रिंकी के मुख से शाश्वत आनन्द की ‘आह’ की हल्की सी सिसकारी प्रफुटित हुई। जल्दी ही मैंने अपना हाथ दूसरे उरोज़ की ओर सरकाया
दूर वाला उरोज़ थोड़ा दूर पड़ रहा था तो रिंकी बिना कहे खुद ही सरक कर मेरी ओर ख़िसक आई।
अब ठीक था।
मैंने अपना हाथ ब्रा के ऊपर से ही परले उरोज़ पर ऱखा और उरोज़ को थोड़ा सा दबाया। प्रिय के मुंह से बहुत ही हलकी सी ‘सी… सी’
की सिसकारी निकली।
मैंने अपना हाथ उठा कर धीरे से ब्रा के अंदर सरकाया और परले उरोज़ पर कोमलता से हाथ धर दिया। परले उरोज़ का निप्पल अभी
दबा दबा सा था लेकिन जैसे ही मेरे हाथ ने निप्पल को छूआ, निप्पल ने सर उठाना शुरू कर दिया और एक सैकिंड में ही अभिमानी
योद्धा गर्व से सर ऊंचा उठाये खड़ा हो गया।
अचानक मुझे लगा की मेरे परले हाथ की हथेली पर कुछ नरम-नरम, कुछ गरम-गरम सा लग रहा है, देखा तो अपनी चादर के अंदर
रिंकी मेरा हाथ बहुत शिद्दत से चूम रही थी, पूरे हाथ पर जीभ फ़िरा रही थी।
जल्दी ही रिंकी ने मेरे हाथ की उँगलियाँ एक एक कर के अपने मुँह में डाल कर चूसनी शुरू कर दी। मैं रिंकी के होंठों की नरमी और
उस की जीभ का नरम स्पर्श अपनी उँगलियों पर महसूस कर कर के रोमांचित हो रहा था।
मेरा लिंग 90 डिग्री पर चादर और पजामे का तंबू बनाये फौलाद सा सख्त खड़ा था, मारे उत्तेज़ना के मेरे नलों में तेज़ दर्द हो रहा था।
अब सहन करना मुश्किल था, लेकिन इस से और आगे बढ़ना खतरे से खाली नहीं था।
अपने ही बैडरूम में, अपनी ही पत्नी की कुंवारी भांजी के साथ शारीरिक संबंध बनाते या बनाने की कोशिश करते, अपनी ही पत्नी के
हाथों रंगे-हाथ पकड़े जाने से ज़्यादा शर्मनाक कुछ और हो नहीं सकता था।
मैं ऐसी बेवकूफी करने वाला हरगिज़ नहीं था।
जिंदगी रही तो आगे ऐसे बहुत मौक़े मिलेंगे जब आदमी अपने दिल की कर गुज़रे और रिंकी तो राज़ी थी ही!
बेमन से मन ममोस कर मैं उठा और बाथरूम में जाकर पेशाब करने के लिए पजामा खोला तो मेरा लिंग झटके से बाहर आया।
जैसे ही मैंने लिंग का मुंह कमोड की ओर पेशाब करने के लिए किया, मेरे पेशाब की धार कमोड में नीचे जाने की बजाए कमोड के ऊपर
सामने दीवार कर पड़ी, मैं अपने लिंग को नीचे की ओर झुकाऊं पर मेरा लिंग नीचे की ओर हो ही ना!
जैसे तैसे पेशाब करके मैं वापिस बैडरूम में आया ही था कि डॉली ने मुझ से टाइम पूछा, मेरी तो फट के हाथ में आ गई।
ख़ैर जी!
डॉली को टाइम बता कर A.C का टेम्प्रेचर थोड़ा बढ़ा कर मैं भी सोने की कोशिश करने लगा, उधर रिंकी भी चुपचाप चित पड़ी सोने का
बहाना कर रही थी।
बहुत रात बीतने के बाद मुझे नींद आई।
अगला सारा दिन मैंने मन ही मन चिढ़ते कुढ़ते हुए गुज़ारा। जो कुछ और जितना कुछ रिंकी के साथ रातों को हो रहा था, उस से ज़्यादा
होने की गुंजाईश बहुत कम थी और ऐसा होना भी बहुत दिनों तक ऐसा होना मुमकिन नहीं था।
आज नहीं तो कल, रिंकी के कमरे का A.C ठीक हो कर आना ही था। ऊपर से अपने ही बैडरूम में डॉली के किसी भी क्षण उठ जाने का डर हम दोनों को खुल कर खेलने नहीं देता था।
मुझे जल्दी ही कुछ करना था।
किसी दिन रिंकी को ले कर किसी होटल में चला जाऊं?
ना… ना! यह निहायत ही बकवास आईडिया था, आधा शहर मुझे जानता था और रिंकी को होटल ले कर जाने के अपने खतरे थे।
और… घर में? घर में मेरे बच्चे थे, डॉली थी… नहीं नहीं! ऐसा होना भी मुमकिन नहीं था।
तो फिर… क्या करूँ? कुछ समझ में नहीं आ रहा था, लिहाज़ा मैं चिड़चिड़ा सा हो रहा था।
रात को डिनर करने के बाद फिर बाथरूम में ब्रश करने के बाद मैं अपना अंडरवियर उतार कर पजामा बिना अंडरवियर के पहन कर A.C का टेम्प्रेचर 20 डिग्री पर सेट कर के सीधे अपने बिस्तर पर जा पड़ा। आज रिंकी और डॉली दोनों अभी तक बेडरूम में नहीं आई थी।
अपने आप में उलझे हुए मेरी कब आँख लग गई, मुझे पता ही नहीं चला।
अचानक मेरे कान में कुछ सुरसुरी सी हुई, मैंने नींद में ही हाथ चलाया तो मेरे हाथ में रिंकी का हाथ आ गया, रिंकी चुपके से मुझे जगाने की कोशिश कर रही थी।
मैंने रिंकी का हाथ अपनी छाती पर रख कर ऊपर अपना हाथ रख दिया और रिंकी की साइड वाला हाथ चादर के अंदर से उसके चेहरे पर फेरने लगा।
माथा, गाल, कान, आँखें, नाक, होंठ, ठुड्डी, गर्दन… धीरे-धीरे मेरा हाथ नीचे की ओर अग्रसर था और रिंकी की साँसें क्रमशः भारी होती जा रही थी और रिंकी मुझे पिछले रोज़ की तरह से रोक भी नहीं रही थी, लगता था कि रिंकी खुद ऐसा चाह रही थी।
जैसे ही मेरा हाथ गर्दन के नीचे से होता हुआ रिंकी कंधे से होता हुआ रिंकी की छातियों तक पहुंचा तो मैं एक सुखद आश्चर्य से भर उठा। आज प्रिय ने नाईट सूट के नीचे ब्रा नहीं पहनी थी, बस एक पतली बनियान सी पहनी हुई थी। मेरा हाथ उरोज़ को छूते ही रिंकी के शरीर में वही परिचित झुनझुनाहट की लहर उठी।
आज मैं कल जैसी नर्म दिली से पेश नहीं आ रहा था, उरोज़ का निप्पल हाथ में आते ही फूल कर सख़्त हो गया था, मैं अंगूठे और एक उंगली के बीच में निप्पल लेकर हल्के हल्के मसलने लगा।
रिंकी का दायां हाथ मेरे हाथ के ऊपर रखा था, जहां जहां उसे तीव्र आनन्द की अनुभूति होती, वहीं वहीं उसका हाथ मेरे हाथ पर कस जाता।
मेरा मन कर रहा था कि मैं रिंकी के उरोज़ों का अपने होंठों से रसपान करूँ लेकिन उस में अभी भयंकर ख़तरा था सो मैंने अपने मन पर काबू पाया और इसी खेल को आगे बढ़ाने में लग गया।
मैंने अपना दायां हाथ रिंकी के उरोजों से उठा कर रिंकी के बाएं हाथ पर (जो मेरी छाती पर ही पड़ा था) रख दिया।
रिंकी के हाथ को सहलाते सहलाते मैंने रिंकी का हाथ उठा कर पजामे के ऊपर से ही अपने गर्म, तने हुए लिंग पर रख दिया।
रिंकी को जैसे 440 वाट का करंट लगा, उसने झट से अपना हाथ मेरे लिंग से उठाने की कोशिश की लेकिन उस के हाथ के ऊपर तो मेरा हाथ था, कैसे जाने देता?
दो एक पल की धींगामुश्ती के बाद रिंकी ने हार मान ली और मेरे लिंग पर से अपना हाथ हटाने की कोशिश छोड़ दी।
मैंने अपने हाथ से जो रिंकी का वो हाथ थामे था जिस की गिरफ़्त में मेरा गर्म, फौलाद सा तना हुआ लिंग था, को दो पल के लिए अपने लिंग से हटाया और अपना पजामा अपनी जांघों से नीचे कर के वापिस अपना लिंग रिंकी को पकड़ा दिया। रिंकी के शरीर में फिर से वही जानी-पहचानी कंपकंपी की लहर उठी।
अब के रिंकी का हाथ खुद ही लिंग की चमड़ी को आगे पीछे कर के मेरे लिंग से खेलने लगा, कभी वो शिशनमुंड पर उंगलिया फेरती, कभी लिंग की चमड़ी पीछे कर के शिशनमुंड को अपनी हथेली में भींचती, कभी मेरे अण्डकोषों को सहलाती।
ऊपर मेरे हाथों द्वारा रिंकी की छातियों का काम-मर्दन जारी था। धीरे धीरे मैं अपना दायां हाथ रिंकी के पेट पर ले गया, नाईट सूट के अप्पर को पेट से ऊंचा करके मैंने रिंकी के पेट पर हल्के से हाथ फेरा और फिर से रिंकी के शरीर में वही जानी पहचानी कंपकंपी की लहर को महसूस किया, रिंकी का हाथ मेरे लिंग पर जोरों से कस गया।
मैं धीरे धीरे अपना हाथ रिंकी के पेट पर घुमाता घुमाता नाभि के आस पास ले गया, रिंकी के शरीर में रह रह कर कंपन की लहरें उठ रही थी।
जैसे ही मेरा हाथ रिंकी के नाईट सूट के लोअर के नाड़े को टच हुआ, रिंकी ने अपने दाएं हाथ से मेरा हाथ पकड़ लिया और मजबूती से मेरा हाथ ऊपर को खींचने लगी।
मैंने जैसे-तैसे अपना हाथ छुड़ाया और फिर से दोबारा जैसे ही रिंकी के नाईट सूट के लोअर के नाड़े को छूआ, रिंकी की फिर वापिस वही प्रतिक्रिया हुई, उसने मजबूती से मेरा हाथ पकड़ कर वापिस ऊपर खींच लिया।
ऐसा लगता था कि रिंकी मुझे किसी कीमत पर अपना लोअर खोलने नहीं देगी।
मजबूरी थी… प्यार था, लड़ाई नहीं जो जोर जबरदस्ती करते, जो करना था खामोशी से और आपसी समझ बूझ से ही करना था।
मैंने रिंकी का हाथ उठा कर वापिस अपने लिंग पर रख दिया और अब की बार अपना हाथ चादर के अंदर पर उसके नाईट सूट के सूती लोअर बाहर से ही रिंकी की बाईं जांघ कर रख दिया रिंकी के शरीर में कंपन की लहर उठी और अब मैं रिंकी की जांघ सहलाते सहलाते अपना हाथ जांघ अंदर को और ऊपर की ओर ले जाने लगा।
मेरी स्कीम काम कर गई, आनन्द स्वरूप रिंकी के मुंह से हल्की-हल्की सिसकारी निकलने लगी ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’ उसका हाथ जोर-जोर से मेरे लिंग पर ऊपर-नीचे चलने लगा।
रिंकी की बाईं जांघ पर स्मूथ चलती मेरी उंगलियों ने अचानक महसूस किया कि उंगलियों और रेशमी जांघ के बीच में कोई मोटा सा कपड़ा आ गया हो।
मैं समझ गया कि यह रिंकी की पेंटी थी। धीरे धीरे मैं जाँघों के ऊपरी जोड़ की ओर बढ़ा।
उफ़! एकदम गर्म और सीली सी जगह… मैंने वहां अपना हाथ रोक कर अपनी उंगलियों से सितार सी बजाई।
फ़ौरन ही रिंकी ने मेरे लिंग को इतने जोर से दबाया कि पूछो मत!
मैंने नाईट सूट के सूती लोअर के बाहर से ही रिंकी की पेंटी को साइड से ऊपर उठाया और नाईट सूट के कपडे समेत अपनी चारों उंगलियां रिंकी की पेंटी के अंदर डाल दी। मेरे हाथ के नीचे जन्नत थी पर मुझे इस जन्नत पर कुछ जटाजूट सा कुछ महसूस होता। शायद रिंकी अपने गुप्तांगों के बाल नहीं काटती थी।
मैं कुछ देर अपनी उंगलियों से सितार बजाने जैसी हरकत करता रहा और इधर रिंकी मेरे लिंग को मथती जा रही थी।
अचानक ही मैंने अपना दायां हाथ रिंकी की योनि से उठाया और फुर्ती से रिंकी के नाईट सूट के लोअर का नाड़ा खोल कर अपना हाथ रिंकी की पेंटी के अंदर से रिंकी की बालों भरी योनि पर रख दिया।
प्रिय ने फ़ौरन अपना दायां हाथ मेरे हाथ पर रखा और मेरा हाथ अपनी योनि से उठाने की कोशिश करने लगी लेकिन अब तो बाज़ी बीत चुकी थी, अब मैं कैसे हाथ उठाने देता।
मैंने सख्ती से अपना हाथ रिंकी की योनि पर टिकाये रखा और साथ साथ अपनी बीच वाली उंगली योनि की दरार पर ऊपर से नीचे, नीचे से ऊपर फिराता रहा।
कुछ ही देर बाद रिंकी ने मेरे उस हाथ की पुश्त पर जिससे मैं उसकी योनि का जुग़राफ़िया नाप रहा था, एक हल्की सी चपत मारी और अपना हाथ उठा कर परे करके जैसे मुझे खुल कर खेलने की परमीशन दे दी।
रिंकी की योनि से बेशुमार काम-रस बह रहा था, उसकी पूरी पेंटी भीग चुकी थी। मैंने योनि की दरार पर उंगली फेरते फेरते अपनी बीच वाली उंगली से रिंकी की योनि के भगनासा को सहलाया, रिंकी ने जल्दी से अपनी दोनों जाँघें जोर से अंदर को भींच ली।
मैंने वही उंगली रिंकी की योनि में जरा नीचे अंदर को दबाई तो रिंकी के मुंह से ‘उफ़्फ़’ निकल गया।
रिंकी शतप्रतिशत कंवारी थी, लगता था कि रिंकी ने कभी हस्तमैथुन भी नहीं किया था।
तभी मुझे अपनी बाईं ओर हल्की सी हलचल और कपड़ों की सरसराहट का अहसास हुआ, मैंने तत्काल अपना हाथ रिंकी की योनि पर से खींचा और रिंकी से जरा सा उरली तरफ सरक कर गहरी नींद में सोने के जैसी ऐक्टिंग करने लगा।
मिंची आँखों से देखा तो डॉली बाथरूम जाने के लिए उठ रही थी।
जैसे ही डॉली बाथरूम में घुसी मैंने फ़ौरन अपने कपड़े ठीक किये और फुसफुसाती आवाज़ में रिंकी को भी अपने कपड़े ठीक करने को कह दिया।
सब कुछ ठीक ठाक करने के बाद हम दोनों ऐसे अलग अलग लेट गए जैसे गहरी नींद में हों।
बाथरूम से बाहर आ कर डॉली ने AC का टेम्प्रेचर बढ़ाया और वापिस बिस्तर पर आकर मुझे पीछे से आलिंगन में ले लिया।
बाल बाल बचे थे हम!
मुझे बहुत देर बाद नींद आई।
अगले दिन शनिवार था और शनिवार के बाद इतवार की छुट्टी थी।
शाम को लगभग 4 बज़े A.C वाले का फ़ोन आया कि A.C ठीक हो गया था और वो पूछ रहा था कि कब अपने आदमी मेरे घर भेजे ताकि A.C वापिस फ़िट किया जा सके।
मैंने उसे इतवार शाम को आकर A.C फिट करने को बोला।
अब मेरे पास केवल एक ही रात थी जिसमें मैंने कुछ कर गुज़रना था और मैं रात को सबकुछ कर गुज़रने को दृढ़प्रतिज्ञ था। शाम को मैंने अपने परिचित कैमिस्ट से गहरी नींद आने की गोलियों की एक स्ट्रिप ली और आईसक्रीम की दूकान से एक ब्रिक बटरस्काच आईसक्रीम ले कर घर आया।
डॉली को बटरस्काच आईसक्रीम बहुत पसंद थी।
चार गोलियां पीस कर में पुड़ी में अपने पास रख ली।