मेरा नाम राज है, मैं 42 साल का तंदरुस्त, 5’11” रंग गेहुंआ, फिट बॉडी का आदमी हूँ। मेरी पत्नी डॉली 39 साल की, स्वस्थ, 5’5″ रंग गोरा और फिगर 36-26-38 है।
पंजाब के एक बड़े शहर में मेरा अपना एक छोटा सा सॉफ़्टवेयर एंड हार्डवेयर पार्ट्स सप्लाई का बिज़नेस है जिससे मुझे सब ख़र्चे और टैक्स इत्यादि निकाल के करीब दस से बारह लाख रुपये सलाना की कमाई हो जाती है। एक अपना ऑफिस है, गोदाम है, वर्कशॉप है, 9-10 लोगों का स्टाफ़ है, अपना घर है, कार है।
हमारे दो बच्चे हैं, एक बेटी 15 साल की और एक बेटा 12 साल का। हमारी 16 साल की शादीशुदा जिंदगी में हमारी सैक्स लाइफ बहुत ही बढ़िया है। बिस्तर में डॉली और मैं नए नए तज़ुर्बे करते ही रहते हैं, कभी-कभी कोई तज़ुर्बा बैक-फ़ायर भी कर जाता है पर ओवरआल सब मस्त है।
यह घटना आज से 3 साल पहले की है, जब मेरी माँ जो मेरे साथ ही रहती थी, की अचानक मृत्यु हो गई। पिता जी आठ साल पहले ही चल बसे थे लिहाज़ा डॉली, मेरी पत्नी अचानक से घर में बिल्कुल अकेली हो गई।
मैं तो सुबह का निकला शाम को घर आता था, पीछे दोनों बच्चे स्कूल चले जाते थे और डॉली सारा दिन घर में अकेली रहती थी, अगर बाजार भी जाना हो तो घर ताला लगा के जाओ।
उन दिनों शहर में चोरियां बहुत होती थी और घर के मेनगेट पर लगा ताला तो जैसे चोरों को खुद आवाज़ मार कर बुलाता है।
एक दिन डॉली किसी काम से बाजार गई पर रास्ते में कुछ भूला याद आने पर आधे रास्ते से ही घर वापिस लौटी तो देखा कि चोरों ने मेनगेट का ताला तोड़ रखा था पर इससे पहले कि चोर अपनी किसी कारगुजारी को अंजाम देते, डॉली घर लौट आई और चोरों को फ़ौरन वहाँ से भागना पड़ा।
पर इस काण्ड के बाद डॉली बहुत डरी-डरी सी रहने लगी जिस का सीधा असर हमारे घर-परिवार पर और हमारी सेक्स-लाइफ़ पर पड़ने लगा।
अपनी सेक्स लाइफ बिगड़ते देख मुझे बहुत कोफ़्त होती… पर क्या करता?
अब मुझे इस समस्या का कोई समाधान सोचना था और बहुत जल्दी ही सोचना था पर कुछ सूझ नहीं रहा था और फिर एक दिन जैसे भगवान् ने खुद इस समस्या का समाधान भेज दिया।
मेरी बड़ी साली साहिबा जिनकी शादी मेरे शहर से 25-30 किलोमीटर दूर एक कस्बे में एक खाते पीते आढ़ती परिवार में हुई थी, की बेटी रिंकी ने B.Com पास कर ली थी लेकिन समस्या यह थी कि क़स्बे में कोई अच्छा कॉलेज नहीं था जहां मास्टर्स की जा सके और मेरे शहर में कई अच्छे कॉलेजों समेत यूनिवर्सिटी भी थी।
लिहाज़ा रिंकी ने मेरे शहर में एक नामी गिरामी कॉलेज में M.Com में ऐडमिशन ले लिया था लेकिन किस्मत से रिंकी को हॉस्टल में जगह नहीं मिल पाई थी सो मेरी साली साहिबा थोड़ी परेशान सी थी कि एक दिन मैं और डॉली उनके घर उनसे मिलने जा पहुंचे।
बातों बातों में इस बात का ज़िक्र भी आया तो मेरी पत्नी ने रिंकी को अपने घर रहने के लिए कह दिया। मैंने भी सोचा कि चलो ठीक ही है, कम से कम डॉली एक नार्मल औरत सा जीवन तो जियेगी।
मेरी शादी के समय रिंकी सात-आठ साल की पतली सी, मरगिल्ली सी लड़की थी जो हर वक़्त या तो रोती रहती थी या रोने को तैयार रहती थी। बहुत दफा तो वो घर आये मेहमानों के सामने ही नहीं आती थी और हम पर तो साहब ! हर वक़्त अपनी पत्नी का नशा सवार रहता था, मैंने भी रिंकी पर पहले कभी ध्यान नहीं दिया था।
लब्बोलुआब ये कि यह फाइनल हो गया कि रिंकी हमारे घर रह कर ही M.Com करेगी। फैसला ये हुआ कि मम्मी वाला कमरा रिंकी को दे दिया जाए ताकि वो अपनी पढ़ाई बे रोक-टोक कर सके।
इस बात से डॉली इतनी खुश हुई कि उस रात बिस्तर में डॉली ने कहर बरपा दिया। ऐसा बहुत दिनों बाद हुआ था लिहाज़ा मैं भी खुश था।
एक हफ्ते बाद रिंकी हमारे घर आ गई।
उस रात डाइनिंग टेबल पर मैंने पहली बार रिंकी को गौर से देखा। डेढ़ पसली की मरघिल्ली सी, रोंदू सी लड़की, माशा-अल्लाह ! जवान हो गई थी, करीब 5′-4″ कद, कमान सा कसा हुआ पतला लेकिन स्वस्थ शरीर, रंग गेहुँआ, लंबे बाल, सुतवाँ नाक, पतले गुलाबी लेकिन भरे-भरे होंठ, तीखे नैननक्श और काले कजरारे नयन!
फ़िगर अंदाजन 34-26-34 था।
यूं मैं कोई सैक्स-मैनियॉक नहीं पर ईमानदारी से कहूँ तो उस वक़्त मन ही मन मैं रिंकी के नंगे जिस्म की कल्पना करने लगा था।
खैर जी ! डिनर हुआ। सब लिविंग रूम में आ बैठे, बच्चे TV देखने लगे, रिंकी और डॉली दोनों बातें करने लगी और मैं इजी चेयर पर बैठा किताब पढ़ने लगा पर मेरे कान तो उन दोनों की बातों पर ही लगे हुए थे।
मैंने नोटिस किया कि बोल तो सिर्फ डॉली ही रही थी और रिंकी तो बस हाँ-हूँ कर रही थी।
खैर, धीरे धीरे रिंकी हमारे परिवार का अंग होती चली गई, दोनों बच्चों को रिंकी पढ़ा देती थी। रात का डिनर पकाना भी रिंकी की जिम्मेवारी हो गई थी लेकिन अब भी रिंकी मेरे सामने कम ही आती थी, आती भी थी तो मुझ से बहुत कम बोलती थी, बस हां जी… नहीं जी… ठीक है जी!
मैं तो इसी बात में खुश था कि मुझे मेरी पत्नी का ज्यादा समय मिल रहा था और मेरी सेक्स लाइफ नार्मल से भी अच्छी हो गई थी। धीरे धीरे समय गुजरने लगा।
शुरू शुरू में तो रिंकी हर शनिवार अपने घर चली जाया करती थी और सोमवार सवेरे सीधे कॉलेज आकर शाम को घर आती थी लेकिन धीरे धीरे रिंकी का अपने घर जाना कम होने लगा। अब रिंकी दो महीने में एक बार या बड़ी हद दो बार अपने घर जाती थी।
फर्स्ट ईयर के फाइनल एग्जाम ख़त्म होने के बाद रिंकी तीन महीने के लिए अपने घर चली गई। करीब पांच हफ्ते बाद एक रात, एक रस्मी से अभिसार से असंतुष्ट सा मैं डॉली के नग्न शरीर पर हाथ फेर रहा था कि डॉली ने मुझ से कहा- राज… चलो, कल जाकर रिंकी को ले आयें। रिंकी के बिना मेरा दिल नहीं लग रहा और दोनों बच्चे भी उदास हैं।
मैंने हामी भर दी।
अगले दिन हम दोनों जाकर रिंकी को ले आये। खुश डॉली ने उस रात अभिसार में मेरे छक्के छुड़ा दिए, डॉली ने मेरा लिंग चूस-चूस कर मुझे स्खलित किया और बाद में खुद मेरा लिंग पकड़ कर, उस पर तेल लगाया और अपने हाथ से मेरा लिंग अपनी गुदा पर रख कर मुझे गुदा मैथुन के लिए आमंत्रित किया, रतिक्रिया के किसी भी आसन को उसने ‘ना’ नहीं कहा बल्कि दो कदम आगे जाकर कुछ अपनी ओर से और नया कर दिया।
ख़ैर! जिंदगी वापिस पटरी आ गई थी लेकिन अब एक फर्क था, अब रिंकी सारा दिन घर पर ही रहती थी, उसके कॉलेज खुलने में अभी डेढ़ महीना बाकी था।