दोस्त के मा के चुत मे डाला मेरा लंड

मैं एक बहोट ही रिच फॅमिली से बिलॉंग करता हूँ. और मेरी फॅमिली मे मैं मेरी मम्मी और पापा रहते है.

आज मैं आपको एक कहानी ब्ताने जा रा हूँ जो की मेरी ही कहानी है. और एक दम साची कहानी है जिसको पद कर आपको खूब मज़ा आने वाला है.

पर मेरी कहानी पड़ने से पहले थोरदा बहोट मेरे बारे मे भी जान लीजिए. तो आप लोगो को थोरदा भोथ तो टा चल ही गया है तो थोरदा अब और जान लीजिए.

मेरा फिगर तो है ही मस्त और मेरी एक गर्लफ्रेंड भी थी जिसके साथ मैने सेक्स कर रखा था और होता भी क्यू ना आख़िरकार हम आचे गफ़ ब्फ जो थे. पर अब वो मेरे साथ न्ही रहती है क्योकि हुमारे बीच थोर्दी मिसांडरस्टॅंडिंग हो गयइ थी जिसकी व्जह से उसने मेरे साथ बात करना बंद कार्डिया है.

चलो छोड़ो ये सब बतो को, अब मैं आपको अपनी कहानी पर ले कर चलता हूँ. क्योकि इतना इंतेज़ार करना भी अछा न्ही होता है.

तो दोस्तो ये कहानी आज से कुछ महीने पहले की है. तब हुमारे घर के सामने वेल घर मे एक बहोट ही अची फॅमिली आई थी. उस फॅमिली मे वो अंकल-आंटी और उनका एक बेटा था जो की मुझसे 2 साल ही छोटा था.

मेरी उनके बेटे से जल्दी ही दोस्ती हो गयइ थी और मेरा उनके घर आना जाना लगा रहता था. उस लड़के का नाम पंकज था जो की बहोट इंटेलिजेंट और काफ़ी हासमुख सा बंदा था. मुझे उसके साथ रहने मे बहोट ही ज़्यादा मज़ा आता था.

पंकज के पापा एक कपड़े की फॅक्टरी मे कम करते थे और उसकी मम्मी हाउसवाइफ थी. उसकी मम्मी थोरी मोटी थी प्स्र उनका फिगर बहोट ही कमाल का था. मैने कभी भी आंटी को ग़लत निगओ से न्ही देखा था.

अब ऐसे ही सब कुछ अछा चल रा था. मैं भी अपनी लाइफ मे बहोट खुश था. मैं पंकज के घर पर बहोट ही आता जाता था. और उसकी मम्मी के हाथ का भी बहोट अची अची डिश बना कर बना कर खिलती थी.

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मैं हुमेशा आंटी के साथ खूब बाते मरता था और उन्हे मैने कभी भी ग़लत नज़र से न्ही देखा था. और अंकल भी मेरे साथ बाते करते थे और हम दोनो को घूमने भी ले जया करते थे.

मुज्जे पंकज साथ टाइम स्पेंड करना बहोट ही अछा लगता था और मैं उसके साथ ही टाइम स्पेंड करता था. और तो और मैं उसकी स्टडी मे भी हेल्प किया करता था. बेशक वो काफ़ी इंटेलिजेंट था पर मैं उसे पदाया करता था जिसकी वजह से वो भी और इंटेरेस्ट लिया करता था.

अब ऐसे ही कुछ टाइन निकल गया पर बाद मे पंकज होटेल मॅनेज्मेंट का कोर्स करने के लिए भर चला गया. तो अब घर पर आंटी अंकल दोनो ही रह गये थे. वेसए तो अंकल के भी तौर लगते रहते थे इसलिए आंटी ही अब अकेली रह गयइ थी.

और अब मेरा भी जाना बहोट कम हो गया था. क्योकि अब . पर पंकज तो था न्ही इसलिए अब मेरा भी . न्ही लगता था तो मैं भी अब न्ही जया करता था.

अब ऐसे ही एक दिन आंटी . . देखा तो मुझे . . तो मैने . . कर आंटी को देखा और फिर आंटी . चला गया.

. . . ही मैने उन्हे . खा और फिर वो मुझसे कहने लग गयइ.

. – . पंकज के जाने के बाद . घर पर आना तो जेसे बंद ही हो गया, कभी हम से भी . . ..

मैं – . आंटी आज . को ज़रूर ., . मुझे कुछ कम है . मुझे जाना ..

अब मैं ये कह कर आंटी के . से निकल गया और फिर . को . आंटी के घर पर गया . . तब . डाल . थी . वो बहोट ही . लग र्ही थी. तो मेरे आने पर आंटी . . बना . और साथ मे . ले आई.

. अब बाते करने लग गये तो आंटी . मुझसे . लिया

. – . . गफ़ न्ही है का?

मैं – . आंटी पर अब न्ही है.

. – . अब क्यू न्ही है. . . . उसे . कार्डिया हो तभी वो . गयइ है.

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मुझे आंटी की बात साँझ न्ही आ र्ही थी.

मैं – . . क्या कह र्हे हो मेरे तो कुछ भी साँझ . आ रा है.

. – मेरे कहने का . है की . . कुछ मूवीस . . और . ही . . किया ..

मैं आंटी के मूह से ये सब . कर . रह गया. और तब से मेरी नज़र आंटी के लिए . लग गयइ.

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