दोस्तो, आज मैं आपको अपने एक मित्र के मित्र की सच्ची कहानी सुनाने जा रहा हूँ। ये बात करीब 20 साल पुरानी है। जब मेरा मित्र और उसका मित्र दोनों स्कूल में पढ़ते थे। दोनों गहरे दोस्त थे, हर दम साथ। तो लीजिये कहानी सुनिए।
मेरा नाम सुनील है, मैं धनबाद में रहता हूँ। मैं और मेरा गहरा दोस्त किशन, बचपन से ही गहरे मित्र थे, एक ही मोहल्ले में रहते थे, एक ही स्कूल और एक ही क्लास में एक साथ पढ़ते थे।
बचपन के बाद जवानी भी दोनों पे एक साथ ही आई। जवानी आई तो जवानी की बातें भी अपने आप सूझने लगी। जब छोटी लुल्ली लंड बन गई तो ये ज़रूरत भी महसूस हुई के इस लंड को अब किसी चूत में डाल कर देखा जाए।
ऐसे में ही हमारे दोनों के दिमाग में एक ही लड़की आई, गीता। हमारे पड़ोस में ही रहती थी और हमारे ही स्कूल में पढ़ती थी। उसके पापा की किरयाने की दुकान थी मोहल्ले मे, मगर उसके पापा की स्वर्गवास होने के कारण दुकान उसकी माँ सरला संभालती थी।
हम भी अक्सर उनकी दुकान पर कुछ न कुछ लेने जाते ही रहते थे।
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किशन इस मामले में मुझसे ज़्यादा तेज़ था, मैं थोड़ा शरमीले स्वभाव का था। मगर एक बात थी के गीता पर हम दोनों पूरी लाईन मारते थे, उसको भी पता था। बातों बातों में हमने उसे अपनी अपनी दोस्ती का दावा भी कर दिया था, मगर दोस्ती से आगे उसने कोई
बात बढ़ने नहीं दी। मगर दोनों की ट्राई पूरी चल रही थी के देखो गीता किसके पास सेट होती है। ये फैसला हमने पहले ही कर लिया था, के गीता जिसके पास भी सेट होगी, दूसरे को भी उसकी दिलवानी पड़ेगी, अकेले अकेले नहीं चोदेगा कोई भी।
दिन में अक्सर हम सरला की दुकान पे जाते, जाते तो गीता के लिए मगर सरला को ताड़ आते। चालीस से ऊपर थी, मगर वो भी दमदार थी। वो कभी ब्रा नहीं पहनती थी, हमेशा सादा सा सूती ब्लाउज़ जिसमे उसकी मोटी मोटी चुची ढँकी रहती थी, साड़ी की साइड से दिखता भरवां पेट, और साड़ी में छुपे हुये दो गोल चूतड़।
कभी कभी तो सरला पे भी दिल आ जाता था, के साली यही चुदने को तैयार हो जाए, तो मज़ा आ जाए।
तो एक दिन किशन मेरे पास आया और बोला, ‘यार एक बात बतानी है तुझे, आज तो बस वो हुआ के सुन के तू उछल पड़ेगा’।
मगर मेरा दिल बैठ गया, मैंने सोचा ले भाई, गीता तो इस से पट गई, अब अपने लिए तो कुछ नहीं बचा!
फिर भी मैंने पूछा- बता यारा, क्या हुआ, क्या गीता ने हाँ कर दी?
वो बोला- अबे नहीं बे, गीता ने नहीं!
‘तो किसी और ने?’ मैंने खुश होकर पूछा।
‘हाँ’ वो बोला।
‘किसने, बता भोंसड़ी के?’ मैंने ज़ोर दे कर पूछा।
वो बोला- गीता ने नही, गीता की माँ ने!
‘क्या?’ मेरा तो मुँह खुला का खुला रह गया- सच में? वो कैसे पट गई तुझसे?
‘सिर्फ पट नहीं गई, अभी अभी उसे चोद कर आ रहा हूँ!’
उसने कहा तो मानो मेरे पैरों तले से ज़मीन निकल गई।
‘कैसे साले बता तो’ मैंने पूछा।
‘यार, मैं तो, तुझे पता है, गीता के लिए उसके घर दुकान पे आता जाता था, कभी कभी जब गीता दुकान पे बैठती थी, तो मैं जानबूझ कर उसकी माँ की मदद कर देता था, कभी समान शेलफ़ों में लगाना, कभी गोदाम में रखना। बस पिछले हफ्ते की बात है, मैं उसके घर गया, और सरला के साथ गोदाम में अनाज की बोरियाँ रखवा रहा था’ वो बोला।
मैंने बड़ी अधीरता से पूछा- फिर क्या हुआ?
‘सरला भी सामान रख रही थी, तो उसकी साड़ी का पल्लू सरक गया, और उसकी बड़ी बड़ी विशाल छातियाँ, बिना ब्राके झूलती दिखी, मैं अपना काम छोड़ के उसकी झूलती चूचियाँ घूरने लगा, जब उसका ध्यान मुझे पे पड़ा तो वो मुस्कुरा दी, पर बोली कुछ नहीं, मैंने उसकी इस मुस्कुराहट को उसकी रजामंदी समझ लिया और थोड़ी देर बाद जब वो मेरी तरफ पीठ करके काम कर रही थी, मैंने उसे जाकर पीछे से पकड़ लिया और उसकी दोनों चूचियाँ दबा दी’ किशन ने बताया।
‘फिर?’ मैंने हैरानी से पूछा।
‘फिर क्या, मुझे तो डर था कि कहीं वो गुस्सा न करे, मगर उसने तो सिर्फ बड़े प्यार से मुझे हटा दिया, मुझे लगा कि यह तो गुस्सा ही नहीं, मैंने फिर से हिम्मत करके दोबारा उसकी चूचियाँ दबा दी। मैं दबाता रहा और वो न न करती रही, बस फिर तो मैंने अपने लंड को भी उसकी गाँड पे रगड़ना शुरू कर दिया, वो बोली ‘रहने दो, कोई आ जाएगा!’ मगर मैं नहीं हटा और उसकी चूचियाँ दबाता रहा और अपनी कमर उसकी गाँड पे घिसाता रहा। मगर तभी गीता आ गई, और मुझे उसे छोड़ना पड़ा। मगर मैंने कह दिया ‘चाची अब जिस दिन भी मौका लगेगा, उस दिन यह काम मैं पूरा करके जाऊंगा!’ उसने बड़ा खुश हो कर बताया।
‘तो आज मौका कैसे लगा?’ मैंने पूछा।