुज़े लड़का चाहिए. है कोई इलाज तेरे पास ?मैं बोली : मैं क्या कर सकती हूँ पिताजी ? रसिकलाल : तुझे करना कहाँ है ? करवाना है सम्जी ? मैं : हाँ, लेकिन किस के पास जा उन ? आप की इच्छा है की मैं ओर कोई मर्द छी छी मुझ से ये नहीं हो सकेगा. रसिकलाल : मैं कहाँ कहता हूँ की तू ग़ैर मर्द से चुदवाओ. ससुरजी फिर चुदवाओ बोले, मुझे शरम आ गयी सच कहूँ तो मुझे बुरा नहीं लगा, थोड़ी सी गुदगुदी हो गयी और होटों पैर मुसकान आ गयी जो मैने मुँह पर हाथ रख कर छुपा दी.

मैने पूछा : आप की क्या राई है ?कुछ मिनीटों वो चुप रहे, सोच में पड़ गये बोले : कुछ ना कुछ रास्ता मिल जाएगा, मैं सोच लूंगा. मुझे तू वचन दे की तू पूरा सहकार देगी. देगी ना ? मैने वचन दे दिया. वो चले गयेउस दिन के बाद ससुरजी का वर्तन बदल गया. अब वो अच्छे कपड़े पहन ने लगे. रोज़ शेविंग कर के स्प्रे लगा ने लगे. बाल जो थोड़े से सफ़ेद हुए थे वो रंग लगवा कर काले बना दिएक बार उन्हों ने पानी का पियाला माँगा. मेने पियाला धर दिया तब लेते वक़्त उन्हों ने मेरी उंगलियाँ छू ली. दुसरी बार पियाला पकड़ ने से पहले मेरी कलाई पकड़ ली. बात बात में मुज़े बाहों में ले कर दबोछ लेने लगे. मुज़े ये सब मीठा लगता था. आख़िर वो एक हट्टे कट्टे मर्द थे, भले प्रदीप जैसे जवान ना थे लेकिन मर्द तो थे ही. सासूज़ी के देहांत का एक साल हो गया था. मेरे ख़याल से उस के बाद उन्हों ने कभी चुदाई नहीं की थी, किसी के साथ मेरे जैसी जवान लड़की घर में हो, एकांत मिलता हो तो उन का लंड खड़ा हो जाय इस में उन का क्या कसूर ?थोड़े दिन तक मेरी समझ में आया नहीं की मैं क्या करूँ. फिर सोचने लगी की क्यूं ना सहकार दूं ? ज़्यादा से ज़्यादा वो क्या करेंगे ? मुज़े चोदेन्गे ? हाय हाय सोचते ही मुझे गुदगुदी हो गयी ना ना, ऐसा नहीं करना चाहिए. क्यूं नहीं ? बच्चा पेदा होगा तो सब समस्याएँ हल हो जाएगी. किस को पता चलेगा की बच्चा किस का है ?

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और सच कहूँ तो मुज भी चाहिए था कोई चोदने वाला. ऐर ग़ैर को ढूंढु इन से मेरे ससुरजी क्या कम थे ? मेने तय किया की मेरे कौमार्य की भेट में अपने ससुरजी को दूँगी और उन से चुदवा कर जब चूत खुल जाय तब प्रदीप का लंड लेने की सोचूँगी.उस दिन से ही मैने ससुरजी से इशारे भेजना शुरू कर दिया. मैने ब्रा पहन नी बंद कर दी. सलवार कमीज़ की जगह चोली घाघरी और ओढनी डालने लगी वो जब कलाई पकड़ लेते थे तब में शरमा कर मुस्कुराने लगी मेरा प्रतिभाव देख वो ख़ुश हुए. उन्हों ने छेड़ छाड़ बढ़ाई. एक दो बार मेरे गाल पर चिकोटी काट ली उन्हों ने. दुसरी बार मेरे कुले पर हाथ फिरा लिया. मैं अक्सर ओढनी का पल्लू गिरा कर चुचियाँ दिखाती तो कभी कभी घाघरी खिसका कर जांघें दिखाती रही.दिन ब दिन सेक्स का तनाव बढ़ता चला. एक समय ऐसा आया की उन की नज़र पड़ ते ही मैं शरमा जा ने लगी उन के छू ने से ही मेरी पीकी गीली होने लगी उन की मोज़ूड़ागी में नीपल्स कड़ी की कड़ी रहने लगी अब वो अपना धोती में छुपा टटार लंड मुझ से चुराते नहीं थे. मैं इंतेज़ार करती थी की कब वो मुझ पर टूट पड़ेंगे. आख़िर वो रात आ ही गयी प्रदीप सो गया था. ससुरजी रात के बारह बजे बाहर गाँव से लौटे. मेने खाना तैयार रक्खा था . वो स्नान करने गाये और मेने खाना परोसा.वो नहा कर बाथरूम से निकले तब मैने कहा : खाना तैयार है खा लीजिए. वो बोले : तूने ख़ाया ?

मैं : नही जी. आप के आने की राह देख रही थी. वो बोले : सूहास, ये खाना तो हम हररोज खाते हें. जिस की मुझे तीन साल से भूख है वो वो कब खिलाओगी ? मैं : मैं कैसे खिला उन ? कहाँ है वो खाना ? वो : तेरे पास हैमैं समझती थी की वो क्या कह रहे थे. मुझे शर्म आने लगी नज़र नीची कर के मैने पूछा :

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